प्रस्तुत कर्ता : मनोज कुमार
गांधी जी को बच्चों की संगति में बड़ा आनंद आता था। ब्च्चों के साथ को वे भगवान का साथ मानते थे। वे बच्चों के साथ हंसते-खेलते, विनोद करते थे।
एक मद्रासी बच्चे ने एक बार उनसे ज़िद की, “कॉफ़ी पिलाओ!”
ख़ुश होकर बापू ने ख़ुद ही कॉफ़ी बनाई। उस बच्चे को पिलाया। पर बापू इतने से ही कहां संतुष्ट होने वाले थे। बड़े प्यार से उस बच्चे से उन्होंने पूछा, “क्या तेरे लिए और कुछ बना दूं? इडली खाएगा? दोसा बना दूं?”
गांधी जी बहुत अच्छे रसोइया थे। यह बात जग ज़ाहिर थी। जीवन की सब उपयोगी बातें वे जानते थे।
1926 में घटित एक मज़े का किस्सा आपको बताता हूं। बापू खादी के प्रचार-प्रसार के दौरे पर से आराम की दृष्टि से कुछ दिनों के लिए साबरमती आश्रम लौट कर आए थे। साबरमती नदी कलकल-छलछल करती हुई बह रही थी। आश्रम के सदस्य उस नदी में स्नान करने जाते थे। एक दिन बच्चों ने उन्हें घेर लिया। एक बच्च बोला, “बापू जी, आज आपको भी तैरने चलना चाहिए।”
बापू मुस्कुराने लगे।
दूसरा बच्चा बोला, “सचमुच! मज़ा आएगा!! आज बापू को लिए बिना हम नहीं छोड़ेंगे।”
बापू हंस पड़े।
तीसरा बच्चा विनोद करने लगा, “लेकिन बापू तैरना भूल गए होंगे!”
बापू ठहाका लगाने लगे।
पहला बच्चा बोला, “तैरना कोई भूलता है? बापू, आप चलेंगे न? हमें देखना है आप कैसे तैरते हैं?”
बापू ने कहा, “लोकमान्य तिलक अच्छे तैराक थे। गंगा की बाढ़ में वे कूद पड़े थे। तैरकर गंगा पार गए।”
दूसरा बच्चा बोला, “परन्तु लोकमान्य ने तो अभ्यास किया था। बापू, आज आप हमें तैरकर दिखाइए न। बड़ा मज़ा आएगा!”
बापू हंस रहे थे।
तीसरा बच्चा बोला, “बापू सिर्फ़ हंस रहे हैं। वे नहीं चलेंगे। ... चलिए न बापू। आज हमारे साथ तैरने चलिए न।”
गांधी जी इन्कार नहीं कर सके। जाने के लिए तैयार हो गए। बच्चे ख़ुश हो गए। तालियां बजने लगी।
बापू आगे-आगे, पीछे-पीछे सारा आश्रम। साबरमती नदी भी मानों ख़ुशी से ऊछल पड़ी हो। उसकी तरंगें नाच रहीं हो। आज बापू से उनका सामना जो होने वाला था। ब्रिटिश सत्ता से जूझने वाला वीर योद्धा आज साबरमती की लहरों से खेलनेवाला था।
बच्चे पानी में उतरे। एक चिल्लाया, “बापू, आइए, चलिए।”
गांधी जी कूद पड़े। उन्होंने सतर मारना शुरू किया। सप-सप पानी काटते हुए वे आगे बढ़ रहे थे। बच्चे आनंदविभोर होकर बापू की जयघोष करने लगे। तालियां बजाने लगी। कुछ तो गांधी जी का पीछा करके उन्हें छूने के लिए चल पड़े। सबको बड़ा मज़ा आया। सब आनंद से प्रफुल्लित थे।
55 वर्ष की आयु में गांधी जी ने डेढ़ सौ गज की दूरी तैरकर पार की। बच्चों की ख़ुशी के लिए बापू तैरने गए थे। ऐसे थे बापू! सबके लाड़ले राष्ट्रपिता!
Waqayee bada prerak prasnag hai!
जवाब देंहटाएंबच्चों के साथ सुंदर संग बापू का रोचक प्रसंग रच रहा है.
जवाब देंहटाएंरोचक प्रसंग
जवाब देंहटाएंसचमुच प्रेरक!!
जवाब देंहटाएंएकदम नया प्रसंग, बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंवाह ! गाँधी जी तैरना ही नहीं जानते थे, बच्चों को खुश करना भी...आभार इस सुंदर प्रसंग के लिये
जवाब देंहटाएंएकदम नया प्रसंग , पहले नहीं पढ़ा कभी. इसके लिए धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंgandhiji key barey mein nayi jankari mili,dhanyawaad
जवाब देंहटाएंबिलकुल नई बात जान प्रतीत होती है .
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