दुष्ट के साथ शादी क्यों की?
अनामिका
सुधीजनों को अनामिका का प्रणाम. पिछले अंक में मैंने “तुम इतने बड़े होकर भी खो जाते हो रामा !.” शीर्षक से महादेवी जी के बचपन के प्रसंग प्रस्तुत किये थे...उन्ही को आगे बढ़ाते हुए कुछ और रोचक बातें......
एक बार पड़ोस से किसी कुत्ती ने बच्चे दिए . जाड़े की रात का सन्नाटा और ठंडी हवा के झोंको के साथ पिल्लों की कूँ - कूँ की ध्वनि करुणा का ऐसा संचार करने लगी जो इनके कोमल ह्रदय के लिए असह्य हो उठी. पिल्लों को घर उठा लाने के लिए ये इतना जोर -जोर से रोने लगीं कि सारा घर जग गया. अंत में पिल्ले घर लाये गए तभी ये शांत हुई . इनके इस स्वभाव में बाद में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ.
इस करुण-कोमल स्वभाव के कारण जीवन और जगत की किस करुण स्थिति में इनके ह्रदय का स्पंदन झंकृत नहीं हुआ ; सामने आई हुई किस रुक्षता को वे अपनी सहज स्निग्धता से सरस नहीं कर देना चाहतीं ; ऐसी कौन सी पाषाणी कठोरता है जो इनकी मूलाधार करुणा के स्पर्श से कांप नहीं उठती ; सत्य और समूह की रक्षा के लिए विद्रोह की किस ज्वाला को इन्होने अपनी त्यागमयी तपस्या की आंच नहीं दी - यह बता सकना कठिन है -
सजनी मैं उतनी करुण हूँ, करुण जितनी रात
सजनी मैं उतनी सजल जितनी सजल बरसात !
केवल सात वर्ष की अवस्था में ही पूजा आरती के समय माँ से सुने हुए मीरा, तुलसी आदि के तथा उनके स्वरचित पदों के संगीत से मुग्ध होकर इन्होंने पद - रचना प्रारम्भ कर दी थी. काव्य की प्रथम रचना का प्रारंभ इस प्रकार हुआ - 'आओ प्यारे तारे आओ, मेरे आँगन में छिप जाओ !' परन्तु इसके बाद की लिखी पूर्ण रचना बृजभाषा में समस्यापूर्ति है .
प्रयाग पढने आने के पहले से ही आप 'सरस्वती' पत्रिका से परिचित हो चुकी थीं. महाकवि गुप्तजी की रचनाएँ भी देख चुकी थीं. बोलने की भाषा में कविता लिखने की सुविधा इन्हें आकर्षित करने लगी थी. वस्तुतः इन्होने 'मेघ बिना जल वृष्टि भई है' को खड़ी बोली में इस प्रकार रूपांतरित किया -
हाथी न अपनी सूंड में यदि नीर भर लाता अहो,
तो किस तरह बादल बिना जलवृष्टि हो सकती कहो ?
'अहो', 'कहो' देखकर ब्रजभाषा प्रेमी इनके पंडित जी ने कहा - 'अरे ये यहाँ भी पहुँच गए !'
उनका आशय गुप्त जी से था ! परन्तु इन्होने इसे अनसुना कर दिया और ब्रजभाषा छोड़ खड़ी बोली को अपना लिया. खड़ी बोली की पूर्ण रचना अपने आठ वर्ष की अवस्था में लिखी थी, जो 'दीपक' पर है.
इसी समय एक ऐसी घटना घटी जिसने महादेवीजी को इतना प्रभावित किया कि वे उस वेदना से कभी मुक्त नहीं हो सकीं. नौकर ने पत्नी को इतना पीटा कि वह लहू-लुहान होकर रोती-चिल्लाती जिज्जी (माँ) के पास दौड़ आई अन्यथा वह उसे मार ही डालता. गर्भिणी स्त्री के लिए काम-काज का भारी बोझ और ऊपर से ऐसी मार ! जिज्जी ने सहानुभूति के साथ उसकी गाथा सुनी और नौकर को बहुत डांटा - फटकारा .
सब शांत हो जाने पर महादेवी जी ने कहा - 'हाय, कितना पीटा है ! यह भी क्यों नहीं पीटती ? '
जिज्जी ने सहज ही कह दिया - 'आदमी मारे भी तो औरत कैसे हाथ उठा सकती है ? '
'और अगर तुमको बाबू इसी तरह मारें तो ?
- ना, ना बाबू ऐसा नहीं कर सकते. आर्यसमाजी होकर भी मेरे साथ सत्यनारायण की कथा सुनते हैं, बड़े अच्छे आदमी हैं. कोई कोई आदमी दुष्ट होते हैं.'
तो फिर इसने दुष्ट के साथ शादी क्यों की ?
- पगली, शादी तो घर के बड़े-बूढ़े करते हैं, यह बेचारी क्या करे ? अब कोई उपाय नहीं. '
इसके बाद थोड़ी देर तक एक -दूसरे को देखती रहीं, फिर जिज्जी ने जाने क्यों दीर्घ साँस ली और महादेवी जैसे अपने भीतर डूब गयी.
