अरे अब ऐसी कविता लिखो
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि जिसमें छंद घूमकर आय
घुमड़ता जाय देह में दर्द
कहीं पर एक बार ठहराय
कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूं
वही दो बार शब्द बन जाय
बताऊं बार-बार वह अर्थ
न भाषा अपने को दोहराय
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि कोई मूड़ नहीं मटकाय
न कोई पुलक-पुलक रह जाय
न कोई बेमतलब अकुलाय
छंद से जोड़ो अपना आप
कि कवि की व्यथा हृदय सह जाय
थामकर हंसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाय ।
सुन्दरतम.
जवाब देंहटाएंअरे अब ऐसी कविता लिखो
जवाब देंहटाएंकि जिसको जन झूम झूम कर गाय!!!
कविता के लिए जब चुनौती का समय हो ऐसी कवितायेँ आशा का संचार करती हैं..
जवाब देंहटाएंआभार...
जवाब देंहटाएंअच्छा।
जवाब देंहटाएंIndeed a great creation Manoj ji . A poem should be the way you described....sweet...loving...appealing and pleasing as well.......
जवाब देंहटाएंइसी लिए आज कविता यथार्थ के धरातल पर लिखी जा रही हैं ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंwah.....bemisaal.
जवाब देंहटाएंरघुवीर सहाय जी की कविता को पढना हमेशा सुखद एवं विचारपूर्ण रहता है.अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई ...
जवाब देंहटाएंकोई शब्द ही नहीं है, कविता की श्रेष्ठता के लिए। बस अमृतपान सदृ
जवाब देंहटाएंश्य ही है। बहुत ही श्रेष्ठ।
Ajit gupta ji ne bahut sahi kaha hai ...mere man mein bhi kuch aise hi shabd aate hai
जवाब देंहटाएं"ब्लॉगर ajit gupta ने कहा…
कोई शब्द ही नहीं है, कविता की श्रेष्ठता के लिए। बस अमृतपान सदृ
श्य ही है। बहुत ही श्रेष्ठ।"
थामकर हंसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाय ।