आदरणीय सुधी जनों को अनामिका का नमन ! पिछले चार अंकों में आपने कथासरित्सागर से शिव-पार्वती जी की कथा, वररुचि की कथा पाटलिपुत्र (पटना)नगर की कथा, और उपकोषा की बुद्धिमत्ता पढ़ी.
कथासरित्सागर को गुणाढय की बृहत्कथा भी कहा जाता है. कथासरित्सागर की कहानियों में अनेक अद्भुत नारी चारित्र भी हैं और इतिहास प्रसिद्द नायकों की कथाएं भी हैं. कथासरित्सागर कथाओं की मंजूषा प्रस्तुत करता है. इसी श्रृंखला को क्रमबद्ध करते हुए पिछले अंक में वररुचि के मुंह से बृहत्कथा सुन कर पिशाच योनी में विंध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और वररुचि की प्रशंसा करते हुए उससे उसकी आत्मकथा सुनाने का आग्रह करता है. वररुचि काणभूति को अपनी आपबीती सुनाते हुए अपनी पत्नी उपकोषा के चरित्र और बुद्धिमत्ता की कथा सुनाता है . अब आगे...
योगनंद की कथा
अपनी पत्नी उपकोषा के चरित्र की कथा सुना कर वररुचि ने काणभूति को अपने जीवन की शेष कहानी बताई, जो इस प्रकार थी -
मैंने हिमालय पर रह कर भगवान् शिव की अराधना की. वे प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे पाणिनि के व्याकरण में पारंगत होने का वरदान दिया. तब मैंने पाणिनि व्याकरण पर वार्तिक की रचना की.
घर आया, तो मुझे अपने माता तथा अन्य लोगों से उपकोषा के अद्भुत चरित और शील की कथा सुनने को मिली. मेरे मन में उसके लिए स्नेह और आदर बढ़ गया. उपाध्याय वर्ष को जब पता चला कि मैंने पाणिनि का व्याकरण न केवल अच्छी तरह समझ लिया है, उस पर वार्तिक की रचना तक कर डाली है, तो उन्होंने उसको सुनने की इच्छा प्रकट की. पर उनसे चर्चा होते ही मैं जान गया कि पाणिनि का व्याकरण भी कुमार कार्तिकेय की कृपा से पहले से ही उपाध्याय वर्ष के मानस में प्रकाशित है. अब व्याड़ी और इन्द्रदत्त भी नए व्याकरण शास्त्र में प्रवीण हो गए और हम सबने उपाध्याय वर्ष से प्रार्थना की कि वे गुरु दक्षिणा के लिए निर्देश करें. उपाध्याय वर्ष ने कहा - मुझे एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ ला कर दो.
हम लोगो ने तय किया कि एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ तो केवल राजा नन्द ही दे सकते हैं, जो निन्यानवे करोड़ मुद्राओं के स्वामी हैं. व्याड़ी और इन्द्रदत्त ने कहा - कुछ समय पहले ही तुम्हारी पत्नी उपकोषा को राजा नन्द ने अपनी धर्म बहन बनाया है, इसलिए वह इतना धन देने में आनाकानी नहीं करेंगे.
नन्द का शिविर उस समय अयोध्या में था. हम तीनों सहाध्यायी वहां पहुंचे. पर हमारे वहां पहुँचते ही पाता चला कि अभी अभी राजा नन्द का स्वर्गवास हो गया है. मंत्री और प्रजानन दुख में डूबे हुए थे और अनेक लोग नन्द के शव को घेर कर विलाप कर रहे थे.
इन्द्रदत्त योगसिद्धि से परकाय प्रवेश की विद्या जानता था. उसने कहा - मैं इस मृत राजा के देह में प्रवेश कर जाता हूँ, वररुचि याचक बनेगा, मैं इसे एक करोड़ स्वर्णमुद्राएँ प्रदान करूँगा, तब तक व्याड़ी मेरे निष्प्राण देह की गुप्त रूप से रक्षा करेगा.
नगर से दूर एक सूने देवालय में व्याड़ी को इन्द्रदत्त के देह की रक्षा के लिए छोड़ कर मैं शिविर पहुंचा, जहाँ राजा नन्द के सहसा जी उठने का उत्सव मनाया जा रहा था. मैंने स्वस्तिवाचन किया और गुरु दक्षिणा की राशि की याचना की. योगनंद (नन्द के देह में प्रविष्ट इन्द्रदत्त के जीव) ने मंत्री शकटार को आदेश दिया कि इस याचक को एक करोड़ स्वर्णमुद्राएँ तत्काल दे दी जाएँ. मृत राजा के जी उठते ही याचक का आना और इतनी बड़ी राशि माँगना तथा राजा का तत्काल उसे देने के लिए आदेश देना - यह सब शकटार को खटका - उसने मुझे ठहरने को कहा और फिर अपने सेवकों को आदेश दिया कि जहाँ कहीं मुर्दा दिखे, तुरंत जलवायें और नगर के भीतर बाहर खोजें कि कहीं कोई मुर्दा छिपा कर न रखा गया हो.
थोड़ी ही देर में व्याड़ी ने वहा आ कर रोते रोते योगनंद से कहा - महाराज, बड़ा अनर्थ हुआ. योगसमाधि में स्थित एक ब्राह्मण के शव को आपके सैनिकों ने जबरदस्ती मुझसे छीन कर जला डाला है. यह सुन कर योगनंद की तो सांप छछूंदर जैसी स्थिति हो गयी. शकटार ने समझ लिया कि अब ब्राह्मण का जीव नन्द के देह को छोड़ कर नहीं जाएगा, तो उसने मुझे एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दिलवा दीं.
