संघ की राजभाषा नीति - प्रमुख तत्व
भारत संघ की राजभाषा हिंदी के प्रावधानों को अमल करने की नीति जोर-जबरदस्ती की नहीं, अपितु प्रेरणा और प्रोत्साहन की रही है।
परंतु इसका कतई यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए कि राजभाषा हिंदी सम्बंधी संबैधानिक उपबन्धों एवं उन पर बने नियमों के अनुपालन की बाध्यता से केंद्रीय सरकार के संगठन उपक्रम, बैंक अथवा अन्य शैक्षाणिक-प्रशैक्षणिक संस्थाएं बरी है।
इसका मतलब है कि भारत सरकार चरणबद्ध कार्यक्रमों के ज़रिए राजभाषा हिंदी को सरकारी संगठनों, उपक्रमों बैंकों आदि पर लागू करने की ओर प्रवृत है।
जहां तक राज्यों की राजभाषा नीति की बात है, तो वे राज्य जिन्होंने केंद्र की तरह अपने-अपने राज्यों में राजभाषा भी हिंदी को स्वीकार किया है, इन राज्यों में भी राजभाषा नीति भारत सरकार की नीति के अनुकूल प्रेरणा और प्रोत्साहन की ही है।
राजभाषा नीति के प्रमुख तत्वों के संबंध में यदि विचार करते हैं तो यह देखने में आता है प्रयोग के क्रम में स्थिति बराबर एक सी नहीं रही है। शुरु में
(1) द्विभाषिकता तथा
(2) राजभाषा हिंदी प्रशिक्षण,
इन दो तत्वों पर ध्यान देने की अपेक्षा सर्वोपरि थी।
कारण , जहाँ एक ओर कार्यान्वयन में प्रवेश तथा अल्प हिंदी ज्ञान वालों की झिझक दूर करने के लिए प्रशिक्षण पर तत्काल ध्यान देना जरूरी था वहीं प्रयोग को आगे बढ़ाने के लिए हिंदी जानने वालों को हिंदी में कार्य करने की ओर प्रवृत करना तत्काल जरूरी था ।
उसके बाद
(3) हिंदी / द्विभाषिक उपकरण,
और (4) सहायक साहित्य (हिंदी कोश, हिंदी अंग्रेजी कोश, अन्य क्षेत्रीय भाषा-हिंदी शब्दकोश, टिप्पण-आलेख पुस्तिका, राजभाषा नियम पुस्तिका, अनुवाद शास्त्र आदि)
(5) आधारभूत संगठनात्मक साहित्य (कोड, मैनुअल फार्म आदि )
(6) समीक्षा तंत्र (राजभाषा कार्यान्वयन समिति, हिंदी सलाहकार समिति, निरीक्षण, हिंदी कार्यशाला आदि)
(7) प्रबंध तंत्र (राजभाषा प्रबंध प्रशिक्षण, प्रशासनिक /कार्मिक प्रबंध-प्रशिक्षण एवं तत्संबंधी साहित्य की सुलभता
(8) प्रेरणा एवं प्रोत्साहन (मूर्धन्य प्रबन्धकों द्वारा राजभाषा हिंदी के प्रयोग का स्वयं पहल करना, राजभाषा हिंदी में प्रशस्ति पत्र सेवा पत्र आदि जारी कर तथा राजभाषा समारोह, राजभाषा प्रतियोगिता आदि के आयोजन, राजभाषा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन, हिंदी के प्रयोग के आधिक्यों/उत्कृष्टता आदि के लिए पुरस्कार,राजभाषा परक पुस्तकों, आलेखों आदि के लिए प्रशस्ति/पुरस्कार आदि द्वारा राजभाषा के प्रयोग के प्रति अधिकारियों-कर्मचारियों को अभिप्रेरणा/प्रोत्साहन ।
(9) अभिज्ञान एवं प्रचार-प्रसार हिंदी अनुवाद डिप्लोमा (गृह मंत्रालय), हिदी पत्राचार पाठ्यक्रम (शिक्षा विभाग), प्रचार प्रसार पत्र पत्रिकाएं विज्ञापन (शिक्षा एवं सूचना और प्रसारण मंत्रालय)
(10) मूर्धन्य नियामक एजेंसियां (राजभाषा विभाग (गृह मंत्रालय), केंद्रीय हिदी समिति, संसदीय राजभाषा समिति आदि )
प्रेरणा एवं प्रोत्साहन द्वारा हिंदी का वातावरण होने के चलते राजभाषा हिंदी का सरकारी कार्यों के संपादन में काफी अधिक प्रयोग हो रहा है।
ग्यन्वर्धक आलेख.
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