शनिवार, 23 जुलाई 2011

सूर्य का स्वागत


दुष्यंत कुमार त्यागी

सूर्य का स्वागत


आँगन में काई है,
दीवारें चिकनी हैं, काली हैं,
धूप से चढ़ा नहीं जाता है,
ओ भाई  सूरज! मैं क्या करूँ?
मेरा नसीबा ही ऐसा है!

खुली हुई खिड़की देखकर
तुम तो चले आए,
पर मैं अँधेरे का आदी,
अकर्मण्य ... निराश ...
तुम्हारे आने का खो चुका था विश्वास।

पर तुम आए हो स्वागत है!
स्वागत! ... घर की इन काली दीवारों पर!
और कहाँ?
हाँ, मेरे बच्चे ने
खेल-खेल में ही यहाँ काई खुरच दी थी
आओ यहाँ बैठो,
और मुझे मेरे अभद्र सत्कार के लिए क्षमा करो।
देखो! मेरा बच्चा
तुम्हारा स्वागत करना सीख रहा है।
                                (सूर्य का स्वागत से ..)

9 टिप्‍पणियां:

  1. दुष्यंत जी की ...नई किरण सी आस जगाती.. सुंदर रचना पढ़वाने पर आभार ..मनोज जी ..

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  2. दुष्यंत कुमार जी द्वारा विरचित कविता 'सूर्य का स्वागत' इस अकाट्य सत्य को उद्भभाषित करता है कि नैराश्य एवं अवसाद भरे जीवन में सूर्य का उदित होना आशा और विश्वास की नई किरण पैदा करता है एवं अपने आगमन के साथ-साथ मनुष्य की जीवन दृष्टि को भी प्रतिदिन एक नई दिशा और दशा प्रदान करता है। जन मानस की भावनाओं को अपने शब्दों के माध्यम से जागृत करने वाले कवि दुष्यंत कुमार जी की कविता प्रस्तुत करने के लिए आपका विशेष आभार। बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। धन्यवाद।

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  3. सूर्य का स्वागत ...अँधेरे में आशा की एक किरण ... इस रचना को पढवाने के लिए आभार

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  4. अंधेरे मे आशा का संचार करती एक उत्कृष्ट कविता।

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  5. किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ.....????

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  6. soory ka swagat....nirash se asha ki taraf agrsar karti sunder rachna hame padhane ke liye shukriya.

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