पक्षियों का प्रवास-१
मनोज कुमार
पक्षियों की दुनियाँ वड़ी विचित्र है। पक्षी प्रकृति पदत्त सबसे सुन्दर जीवों की श्रेणी में आते हैं। इनसे मानव के साथ रिश्तों की जानकारी के उल्लेख प्राचीनतम ग्रंथों में भी मिलते हैं। किस्सा तोता मैना का तो आपने सुना ही होगा। इन किस्सों में आपने पाया होगा कि राजा के प्राण किसी तोते में बसते थे। फिर राम कथा के जटायु प्रसंग को कौन भुला सकता है। कबूतर द्वारा संदेशवाहक का काम भी लिया जाता रहा है। कहा जाता है कि मंडन मिश्र का तोता-मैना भी सस्वर वेदाच्चार करते थे। कई देवी देवताओं की सवारी पक्षी हुआ करते थे। सारांश यह कि पक्षियों का जीवन विविधताओं भरा अत्यंत ही रोचक होता है। पक्षियों के जीवन की सर्वाधिक आश्चर्यजनक घटना है उनका प्रवास। अंग्रेज़ी में इसे माइग्रेशन कहते हैं। शताब्दियों तक मनुष्य उनके इस रहष्य पर से पर्दा उठाने के लिए उलझा रहा। उत्सुकता एवं आश्चर्य से आंखें फाड़े आकाश में प्रवासी पक्षियों के समूह को बादलों की भांति उड़ते हुए देखता रहा। अनेको अनेक जीवों में प्रवास की घटना देखने को मिलती है, पर पक्षियों जैसी नहीं, जो इतनी दूर से एक देश से दूसरे देश में प्रवास कर जाते हैं। इस रहस्यमय यात्रा में पक्षी कहां जाते हैं इस कौतूहल को दूर करने के लिए मनुष्यों ने दूरबीन, रडार, टेलिस्कोप, वायुयान आदि का प्रयोग कर जानकारी एकत्र करना शुरु कर दिया। यहां तक कि जाल में उन्हें पकड़ कर, उनके ऊपर बैंड या रंग लगा कर अध्ययन किया गया। तब जाकर इस रहस्यमय घटना के बारे में पर्याप्त जानकारी मिली।
साधारणतया तो पक्षियों के किसी खास अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह जाने की घटना को पक्षियों का प्रवास कहा जाता है। पर इस घटना को वातावरण में किसी खास परिवर्तन एवं पक्षियों के जीवनवृत्त के साथ भी जोड़कर देखा जा सकता है। पक्षियों का प्रवास एक दो तरफा यात्रा है और यह एक वार्षिक उत्सव की तरह होता है, जो किसी खास ऋतु के आगमन के साथ आरंभ होता है और ऋतु के समाप्त होते ही समाप्त हो जाता है। यह यात्रा उनके गृष्मकालीन और शिशिरकालीन प्रवास, या फिर प्रजनन और आश्रय स्थल से भोजन एवं विश्राम स्थल के बीच होती है। मातृत्व का सुखद व सुरक्षित होना अनिवार्य है। ऐसा मात्र इंसानों के लिए हो ऐसी बात नहीं है। सुखद व सुरक्षित मातृत्व पशु-पक्षी भी चाहते हैं। इस बात का अंदाज़ा साइबेरिया से हज़ारों किलोमीटर दूर का कठिन रास्ता तय कर हुगली, पश्चिम बंगाल पहुंचे साइबेरियन बर्ड को देख कर लगाया जा सकता है। प्राणी विशेज्ञों की राय है कि ये पक्षी मात्र जाड़े से सुरक्षित व सुखद मातृत्व के लिए यह दूरी तय कर यहां पहुंचते हैं।
प्रवासी यात्रा में पक्षियों की सभी प्रजातियां भाग नहीं लेतीं। कुछ पक्षी तो साल भर एक ही जगह रहना चाहते हैं। और कई हज़ारों मील की यात्रा कर संसार के अन्यत्र भाग में चले जाते हैं। प्रकृति की अनुपम देन पंखों की सहायता से वे संसार के दो भागों की यात्रा सुगमता पूर्वक कर लेते हैं। इनकी सबसे प्रसिद्ध यात्रा उत्तरी गोलार्द्ध से दक्षिण की तरफ की है। गृष्म काल में तो उत्तरी गोलार्द्ध का तापमान ठीक-ठीक रहता है, पर जाड़ों में ये पूरा क्षेत्र बर्फ से ढ़ंक जाता है। अतः इस क्षेत्र में पक्षियों के लिए खाने-पीने और रहने की सुविधाओं का अभाव हो जाता है। फलतः वे आश्रय की तलाश में भूमध्य रेखा पार कर दक्षिण अमेरिका या अफ्रीका के गर्म हिस्सों में प्रवास कर जाते हैं। अमेरिकी बटान (गोल्डेन प्लोवर) आठ हज़ार मील की दूरी तय कर अर्जेन्टीना के पम्पास क्षेत्र में नौ महीने गृष्म काल का व्यतीत करते हैं। इस प्रकार वे प्रवास कर साल भर गृष्म ऋतु का ही आनंद उठाते हैं। उन्हें जाड़े का पता ही नहीं होता। इसी प्रकार साइबेरिया के कुछ पक्षी भारत के हिमालय के मैदानी भागों में प्रवास कर जाते हैं। हुगली के हरिपाल जैसे अनजान व शांत इलाके में ये पक्षी आकर तीन से चार माह का प्रवास करते हैं। इस दौरान वे प्रजनन की क्रिया संपन्न करते हैं। बच्चों को जन्म देने के बाद वे पुन: वापस लौट जाते हैं। उत्तर प्रदेश के भी कई वन्य विहार, नदियों, झीलों आदि में ये अपना बसेरा बना लेते हैं। हंस (हेडेड गोज), कुररी (ब्लैक टर्न), चैती, छेटी बतख (कामन टील), नीलपक्षी (गार्गेनी), सराल (इवसलिंग), सिंकपर (पिनटेल) आदि पक्षी न सिर्फ दिखने में खूबसूरत होते हैं बल्कि अपनी दिलकश अदाओं के लिए भी जाने जाते हैं।
दक्षिणी गोलार्द्ध के कुछ पक्षी उत्तर की ओर वर्षा ऋतु में प्रवास कर जाते हैं। पुनः सूखा मौसम आते ही वापस अपने क्षेत्र में लौट आते हैं। कुछ पक्षियों में पूर्व से पश्चिम या इसके विपरीत प्रवास होता है। तेलियर (स्टर्लिंग) जाड़े से बचने के लिए पूर्वी एशिया के अपने प्रजनन क्षेत्र से अटलांटिक तटों की ओर चले जाते हैं।
बड़े और ऊंचे पहाड़ों के उपर रहने वाले पक्षी ऋतुओं में परिवर्तन के साथ ही ऊपर से नीचे, और नीचे से ऊपर अपना प्रवास बदलते रहते हैं। गर्मी में तो ये पहाड़ों पर रहते हैं, पर जाड़े में नीचे चले आते हैं। प्रायः यह यात्रा छोटी दूरी की होती है। इस तरह की यात्रा अर्जेन्टीना के एडिस पहाड़ों पर पनडुब्बी (ग्रेब्स) एवं टिकरी (कूट्स) तथा ग्रेट ब्रिटेन के बैगनी अबाबीलों (स्वैलोज) पक्षियों में पाई जाती है। मौसम का असर इन पक्षियों पर इतना अधिक होता है कि इनकी भूरे रंग की पक्षति (प्लुमेज) सफेद हो जाती है और इनका आहार भी बदल जाता है। जाड़े में ये कीट-पतंगों की जगह टहनी पत्तों के खाकर अपना गुजारा करते हैं।
कुछ पक्षियों में आंशिक प्रवास देखने को मिलता है। इनका प्रवास बहुत कम समय के लिए होता है। ये दूसरे भाग के पक्षियों से मिलने-जुलने के लिए जाते हैं। भेंट-मुलाक़ात कर ये अपने घर वापस आ जाते हैं। कुछ प्रवास काफी अनियमित होते हैं। जैसे बगुलों (हेरोन्स) में प्रजनन के बाद व्यस्क एवं शिशु पक्षी भोजन की तलाश एवं शत्रुओं से रक्षा के लिए सभी दिशाओं में अपने गृहस्थल को छोड़ निकल पड़ते हैं। यह यात्रा सैकड़ों मीलों की हो सकती है।
रोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंवाकई पक्षियों की दुनिया मजेदार है
मनोज जी, मै ही नहीं समस्त व्लाग जगत आपका आभारी रहेगा इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए
जवाब देंहटाएंइस गुणवत्ता को सैल्यूट!
जवाब देंहटाएंआगे की कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी।
@ गिरिजेश राव
जवाब देंहटाएंआज सुबह-सुबह मेल खोलने के साथ इस पर नज़र पड़ते ही मन उत्साह से भर गया।
गिरिजेश राव जी, यह मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण है आप नहीं समझ सकते। ये पंक्तियां और अधिक मेहनत करने को प्रेरित करती हैं।
सादर,
मनोज
@ सुनिल जी
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन हमें और प्रेरित करता है कि कुछ अच्छा और नया करें। आभार।
@ एम. वर्मा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
बहुत ही रोचक और दिलचस्प जानकारी दी आपने..आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां -एक बात चेक कर बताईयेगा -साईबेरियन क्रेन कहाँ नीड निर्माण करती हैं ? साईबेरिया में या भरात में जैसा आपने इंगित किया
जवाब देंहटाएं@ समीर जी
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आभारी हूं।
@ अरविंद मिश्र जी
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आभारी हूं।
साइबेरिया तो उनका घर है, हमारे यहां तो बस ये मेहमान हैं। पक्षियों का यहाँ पहुँचना अर्थात् हमारे उद्यान में चहचहाट भरे विराट् महोत्सव का आगाज। पर जान पर खेलते हुए ये पक्षी, यहां अपना आशियां कैसे बनाते हैं, इन्हें देखकर समझा जा सकता है कि नीड़ का निर्माण कितनी जटिल प्रक्रिया है और उसे कितनी सरलता से पक्षियों द्वारा पूरा किया जाता है। इनकी बस्ती की विस्तृत जानकारी तो इनकी विदाई के बाद ही तय हो पाती है। तिनकों से सजे वीरान आशियाने इनके गुजरे वक्त के चश्मदीद गवाह होते हैं। उम्मीदों के तिनकों से विश्वास से घरौंदे बनाते ये बेजुबान ढेरों संदेश दे जाते हैं। भारी मन से गन्तव्य लौटते हुए मानो कहते हैं
चल उड़ जा रे पंछे कि अब ये देश हुआ बेगाना ......
मनोज जी
जवाब देंहटाएंपक्षियों के प्रवास पर जानकारी देकर आपने हमें क्रतार्थ किया है , यह निश्चित है की यह भी प्रकृति का एक महत्वपूर्ण अंग हैं , हमें इनकी संवेदना को समझना चाहिए और इनसे प्यार करना चाहिए ,
सुंदर पोस्ट .....शुक्रिया
bahut achchha post hai aapkaa jaankaarion se baharaa.........aise hii sabkaa gyanvardhan karte rahiye .......shubhakamnaaye
जवाब देंहटाएं@ केवल राम जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा शब्द आपने प्रयोग किया -- "संवेदना"। हम इनका शिकार करते हैं, इनकी जान ले लेते हैं, जिसके कारण इनकी संख्यां में बीतते दिनों के साथ कमी आ रही है।
@ ana
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद!
bahut rochak jaankaari...achchhi shrinkhala prarambh ki hai
जवाब देंहटाएंजो पक्षी जहां घोसला बनाते हैं वही उनका मूल देश होता है!आपने संपादित कर लिया अच्छा लगा
जवाब देंहटाएं@ संगीता जी
जवाब देंहटाएंअय आलेख आपको पसंद आया, यह हमारा उत्साहवर्धन करता है! धन्यवाद!
