पथ मेरा निर्वाण बन गया
आदरणीय पाठक वृन्द को अनामिका का नमस्कार. मैं आप सब की बहुत आभारी हूँ कि आपने अब तक जीवन - विजयिनी महादेवी जी के जीवन के विभिन्न प्रसंगों का रसास्वादन करते हुए मेरा मनोबल बढाया और देखते ही देखते आज हम अहर्निश लक्ष्य पर संधान करते हुए इस श्रृंखला के अंतिम पड़ाव के निकट आ चुके हैं. तो चलिए जानते हैं इस श्रृंखला में छिपे माणिकों को ....
महादेवी जी की काव्य रचना का क्रम अटूट है, 'दीपशिखा' की भाँती 'प्रभा' चित्र-गीत-कृति पूर्ण हो चुकी है. इन्होने लिखा भी है - "जीवन की दृष्टि से मैं बहुधन्धी हूँ, अतः एकांत काव्य साधना का प्रश्न उठाना ही व्यर्थ होगा. साधारणतः मुझे भाव, विचार और कर्म का सौन्दर्य समान रूप से आकर्षित करता है, इसीसे किसी एक के जीवन की पूर्णता पा लेना मेरे लिए सहज नहीं. भाव और विचार जगत की सब सीमायें न छू सकने पर भी मेरे कर्मक्षेत्र की विविधता कम सारवती नहीं. साहित्य मेरे सम्पूर्ण जीवन की साधना नहीं है, यह स्वीकार करने में मुझे लज्जा नहीं . हमारे जीवन का धरातल इतना विषम है की एक पर्वत के शिखर पर बोलता है और दूसरा कूप की अतल गहराई में सुनता है. इस मानव समष्टि में, जिसमे शत-प्रतिशत असाक्षर और एक प्रतिशत से भी कम काव्य-मर्मज्ञ हैं, हमारा बौद्धिक निरूपण कुंठित और कलागत सृष्टि पंखहीन है. शेष के पास हम अपनी प्रसाधित कलात्मकता और बौद्धिक ऐश्वर्य छोड़कर व्यक्तिमात्र होकर ही पहुँच सकते हैं. बाहर के वैषम्य और संघर्ष में थकित मेरे जीवन को जिन क्षणों में विश्राम मिलता है, उन्ही को कलात्मक कलेवर में स्थिर कर मैं समय समय पर उनके पास पहुंचाती रही हूँ, जिनके निकट उनका कुछ मूल्य है. शेष जीवन को जहाँ देने की आवश्यकता है, वहां उसे देने में मेरा मन कभी कुंठित न होगा.
'विशाल साहित्य परिवार के हर्ष-शोक मेरे अपने हैं, परन्तु उससे बाहर खड़े व्यक्तियों की सुख-दुख कथा मुझे परायी नहीं लगती. अपने सुशिक्षित सुसंकृत विद्यार्थियों से साहित्यालोचन करके मुझे प्रसन्नता होती है, परन्तु अपने मलिन दुर्बल जिज्ञासुओं को वर्णमाला पढाने में मुझे कम सुख नहीं मिलता. जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैंने उस उपेक्षित संसार में बहुत कुछ भव्य पाया है, अन्यथा सभ्य समाज से इनती दूरी असह्य हो जाती. अनेक बार लोकगीत सुनकर ऐसा भी लगा है कि यह भाव मेरे गीत में होता. एक बहुत बड़े मानव समूह को हमें ऐसी दुर्दशा में रख छोड़ा है जहाँ साहित्य का प्रवेश कल्पना कि वस्तू है. वह समाज ह्रदय कि बात समझता है, पर व्यक्ति के माध्यम से. ऐसे समाज में काव्य पहुँचाने से अधिक महत्त्व का प्रश्न मनुष्य पहुँचाना है, जो अपनी सहज संवेदना से उनके ह्रदय तक पहुंचकर बुद्धि की खोज खबर ले सकें.
इस प्रकार साहित्य सृजन के अतिरिक्त सामाजिक तथा राष्ट्रीय कार्य-क्षेत्र में भी इन्होने बराबर भाग लिया है . महिला विद्यापीठ, साहित्यकार संसद, रंगवाणी आदि संस्थाओं की स्थापना और सम्बर्द्धना के साथ सम्पूर्ण भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को रंगमंच पर एकत्रित करने का सर्वप्रथम श्रेय इन्हीं को प्राप्त है. ग्रामीण जीवन के साथ निकट संपर्क रखकर इन्होने वहां के लोगों को शिक्षित करने की चेष्टा के साथ उनके सुख दुख में भी हाथ बंटाया है.
इनके संस्मरण-समन्वित रेखाचित्र जो 'अतीत के चलचित्र' तथा ' स्मृति की रेखाएं' में संग्रहीत हैं, इस सत्य के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. महादेवीजी ने इन रेखाचित्रों में किसी नेता, ऐतिहासिक व्यक्ति या किसी महान स्त्री पुरुष को न लेकर समाज के विपिन्न, अनाथ, अछूत, अशिक्षित तथा निम्न वर्ग के शोषित पात्रों को ही चित्रित किया है. निबंध, कहानी और संस्मरण तीनों की विशेषताओं का इसमें एक साथ ही आनंद मिल जाता है.
