दुष्यंत कुमार त्यागी
-- रात के घने काले समय में
मेरी हथेली पर
तुमने बनाया है जो सूरज
-- मेंहदी से
कहीं सुबह तक रचेगा
लाल होगा!
-- यों उतावले मत हो
रचेगा ज़रूर
सूरज है
तुमने बनाया है!
-- लेकिन प्रिय,
अभी तो अंधेरा है
नमी है हथेली में
सुबह की प्रतीक्षा है!
(आवाजों के घेरे में .. से)
दुष्यंत कुनार त्यागी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। साहित्य-जगत में अपनी रचनाओं के माध्यम से ये वो मुकाम और मंजिल हासिल करने में कामयाब हुए हैं जिसे आज तक किसी ने हासिल नही किया है। इस कविता को प्रस्तुत करने के लिए विशेष धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह एक अभूतपूर्व कविता पढ़कर दिन बन गया....
जवाब देंहटाएंसुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर वह |
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दरभाव .आभार आपका भाई साहब .
जवाब देंहटाएंउसने बना भेजा है चाँद और सूरज
जवाब देंहटाएंएक ही पन्ने पे
क्या अनुमान लगाऊं मैं
इस सन्देश का
चाहती है क्या रुकना रात भर
या कहना चाहती है चाँद वो है
और उसका सूरज मैं
या चाहती है
चाँद से बदन में
भर दूं ऊष्णता सूरज की
के चांदनी भी तप जाये
और भोर की किरने दे
शीतलता मन की