अर्थशास्त्री के नेतृत्व में गिरवी भारतीय अर्थव्यवस्था
अरुण चन्द्र रॉय
जब यह खबर आर्थिक जगत और मीडिया में जोर से आ रही थी कि योजना आयोग ने पंच वर्षीय योजना तैयार करने के लिए एक निजी कंसल्टिंग कंपनी से बिना किसी पैसे के काम लिया है तब मैं योजना आयोग की 2007 से 12 के लिए परिप्रेक्ष्य रिपोर्ट पढ़ रहा था. मुझे अर्थव्यवस्था का ज्ञान नहीं है न कभी अर्थशास्त्र का विद्यार्थी रहा. अर्थशास्त्र का स्वाध्यानन भी नहीं है. लेकिन जिस तरह उस रिपोर्ट में आकडे प्रस्तुत किये गए थे, जिस तरह पंच वर्षीय सब्जबाग दिखाया गया था वह देख मुझे निजी कंसल्टिंग कंपनी का बिना पैसे लिए काम करने में कुछ 'बिटवीन दी लाइंस' बात लगी. खैर !
मैं जो अध्याय पढ़ रहा था उसमे देश में अवसंरचना और रियल एस्टेट के सम्बन्ध में आकडे थे. वास्तव में रियल एस्टेट सबसे अधिक लोगों को रोज़गार देता है. कई अन्य उद्योग जैसे सीमेंट , स्टील आदि उद्योग इसपर प्रत्यक्ष रूप से आधारित हैं. लेकिन दुःख की बात यह है कि आज भी देश के आधे लोग बिना छत के रह रहे हैं. विकास की इस बात का उल्लेख उस किताब में इतनी प्रमुखता से नहीं है जितनी कि भूमि अधिग्रहण को सरकार कैसे सरल बनाएगी, किस तरह विदेशी निवेश आएगा और सरकार विदेशी निवेश के लिए कैसे जमीन और बहाने तैयार कर रही है. दिल्ली और इसके आसपास अक्सर एफोर्डेबल हाउसिंग पर सेमिनार होते हैं जिसमे मंत्री से लेकर सचिव तक हिस्सा लेते हैं. ये सभी सेमिनार पांच तारा या हैबिटेट सेंटर जैसे जगहों पर होते हैं. शायद ये लोग तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट नहीं पढ़ते हैं जो कहती है कि इस देश के 37 फिसिदी लोग अब भी गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं. अर्जुन सेनगुप्ता की एक रिपोर्ट कहती है कि 77 फिसिदी भारतीय बीस रूपये प्रतिदिन से कम में गुजरा करते हैं और जो योजना आयोग देश में भूमि अधिग्रहण और रियल एस्टेट के पक्ष में आकडे तैयार करती है वह भी इस इस रिपोर्ट को स्वीकार कर चुकी है. इसी क्रम में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है इस देश में अफ़्रीकी देशों से अधिक जनता गरीबी रेखा से नीचे रहती है. लेकिन मुझे किसी सेमिनार में, किसी बहस में इनके लिए कोई ठोस नीति या इच्छा शक्ति दिखाई नहीं देती.
हाँ जो कंपनी योजना आयोग के लिए निःशुल्क सेवा दे रही थी वह है बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप. यह एक अग्रणी बहुराष्ट्रीय कंसल्टिंग फर्म है. इस कम्पनी की उपस्थिति दुनिया के सत्तर देशो में हैं और तमाम उद्योग क्षेत्रों में जैसे स्वास्थ्य, औषध, परिवहन, स्टील, तेल, पर्यावरण आदि आदि में परामर्श देने का विशाल अनुभव है. और इसके ग्राहकों में दुनिया के बड़े बैंक,तेल कम्पनियां, इस्पात कंपनिया, दवाई कम्पनियां हैं. ऐसे में यदि बोस्टन के निःशुल्क परामर्श के पीछे की मंशा स्पष्ट हो जाती है. और बोस्टन का प्रभाव देखिये कि ये खबर आई और फिर अचानक बिना तूल दिए यह मुद्दा अखबार के पन्नो से गायब भी हो गई. यह कोई मामूली बात नहीं. एक गंभीर मुद्दा है जो देश की नीव योजना आयोग को ही गीली कर रही है.
अर्थशास्त्री के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था किस तरह जनहित के प्रतिकूल हो काम कर रही है और सरकार असहायता जाहिर कर रही है, इतना तो स्पष्ट है कि देश का पूरा तंत्र गिरवी है कहीं,
Boston Consu;ting Group(BCG)के कार्यालय विश्व के लगभग 70 देशों मे हैं। योजना आयोग का इस कंपनी से नि:शुल्क परामर्श लेने का मतलब यह नही है कि आयोग कोई गलत कार्य कर रहा है । मैं आपके इस तर्क से सहमत नहीं हूं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्रियों के नेतृत्व मे गिरवी हो गयी है ।मेरा मानना है कि देश के विकास-यात्रा में अनुभवी लोगो के साथ परामर्श लेकर यदि कोई कार्य किया जाता है तो इसमे किसी तरह की आपत्ति या संशय़ नही होनी चाहिए। सरकार तो डा.अमर्त्य सेन से भी परामर्श कर रही है।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबेहद रोचक आलेख जिसके द्वारा कई नई जानकारियां मिलीं और सत्ता की भीतरी चालों को समझने का मौक़ा मिला।
जवाब देंहटाएंपर्त-दर-पर्त खोलती,विचारणीय पोस्ट ,आभार.
जवाब देंहटाएंhamari samajh to yahi kahti hai ki jo hoga sahi hi hoga.........:)
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रेम सागर जी आपकी बातों से सहमति रखते हुए मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि बजट, यौजना आयोग की रिपोर्ट, फाइनांस बिल, कैबिनेट नोट आदि सब गोपनीय रिपोर्ट होती हैं जिसके समय से पूर्व खुलासे से अर्थव्यवस्था पर बहुत असर होता है और यह असर लाखों में नहीं बल्कि अरबो अरबो में होता है.. सत्ता के निकट के लोग इन्ही का तो लाभ उठाते हैं.... इन कंसल्टेंसी कपनियों की एक प्रोजेक्ट की कंसल्टेंसी फी भी करोडो में होती है... बजट सूचना और और रिलायंस को लाभ पहुचने की चर्चा कारपोरेट गलियारों में होती रहती हैं... हम आम आदमी तो इनसे बस प्रभावित होते हैं... एक भूमि अधिग्रहण की पूर्व सूचना पा कर मोती गोयल नाम का शख्स गाज़ियाबाद और नोएडा में अरबो रुपयों की जमीन लाखों में किसानो से खरीद लिया... यह एक बड़ा भूमाफिया था और सत्ता से इसकी निकटता थी.... ये कंसल्टेंसी कम्पनियां सरकार को अपने हिसाब से प्रभावित करती हैं.. हाल में हैड्रो कार्बन घोटाला में इन्ही कंसल्टेंसी कंपनियों का हाथ है.. इनके प्रमुख की सत्ता से अति निकटता होती है... सरकार का खुले तौर पर परामर्श लेना और गुपचुप परामर्श लेने में बहुत फर्क है...
जवाब देंहटाएंबहुत अछे मुद्दे पर बात उठाई , यद्यपि प्रेम सरोवर जी से भी सहमती है किन्तु जिस तरह से आपका स्पष्टीकरण आया उससे तो दाल ही काली लगती है, और बाकि बच्ची खुच्ची कसर तो घोटालो नें पूरी कर ही दी है.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंआज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र . (अब तो चवन्नी बराबर भी नहीं हमारी हैसियत)
कल टीवी पर चंद्रगुप्त मौर्य देख रही थी.उसमें चाणक्य को देखकर मुझे भी यही ख़याल आया था.क्या हो गया हमारे देश को.वाकई कहीं कोई तो सुराग गहरा है.
जवाब देंहटाएंरोचक आलेख.
aur is tantr ko girvi rakhne wale hamari dharti ke hi sapoot hain.
जवाब देंहटाएंvicharneey post jo aakrosh bhar deti hai ek mashaal utha lene ke liye.
आदरणीय अरूण चंद्र राय जी,
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर मेरी टिप्पणी का मूलाधार या बलाघात इस केंन्द्र विन्दु पर था कि सरकार ने Boston Consultancy Group से नि:शुल्क परामर्श लिया और इस परामर्श के लिए उस Consultancy Group को कोई भुगतान नही किया गय़ा । परामर्श लेना कानूनन अपराध नही है। मुझे इस पर कुछ भी Between the lines नही लगा। धन्यवाद।
विचारणीय लेख ...
जवाब देंहटाएंप्रेम जी का मुद्दा सही है मगर आलेख की अधिकांश बातों/चिंताओं से सहमत हूँ। आज़ादी के दशकों बाद भी देश का एक बढा अंश रोटी, कपडा, मकान और शिक्षा से वंचित है और हमारी प्राथमिकता ज़मीन अधिग्रहण को सरल बनाना है, बहुत शर्म की बात है।
जवाब देंहटाएंवाक़ई चिंताजनक स्थिति तो है ही.
जवाब देंहटाएंअर्थशास्त्र का ज्ञान ना होते हुए भी ...आपका लेख पढने के बाद ये बात तो समझ आ रही है की ...सच में स्तिथि गंभीर है ...
जवाब देंहटाएंअर्थशास्त्री के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था किस तरह जनहित के प्रतिकूल हो काम कर रही है और सरकार असहायता जाहिर कर रही है, इतना तो स्पष्ट है कि देश का पूरा तंत्र गिरवी है कहीं,...
जवाब देंहटाएंकोई शको सुबहा नहीं इसमें...
सब के सब बिके हुए ,कुछ लोगों के हाथों..क्या मिडिया और क्या व्यवस्था...
निति मुट्ठी भर कुछ उन लोगों के सुविधा और हित के लिए निर्धारित होती हैं,जो बादलों से नीचे चलने में अपनी मानहानि मानते हैं...
यही है अपना देश और अपना लोकतंत्र...