'पथ के साथी' के संस्मरणात्मक रेखाचित्रों में इन्होने अपने समकालीन कवियों के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं प्रभावों और मनोभूमियों को स्पष्ट करने के साथ साथ अपने और उनके बीच के आत्मीय संबंधों का भी उल्लेख किया है. संस्मरण अपनी स्निग्धता के साथ आत्मीयता के सागर तक पहुंचा देता है.
'श्रृंखला की कड़ियाँ' के सामाजिक निबंधों के अतिरिक्त इन्होने महत्त्वपूर्ण विवेचनात्मक तथा ललित निबंध भी लिखे हैं, जो क्रमशः 'साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध और क्षणदा में संकलित हैं. विवेचनात्मक निबंधों में युगीन साहित्य वृतियों का विश्लेषण करते हुए भी इन्होने सनातन साहित्यिक मूल्यों का निर्देश देकर साहित्य के स्थायी मानदंडों का ही निष्पक्ष निरूपण किया है. युगीन समीक्षा को भी प्रेरित और प्रभावित करने में
इनकी समीक्षा सफल रही है. विशेषता यह है कि काव्य कला के साथ अन्य सहोदरा ललित कलाओं के विषय में भी इनका विवेचन विश्वसनीय एवं मार्मिक है.
ललित निबंधों में महादेवी जी ने उक्ति-वैचित्र्य, सूक्त कथन तथा लक्षणा-व्यंजना एवं ह्रदय ग्राह्य जिस सरस चित्रमयी अलंकृत शैली का सूत्रपात किया है, वह बहुत ही प्रभावोत्पादक और उदात्त है.
और अब इस लेख के अंत में महादेवी जी के 'सांध्यगीत' से ली एक सुप्रसिद्ध कविता आपके समक्ष ....
पथ मेरा निर्वाण बन गया
पथ मेरा निर्वाण बन गया !
प्रति पग शत वरदान बन गया !
आज थके चरों ने सूने तम में विद्युतलोक बसाया,
बरसाती है रेणु चांदनी की यह मेरी धूमिल छाया,
प्रलय-मेघ भी गले मोतियों
की हिम-तरल उफान बन गया !
अंजन -वन्दना चकित दिशाओं ने चित्रित अवगुंठन डाले
रजनी ने मक्रत-वीणा पर हँस किरणों के तार-संभाले,
मेरे स्पंदन से झंझा का
हर-हर लय-संधान बन गया !
पारद-सी गल हुई शिलाएं दुर्गम नभ चन्दन-आँगन-सा,
अंगराग घनसार बनी रज, आतप सौरभ -आलेपन-सा,
शूलों का विष मृदु कलियों के
नव मधुपर्क समान बन गया !
मिट-मिटकर हर सांस लिख रही शत-शत मिलन-विरह का लेखा,
निज को खोकर निमिष आंकते अनदेखे चरणों की रेखा,
पल भर का वह स्वप्न तुम्हारी
युग युग की पहचान बन गया !
देते हो तुम फेर हास मेरा निज करुणा-जलकणमय कर,
लौटाते ही अश्रु मुझे तुम अपनी स्मित के रंगों में भर,
आज मरण का दूत तुम्हें छू
मेरा पाहुन प्राण बन गया !
दीपशिखा
सीखने के लिये काफी कु्छ है यहा...
जवाब देंहटाएंwww.sheelgupta.blogspot.com
आधुनिक गीत काव्य में महादेवी जी का स्थान सर्वोपरि है। उनकी कविता में प्रेम की पीर और भावों की तीव्रता वर्तमान होने के कारण भाव, भाषा और संगीत की जैसी त्रिवेणी उनके गीतों में प्रवाहित होती है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी के गीतों की वेदना, प्रणयानुभूति, करुणा और रहस्यवाद काव्यानुरागियों को आकर्षित करते हैं। पर इन रचनाओं की विरोधी आलोचनाएँ सामान्य पाठक को दिग्भ्रमित करती हैं। आलोचकों का एक वर्ग वह है, जो यह मानकर चलते हैं कि महादेवी का काव्य नितान्त वैयक्तिक है। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा, कृत्रिम और बनावटी है।
जवाब देंहटाएंThanks for this good post on Mahadevi Verma.
अच्छी प्रस्तुति
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जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के बारे में संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित जानकारी.. आच्छी लग रही है आपकी श्रृंखला
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चल रही है श्रृंखला………महादेवी जी को जानना सुखद लग रहा है।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमहादेवीजी के बारे में विस्तारपूर्वक पढकर काफी प्रसन्नता हो रही है ....आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी श्रृंखला है!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी मिली महादेवी जी के बारे में आपकी इस पोस्ट से.
जवाब देंहटाएंआपका इस ब्लॉग पर दिया गया फोटो अलग सा है,अच्छा है.
महादेवी जी के साहित्य पर आपका यह चिन्तनपूर्ण विश्लेषण बहुत महत्व रखता है .
जवाब देंहटाएंकितनी विस्तृत वृहद जानकारी मिल रही है महादेवी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में आपकी इस श्रंखला के माध्यम से ! बहुत आनंद आ रहा है ! अगली कड़ी की प्रतीक्षा है ! ज्ञानवर्धक आलेख के लिये धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंयह एक ऐसी श्रृंखला है जो मुझे काफ़ी पसंद है।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंAap isee tarah likhtee rahengee yahee wishwaas hai!
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