माँ के गर्भ में साँस लेते हुए
मैं खुश हूँ बहुत
मेरा आस्तित्व आ चुका है
बस प्रादुर्भाव होना बाकी है।
मैं माँ की कोख से ही
इस दुनिया को देख पाती हूँ
पर माँ - बाबा की बातें समझ नही पाती हूँ
माँ मेरी सहमी रहती हैं और बाबा मेरे खामोश
बस एक ही प्रश्न उठता है दोनों के बीच
कि परीक्षण का परिणाम क्या होगा ?
आज बाबा कागज़ का एक पुर्जा लाये हैं
और माँ की आँखों में चिंता के बादल छाये हैं
मैं देख रही हूँ कि माँ बेसाख्ता रो रही है
हर बार किसी बात पर मना कर रही है
पर बाबा हैं कि अपनी बात पर अड़े हैं
माँ को कहीं ले जाने के लिए खड़े हैं
इस बार भी परीक्षण में कन्या- भ्रूण ही आ गया है
इसीलिए बाबा ने मेरी मौत पर हस्ताक्षर कर दिया है।
मैं गर्भ में बैठी बिनती कर रही हूँ कि-
बाबा मैं तुम्हारा ही बीज हूँ-
क्या मुझे इस दुनिया में नही आने दोगे?
अपने ही बीज को नष्ट कर मुझे यूँ ही मर जाने दोगे?
माँ ! मैं तो तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ , तुम्हारी ही कृति हूँ
तुम्हारी ही संरचना हूँ , तुम्हारी ही सृष्टि हूँ।
माँ ! मुझे जन्म दो, हे माँ ! मुझे जन्म दो
मैं दुनिया में आना चाहती हूँ
कन्या हूँ ,इसीलिए अपना धर्म निबाहना चाहती हूँ।
यदि इस धरती पर कन्या नही रह पाएगी
तो सारी सृष्टि तहस - नहस हो जायेगी ।
हे स्वार्थी मानव ! ज़रा सोचो-
तुम हमारी शक्ति को जानो
हम ही इस सृष्टि की रचयिता हैं
इस सत्य को तो पहचानो.
संगीता स्वरुप |
निश्चित ही नारी रचयिता हैं मगर न जाने कैसे लोग हैं जो कन्या भूण हत्या करवाते हैं...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंसत्य से आँखें मूँदे बैठा है मानव। मार्मिक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें\
जवाब देंहटाएंहे स्वार्थी मानव ! ज़रा सोचो-
जवाब देंहटाएंतुम हमारी शक्ति को जानो
हम ही इस सृष्टि कि रचयिता हैं
इस सत्य को तो पहचानो.
भावनाओं से ओत-प्रोत ...
सशक्त ..बहुत सुंदर रचना ...!!
पता नहीं पढ़े लिखे लोग भी ऐसा जघन्य कार्य क्यों कर रहे हैं?
जवाब देंहटाएंमन आत्मा को झकझोरने वाली अत्यंत मार्मिक रचना ! ना जाने कितनी संभावनाओं से भरपूर मासूम कन्याएं जन्म लेने से पहले ही काल का ग्रास बना दी जाती हैं ! यदि केवल बालक ही जन्म लेंगे और बालिकाएं कोख में ही मार दी जायेंगी तो समाज में कितनी भीषण असंतुलन की स्थिति पैदा हो जायेगी और सृष्टि का विकास अवरुद्ध हो जायेगा ! जन्मदाता पिता ही जब इस तरह अमानवीय हो जाये तो और किसीसे क्या अपेक्षा की जा सकती है ! चिंतनीय रचना !
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य !