6/10
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ज्ञानवर्धक पोस्ट
सुन्दर प्रस्तुति
ऐसी ही कई और पोस्ट की अपेक्षा
@ उस्ताद जी
जवाब देंहटाएंसर कहा था ना, कि आपकी कसौटी पर खड़ा उतरूंगा। पर हमें ६० % से संतुष्टि नहीं है। बिना आपसे डिस्टिंक्शन लिए मानूंगा नहीं। इस आलेख के एक दो अंक और आने दीजिए।
आभार आपका।
आपका मूल्यांकन हमारा मार्गदर्शक है।
आज तो पक्षियों के प्रवास के बारे मे बहुत ही रोचक जानकारी दी……………आभार्।
जवाब देंहटाएंग्यान वर्द्धक पोस्ट। हमारे यहाँ भी सतलुज झील के किनारे 100 से अधिक पक्षिओं की प्रजातियां हर साल आती हैं। आज कल नण्गल मे खूब रोनक है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं@ वंदना जी
जवाब देंहटाएंउत्साह्वर्धन के लिए आभार!
@ निर्मला दीदी
जवाब देंहटाएंस्नेह बनाए रखिएगा!
rochak jaankaari!
जवाब देंहटाएंwould gladly wait fot the next post of the series!!!!!
regards,
मेहनत को नमन !
जवाब देंहटाएंपंक्षियों के सौन्दर्य , उनकी स्वाभाविकता , नैसर्गिक क्षमता और उनकी उपयोगिता को सामने लाने के लिए आभार !
अगली कड़ियों का इंतिजार है !
... behatreen post !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी दी हैं .... आभार
जवाब देंहटाएं@अनुपमा जी, उदय जी
जवाब देंहटाएंआपने पोस्ट पसंद किया, आपका आभार। कल ही अगली कड़ी पेश करूंगा।
@ अमरेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंआपसे पहले भी कहा था, आपका यहां आना हमारा मनोबल बढाता है। आपका बहुत बहुत आभार।
मनोज जी, विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. आपको बताने की आवश्यकता नहीं है. आज का आपका आलेख पढकर लगा कि आपके अंदर का जीव विज्ञानी अंतर्मन विद्रोह कर बैठा है आपसे. यह एक ऐसा अनुभव था मानो डिस्कवरी चैनेल पर कोई फ़िल्म चल रही हो और आपकी कमेंटरी सुनाई दे रही है. आपकी अनुमति से यह कॉपी करके रख रहा हूँ. बिटिया के पाठ्यक्रम के लिये! ऋंखला की अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी. आभार!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंBeautiful and informative post--Thanks.
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बहुत ही महत्वपूर्ण संकलन। आभार………
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक जानकारी !!
जवाब देंहटाएंउधर मातृत्व के लिए इतनी लंबी यात्रा और इधर भ्रूण-हत्या!
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक और दिलचस्प जानकारी दी आपने..आभार.
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक और रोचक आलेख। ब्लग-जगत में अब कुछ स्तरीय सामग्री का प्रकाशन प्रारंभ हो रहा है।...आभार।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक और रोचक आलेख। ब्लग-जगत में अब कुछ स्तरीय सामग्री का प्रकाशन प्रारंभ हो रहा है।...आभार।
जवाब देंहटाएं@ महेन्द्र वर्मा जी
जवाब देंहटाएंआपको स्तरीय आलेख लगा यह जानकर हमाराम नोबल काफी बढा। आभार आपका।
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जवाब देंहटाएंइस पोस्ट ने तो मेरा मन ही मोह लिया!
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पड़कर मजा आ गया.... ज्ञानार्जन भी हुआ.... .पक्षी मनुष्य के मनोविज्ञान को समझने का एक बहुत ही सशक्त माध्यम है.... कई बार हम पक्षियों की तरह व्यवहार करते हैं... मौसम के अनुसार प्रवास भी उसमे से एक है....मुझे पक्षियों को पड़ना अच्छा लगता है.....
जवाब देंहटाएंशत शत धन्यवाद...