क्रमशः
मैं नीर भरी दुख की बदली
मैं नीर भरी दुख की बदली
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते
पलकों में निर्झरिणी मचली !
मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वासों से स्वप्न - पराग झरा,
नभ के नव रंग बनते दुकूल ,
छाया में मलय -बयार पली !
मैं क्षितिज-भ्रकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नवजीवन-अंकुर हो निकली !
पथ को न मलिन करता आना,
पद-चिन्ह न दे जाता आना,
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली !
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली !
एक महान कवयित्री श्रीमती महादेवी वर्मा जी की कवितायें व उनकी जीवनी प्रस्तुत करने के लिये बहुत बहुत बधाई…बस केवल माध्यमिक शिक्षा के दौरान "मेरा नया बचपन" शीर्षक वाली कविता हमने पढ़ी थी……धन्य हो ब्ळॉग जगत का कम से कम सभी तरह की रचनायें, साहित्यकारों, कवि कवयित्रियों के बारे मे जानकारी तो मिल जाती है।
जवाब देंहटाएंतुम इतने बड़े होकर भी खो जाते हो रामा के बाद आपकी यह प्रस्तुति भी अच्छी लगी । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी की संवेदनाओं उत्कीर्ण करने वाली उनके जीवन की घटनाओं को सरलता पूर्वक आपने प्रस्तुत किया है। बहुत ही सुबोध लेखन।
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी का लेखन जीवन दर्शन है संवेदना की इस साक्षात प्रतिमूर्ति ने साहित्य और जीवन के नए मूल्य हमारे सामने रखें हैं ....!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक आलेख. आभार. शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक आलेख.
जवाब देंहटाएंमहादेवीजी की करूणा और उनके कोमल स्वभाव को रेखांकित करती हुई आपकी यह प्रस्तुति अत्यंत सराहनीय है
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों बाल्यावस्था से ही जिस व्यक्तित्व ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया वह महादेवी जी का ही था ...उनके विषय में अतिअल्प जान भी,पता नहीं क्या कुछ था जो उनके व्यक्तित्व के सम्मुख श्रद्धानत करता था...
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो आजतक बहुत अधिक जानकारी नहीं उनके व्यक्तिगत जीवन के विषय में..ऐसे में यह सब पढना कैसा सुख दे जाता है, शब्दों में नहीं बता सकती...
कोटि कोटि आभार आपका...
बस सुनाती जाएँ...हम कान पाँतें बैठे हैं...
अच्छा काम हो रहा है। पढ़ रहे हैं लगातार। प्रंशसनीय प्रयास।
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के बारे में विस्तार से जानना अच्छा लगा ... आभार
जवाब देंहटाएंमहीयसी महादेवी वर्मा का साहित्य कलजयी है!
जवाब देंहटाएंशादी करके क्यों भला......होते हो तुम रूस्ट.....
जवाब देंहटाएंशादी करके सौम्य भी.......स्त्री होती दुस्ट.....
स्त्री होती दुस्ट ........लगाती पति में पलीता....
नहीं है कोई नर........जिसने नारी को जीता....
कह मनोज सब जानते......मत सहिये अपमान....
मेरी तो दुर्गति हुई........ तू खुद को पहचान....
शादी करके क्यों भला......होते हो तुम रूस्ट.....
जवाब देंहटाएंशादी करके सौम्य भी.......स्त्री होती दुस्ट.....
स्त्री होती दुस्ट ........लगाती पति में पलीता....
नहीं है कोई नर........जिसने नारी को जीता....
कह मनोज सब जानते......मत सहिये अपमान....
मेरी तो दुर्गति हुई........ तू खुद को पहचान....
यहाँ तो अदभुत दृश्यावली है ...
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के जीवन वृत्तांत के प्रसंग अत्यंत प्रेरक एवं रोचक हैं ! उन्हें उपलब्ध करा कर आप हम सभी पर बहुत उपकार कर रही हैं ! महादेवी जी की रचना 'मैं नीर भरी दुःख की बदली' मेरी अत्यंत प्रिय रचना है ! उसे पुन: पढ़ कर बेहद प्रसन्नता हुई ! इस श्रंखला के लिये आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमहीयसी महादेवी का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनो वंदनीय हैं !
जवाब देंहटाएंचर्चा हेतु आभार!
महान हस्तियाँ कभी कभी ही पैदा होती हैं ...और महा देवी जी की रचनाएं हमेशा मधुर, प्रवाह मय और करुना का सागर होती हैं .... आपका धन्यवाद उनके प्रसंगों को समेटने के लिए ...
जवाब देंहटाएंBadaa hee aanand aa raha hai ye sansmaran padhne me!
जवाब देंहटाएंएक महान कवयित्री श्रीमती महादेवी वर्मा जी की करुण और कोमल स्वभाव का परिचय देती सार्थक ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक आलेख.. . आभार
जवाब देंहटाएंmy fav poetess...
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