जवाब देंहटाएंसंगीता जी इस तरह की रचनाओं का सब जगह प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंमैं अपनी बात कुछ आंकड़ों में कहूंगा
* देश में प्रति 1000 पुरुषों पर आबादी 933 से बढकर 940 ज़रूर हुई है, पर छह साल तक के बच्चों के आंकड़ों में यह अनुपात घट कर 927 से 914 हो गया जो कि आज़ादी के बाद सबसे कम है।
है। गर्भ में ही इन मासूमों को मारने का ‘पाप’ देश में अब भी किया जा रहा है। बच्चों को जन्म देने के पहले जन्मदाता उन्हें ‘मौत’ दे रहे हैं। 0-6 आयु वर्ग में लिंग अनुपात का घटकर 914 रह जाना, समाज में स्त्रियों के प्रति बढ़ रही हिंसा और लैंगिक शोषण का प्रमाण है। लड़कियों को जन्म से पहले और जन्म के तुरंत बाद मार देना समाज का सबसे नड़ा अभिशाप है। भ्रूण हत्या और लिंग परीक्षण को ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर देने के बावज़ूद अभी भी देश में बड़े पैमाने पर मां-बाप लड़कों की चाह में लड़कियों को गर्भ में ही मारने का दुष्कर्म कर रहे हैं। देश में लोगों की मानसिकता में अभी लड़कों की चाहत बसी है। समाज में स्त्रियों को लेकर नकारात्मक रवैये के कारण इस अनुपात में कमी आ रही है। वर्तमान समय में लड़का और लड़की में फ़र्क़ करना एक अज्ञानता और पिछड़ापन के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता।
जवाब देंहटाएंहम प्रकृति के नियमों को नकार रहे हैं। इस तरह से मानव जीवान के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। सरकार ने भ्रूण हत्या और नवजात लड़कियों की हत्या रोकने के लिए कई क़ानून बनाए हैं। इन क़ानूनों के बावज़ूद आज़ादी के बाद बच्चों में लिंगानुपात सबसे निचले स्तर पर पहुंचना यह दर्शाता है कि सिर्फ़ क़ानून और सरकारी योजनाओं से यह नहीं बढ़ाया जा सकता। बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिए। लड़के-लड़कियों के प्रति जब तक आम जनता की सोच नहीं बदलेगी, तब तक सरकारी नीतियों का कोई व्यापक लाभ महीं मिलेगा। आज इस 21वीं सदी में पारंपरिक सोच से ऊपर उठ कर लड़कियों के प्रति उदार होने की ज़रूरत है।
जवाब देंहटाएं लिंगानुपात
1961 – 1000 पुरुष 976 महिला
1971 – 964
1981 - 962
1991 – 945
2001 - 927
2011 – 914
संयुक्त राष्ट्र की १३४ देशों की लैंगिक असमानता सूची में पाक ११२ वें, बांग्लादेश ११६ वें, नेपाल ११० वें और भारत १२२ वें स्थान पर है। लगभग सबसे पीछे।
जवाब देंहटाएंjo aisa karte hain ishwar unke hisse kuch nahi kerta
जवाब देंहटाएंयदि इस धरती पर कन्या नही रह पाएगी
जवाब देंहटाएंतो सारी सृष्टि तहस - नहस हो जायेगी ।
अगर मानव इस बात को समझ ले तो इससे बढकर और क्या बात होगी मगर ये ही कोई नही समझ पाता…………एक जागरुक करती संवेदनशील कविता
आह ,करुण ,वेदना ,संवेदना.
जवाब देंहटाएंपता नहीं कैसे इंसान होते हैं जो यह अपराध करते हैं.ऐसा तो जानवर भी नहीं करते.इंसानियत को क्या हो गया है जाने.
यदि इस धरती पर कन्या नही रह पाएगी
जवाब देंहटाएंतो सारी सृष्टि तहस - नहस हो जायेगी ।
kash sabhi log yah baat samajh pate......
मम्मा ,
जवाब देंहटाएंक्या ये कविता मैंने पढ़ी हुई है पहले..??? जाने क्यूँ पढ़ी पढ़ी सी लगी...मगर कोई बात नहीं...अच्छा ही लगा पढ़ कर...हमेशा की तरह खून खौल उठा..मगर एक शिकायत कविता से.........उसमे अजन्मी बच्ची की माँ का मौन सहन नहीं हुआ मुझसे मम्मा..:(..
ख़ैर...सार्थक लेखन पर बधाई !
प्रणाम !!
भावभीनी रचना, गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंaaj ke jwalant mudde ko ujagar karti ek sashakt rachna ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक अपील है इस कविता में.संगीता जी ,
जवाब देंहटाएंअजन्मी कन्या के दुख और रुदन को सुन कर आपने जो लिखा ,काश कि संसार समझ पाये !
बहुत मार्मिक रचना ....समाज जो विकसित होने का दवा करता है उसका सच्चा चेहरा उजागर करती रचना ................वो स्विक्सित समाज जो पहले पैदा होने के बाद लड़कियों को मारता था वो विज्ञान की मदद से कोख में ही मारने में सक्षम है
जवाब देंहटाएंये हम ही हैं और हमारे अपने चेहरे कितने घिनौने हैं? पिछले दिनों महाराष्ट्र के बीद जिले में एक नाले में ९ कन्या भ्रूण बहते हुए बरामद किये गए और वे सभी कन्या भ्रूण थे. अब कुछ और कहना बाकी है की इस कन्या के विनाश के कृत्य में सिर्फ माँ बाप ही नहीं बल्कि डॉक्टर , नर्सिंग होम भी जुड़े हुए हैं नहीं तो ९ कन्या भ्रूण एक ही नाले में कैसे बरामद हुए? ये विनाशक अपने कृत्य पर खुद हीरोयेंगे.
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