इन्द्रप्रस्थ का मुकुट - छत्र
भारत भर का भूषण था ;
उसे नमन करने में लगता
किसे, कौन दूषण था ?
तो भी ग्लानि हुई बहुतों को
इस अकलंक नमन से ,
भ्रमित बुद्धि ने की इसकी
समता अभिमान -दलन से |
इस पूजन में पड़ी दिखाई
उन्हें विवशता अपनी ,
पर के विभव , प्रताप , समुन्नति
में परवशता अपनी |
राजसूय का यज्ञ लगा
उनको रण के कौशल सा ,
निज विस्तार चाहने वाले
चतुर भूप के छल सा |
धर्मराज ! कोई न चाहता
अहंकार निज खोना
किसी उच्च सत्ता के सम्मुख
सन्मन से नत होना |
सभी तुम्हारे ध्वज के नीचे
आये थे न प्रणय से
कुछ आये थे भक्ति-भाव से
कुछ कृपाण के भय से |
मगर भाव जो भी हों सबके
एक बात थी मन में
रह सकता था अक्षुण्ण मुकुट का
मान न इस वंदन में |
लगा उन्हें , सर पर सबके
दासत्व चढा जाता है ,
राजसूय में से कोई
साम्राज्य बढ़ा आता है |
किया यज्ञ ने मान विमर्दित
अगणित भूपालों का ,
अमित दिग्गजों का ,शूरों का ,
बल वैभव वालों का |
सच है सत्कृत किया अतिथि
भूपों को तुमने मन से
अनुनय, विनय, शील, समता से ,
मंजुल, मिष्ट वचन से |
पर , स्वतंत्रता - मणि का इनसे
मोल न चूक सकता है
मन में सतत दहकने वाला
भाव न रुक सकता है |
कोई मंद , मूढमति नृप ही
होता तुष्ट वचन से ,
विजयी की शिष्टता-विनय से ,
अरि के आलिंगन से |
चतुर भूप तन से मिल करते
शमित शत्रु के भय को ,
किन्तु नहीं पड़ने देते
अरि- कर में कभी ह्रदय को |
हुए न प्रशमित भूप
प्रणय -उपहार यज्ञ में देकर
लौटे इन्द्रप्रस्थ से वे
कुछ भाव और ही ले कर |
क्रमश:
दिनकर जी को पढ़वाने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंनेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!
प्रभावी और सशक्त रचना ..
जवाब देंहटाएंपढ़ रहे हैं ..लगातार..
जवाब देंहटाएंपढते जाइए ..अभी तो बहुत आना बाकी है :):)
हटाएंयह भाग पढ़कर भी बहुत अच्छा लगा...आभार!
जवाब देंहटाएंacchhi prastuti.
जवाब देंहटाएंदिनकर जी की हर कृतियां हमें भारतीय संस्कारों, मूल्य- बोध, संस्कृति एवं धार्मिक अवलंबों से जोड़ देती हैं । इसी क्रम में कुरूक्षेत्र की प्रस्तुति भी हमें उनकी कृतियों के प्रति सहज आत्मीयता के बाहुपास में बाध लेती है । थोड़े से शब्दों में इसे व्याख्यायित कर पाना संभव नही है तथपि प्रस्तुति अच्छी लगी । धन्यवाद । समय इजाजत दे तो मेरे पोस्ट " डॉ धर्मवीर भारती" पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाने की कोशिश करें ।
जवाब देंहटाएंदिनकर जी को पढ़वाने के लिए आभार|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहिंदी दुनिया
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जवाब देंहटाएंविजयी की शिष्टता-विनय से ,
जवाब देंहटाएंअरि के आलिंगन से |
SIR BEAUTIFUL LINES .THANKS TO YOU FOR TOUCHING BLOG.
बहुत ही श्रम-साध्य और महान कार्य कर रहीं हैं आप, ब्लॉग जगत को इस महान कृति देकर।
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