इधर एकांत में योगनंद ने बिलखते हुए व्याड़ी से कहा - यह क्या हो गया ? मैं ब्राह्मण हो कर भी शूद्र हो गया हूँ. इस अपार धन संपदा और राज्यश्री को ले कर भी मैं क्या करूँगा ?
व्याड़ी उसे दिलासा देने लगा - अब खेद मत करो. शकटार तुम्हारा रहस्य जानता है. उससे सावधान रहो. पूर्वनंद का बेटा अभी छोटा है, और राज्य के शत्रु बहुत हैं. इसलिए शकटार चाहता है कि कुछ समय तुम पूर्वनंद के शरीर में बने रहो. अवसर पाते ही वह तुम्हें इस देह से मुक्त कर चन्द्रगुप्त को राजा बना देगा. तुम ऐसा करो कि वररुचि को अपना मंत्री बना लो. वह बुद्धिमान है तुम्हारी सहायता करेगा.
इस तरह मैं योगनंद का मंत्री बन बैठा. मेरे परामर्श से योगनंद ने शकटार को सपरिवार एक अंधकूप में पटकवा दिया. उसका यह अपराध घोषित किया गया कि उसने एक जीवित ब्राह्मण को जलवाया था.
शकटार के पास कुछ पानी और सत्तू रखवा दिया गया. शकटार ने पुत्रों से कहा - इतने से सत्तू और जल से एक व्यक्ति भी कुछ ही दिन जीवित रह सकेगा. इसलिए हम में से वही इस सत्तू और जल का ग्रहण करे, जो योगनंद से बदला लेने की शक्ति रखता हो. शकटार के सौ पुत्रों ने एकमत से कहा - केवल आप ही राजा योगनंद से बदला लेने की शक्ति रखते हैं, अतः आप यह सत्तू और जल ग्रहण करते हुए जीवन धारण कीजिये.
शकटार के देखते देखते उसके सौ पुत्र एक एक करके दम तोड़ते गए. कंकालों से घिरा हुआ अकेला वह जीवित रह गया.
समय बीतता गया. व्याड़ी को तो सारी घटना से ऐसा वैराग्य हो गया था कि वह योगनंद के मना करने पर भी तपस्या करने चला गया था. इधर योगनंद के चरित्र में बड़ा परिवर्तन होने लगा. वह उच्छृंखल और मतवाले हाथी जैसा नियंत्रण हीन होता जा रहा था. देवयोग से मिली अपार लक्ष्मी ने पूर्वनंद के देह में रहते इन्द्रदत्त को बावला बना दिया था. अब वह मेरी भी नहीं सुनता था. राज्य का कहीं और अमंगल न हो - यह सोचकर मैंने शकटार को अंधकूप से बाहर निकलवाने का निश्चय कर डाला.
शकटार अंधकूप से बाहर आया और उसने मंत्री पद का काम संभाल लिया. इससे मेरे और योगनंद के संबंधों में दरार पड़ गयी.शकटार ने भी यह भांप लिया कि मेरे रहते वह योगनंद का और मेरा भी कुछ अहित नहीं कर पायेगा.
पाठक गण यह एक लम्बी कथा है अतः शेष वृतांत अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा तब तक के लिए आज्ञा और नमस्कार !
आपकी हर प्रस्तुति का वैविध्य एवं ज्ञानपरक तथ्यों का प्रस्तुतिकरण हमें कुछ नई बातों से अवगत करा जाता है जिससे हम आज तक वंचित रहे हैं । मुझे आपसे यही आशा रहेगी कि भविष्य में भी आप इस तरह के पोस्ट से हमें लाभान्वित करती रहेंगी । नव वर्ष की मंगलमय एवं पुनीत भावनाओं के साथ । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंशुक्रवार भी आइये, रविकर चर्चाकार |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति पाइए, बार-बार आभार ||
charchamanch.blogspot.com
चाणक्या धारावाहिक देखा था लेकिन यह कथा तो एकदम से ही विचित्र है। लेकिन रोचक है, जारी रखें।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक कथा !
जवाब देंहटाएंकहानी बड़ी दिलचस्प चल रही है ! चंद्रगुप्त ने तो घनानन्द को हरा कर राज्य प्राप्त किया था ! योगनंद की यह कहानी सर्वथा नयी है ! इस कथा में जिस चंद्रगुप्त का ज़िक्र है क्या यह वही है जिसको चाणक्य ने नंदवंश के नाश के लिये मोहरा बनाया था ? कहानी बढ़िया चल रही है अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी !
जवाब देंहटाएंAapkee bhasha mujhe abhibhoot kar detee hai!
जवाब देंहटाएंकहानी तो बहुत ही रोचक लग रही है, अगली कड़ी का इंतजार रहेगा ..
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आखिर हम जागेंगे कब....- ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंरुचिकर कथा....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
रोचक कथा.
जवाब देंहटाएंकथा रोचक है, अगली कडी का इन्तज़ार!!
जवाब देंहटाएंनिरामिष शाकाहार प्रहेलिका 2012
बहुत रोचक कथा...
जवाब देंहटाएंचाण्क्य की कथा का नया रूप पढने को मिला.सादर धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!!
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