मध्यकालीन भारतधार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-3)मनोज कुमार |
मध्यकालीन भारत - धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-१)मध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२) |
निर्गुणपंथी संत कबीरदास का जन्म 1440 ई. के लगभग हुआ था। कबीरदासजी भक्त संत ही नहीं समाज सुधारक भी थे। डनहोंने अंधविश्वास, कुरीतियों और रूढ़िवादिता का विरोध किया। विषमताग्रस्त समाज में जागृति पैदा कर लोगों को भक्ति का नया मार्ग दिखाना इनका उद्देश्य था। जिसमें वे काफी हद तक सफल भी हुए। उन्होंने हिंदु-मुस्लिम एकता के प्रयास किए। उन्होंने राम और रहीम के एकत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने दोनों धर्मों की कट्टरता पर समान रूप से फटकार लगाई। वे मूर्ति पूजा और कर्मकांड का विरोध करते थे। वे भेद-भाव रहित समाज की स्थापना करना चाहते थे। उन्होंने ब्रह्म के निराकार रूप में विश्वास प्रकट किया। एकेश्वरवाद के समर्थक संत कबीरदास का मानना था कि ईश्वर एक है। उन्होंने व्यंग्यात्मक दोहों और सीधे-सादे शब्दों में अपने विचारों को व्यक्त किया। फलत: बड़ी संख्या में सभी धर्मों एवं जातियों के लोग उनके अनुयायी हुए। संत कबीर के अनुयाई कबीरपंथी कहलाए। उनके उपदेशों का संकलन बीजक में है। इस परंपरा में संत कबीर के साथ जो अनेक संत और महात्मा हुए उनमें गुरु नानक देवजी, रैदास, धन्ना, सुन्दर दास, दादू दयाल, मलूक दास और धरणी दास के नाम काफी प्रचलित हैं। गुरु नानक देवजी का जन्म तलवंडी (नानकाना साहिब) में 1469 में हुआ था। उन्होंने भी एकेश्वरवाद का उपदेश दिया। संत कबीरदास और गुरु नानक देवजी दोनों का मानना था कि सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है। सिर्फ उनके कर्मकांड अलग-अलग होते हैं। पुजारी वर्ग कर्मकाण्ड पर अधिक ज़ोर देकर भेद पैदा करते हैं। इन दोनों महात्माओं का मानना था कि जाति प्रथा उचित नहीं है और इसे समाप्त कर देना चाहिए। इन समान विचारों के बावज़ूद दोनों महापुरुषों में मूलभूत अंतर था। संत कबीर एक आलोचक थे। उनका विश्वास था कि समाज की रूढ़िवादिता की निन्दा करके ही इसे समाप्त किया जा सकता है। जबकि गुरु नानक देवजी एक रचनात्मक प्रतिभा वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी शक्ति केवल निन्दा में ही नहीं लगाई। उन्होंने समाज सुधार का एक रचनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उन्होंने लंगर का एक प्रस्ताव रखा जिसमें विभिन्न जाति के लोग साथ-साथ भोजन कर सकें। उन दिनों उठाया जाने वाला यह क़दम निश्चित तौर से क्रान्तिकारी था। उनका विचार था कि एक नई धारणा का प्रचार किया जाए तो निश्चित रूप से हिन्दू एवं इस्लाम दोनों पंथों के लोग अंतत: एक प्लेटफॉर्म पर आ जाएंगे। गुरु नानक देवजी ने संत कबीर की तुलना में अपने सम्प्रदाय को प्रभावशाली ढ़ंग से एक संगठनात्मक रूप दिया। संत कबीर ने कोई संस्था नहीं बनाई। अत: उनके बाद उनके विचारों को उतना महत्व नहीं मिला जितना उनके जीवनकाल में था। गुरु नानक देवजी ने गुरु प्रथा पर आधारित संस्था चलाई। जिस कारण सिख समुदाय को हमेशा एक गुरु का नेतृत्व मिलता रहा और उन्होंने गुरु के आदेशों का पालन भी किया। गुरु नानाक देव के उपदेशों ने एक नए धर्म की स्थापना का आधार तैयार किया जो आनेवाले समय में गुरु गोविंद िसंहजी के नेतृत्व में सिख धर्म के नाम से प्रचलित हुआ। उनके विचारों का संकलन गुरु ग्रंथ साहिब में किया गया। गुरु नानक देवजी के बाद इस सम्प्रदाय का विशदीकरण किया गुरु अर्जुन दासजी ने मसनद के द्वारा। उनके समय में सिखों एवं मुग़लों के बीच मतभेद उभरे। इस संघर्ष के कारण सिखवाद ने आक्रामक तेवर अपना लिया एवं अकाली पंथ का उदय हुआ। बाद में सिख पंथ में ही एक उदासीन वर्ग का उदय हुआ। सिखपंथ को विकास या प्रगति प्रदान करने के लिए आर्थिक ढ़ांचा भी था जिसका कबीरपंथियों में सदा अभाव रहा। इसके कारण गुरु नानक देव एवं सिखपंथ को संत कबीर दास की तुलना में काफी फ़ायदा मिला। |
ज़ारी …संत वल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभू, संत नामदेव, संत तुकाराम, संत ज्ञनेश्वर, संत दादू दयाल, गोस्वामी तुलसीदास, संत सूरदास एवं मीराबाई। अगले अंक में… |
मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010
मध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-3)
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वैचारिक पोस्ट....सारगर्भित लेखन !!
जवाब देंहटाएंबहुत सारी जानकारी milee|
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी देती हुई पोस्ट
जवाब देंहटाएंअपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंतीन गो बुरबक! (थ्री इडियट्स!)-2 पर टिप्पणी के लिए आभार!
बहुत ज्ञान वर्धक पोस्ट. आज आपने जो तुलना की उस से दोनों के धर्मो के सञ्चालन की जद्दोजहद पता चली.
जवाब देंहटाएंसुंदर सारगर्भित पोस्ट के लिए आभारी हूँ.
अछि प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञान वर्धक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंसुंदर सारगर्भित पोस्ट के लिए आभारी हूँ!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी देती हुई पोस्ट!
जवाब देंहटाएंAcha prayas kar rahe hain aap , Blog padhne ke bahane apne atit ko bhi yaad kar lenge or bhavishye ke sapne bhi sajayenge
जवाब देंहटाएंSarthak Lekh
aapki yah post padh kar tatha is blog par aakar bahut saari jankariyan milti hain.bahut hi achhi lagi aapki yah post.
जवाब देंहटाएं... behad gyaanvardhak va anukarneey abhivyakti !
जवाब देंहटाएंएक स्थान पर एक साथ इतने सारे संतों का परिचय..साधुवाद!!
जवाब देंहटाएंसाहित्य के बहाने आप इतिहास के भी परिचय करा रहे हैं.. बहुत सार्गर्भित आलेख है..
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