ये कैसी स्वतंत्रतामनोज कुमार |
स्वतंत्रता की तिरसठवीं वर्षगांठ मना चुके हम भारतवासी। सन सैंतालिस मध्य निशा की क्या हमको है याद ज़रा सी।
स्वतंत्रता की सालगिरह पर हर कोई खुशी मनाता है मगन हर्ष उल्लास से आज़ादी की रस्म निभाता है एक प्रश्न रह-रह कर उठता है मेरे अंतरमन में आज़ादी के दीवानों से क्या हमने तोड लिया हर नाता है?
कैसे - कैसे बलिदान किए, धन्य - धन्य बलिदानी। काल - कोठरी अन्धकूप के, पी गए कालापानी। उन वीरों के बलिदानों को मिला दिया माटी में हमने, अपने दुष्कर्मों से मिटा रहे, उनके सत्कर्मों की निशानी।
भगत सिंह, आज़ाद, खुदी राम, अशफाक उल्लाह, रानी झांसी। कितने कितने आदर्श दिए, स्वीकारी हंस हंसकर फांसी। आज़ाद, भगत और बिस्मिल हमसे पूछ रहें हैं - बोलो तो स्वाभिमान क्यों बिका हमारा, अपनी वृत्ति बनी क्यों दासी।
पृथ्वी, अग्नि मिसाइल बनाकर भारत का मान बढ़ाया रोबोट, राकेट, टैंक बनाकर दुनियां में नाम कमाया नए-नए अनुसंधान किए अंतरिक्ष की दौड़ लगाई पोखरण में कर अणु परीक्षण पौरुषबल दुनियां को दिखाया
आज़ादी से अबतक, सच है, हमने बहुत तरक्की की विश्व बाज़ार नई अर्थ व्यवस्था में हमने कितनी मंजिल तय की स्वतंत्रता के चौंसठवें जन्म दिन तक और भी किए कई प्रयत्न यहां तक कि टेस्ट ट्यूब में हुआ इंसानों का अस्तित्व उत्पन्न
फिर भी कुछ कमियों का हमको होता है एहसास, आज भी हम बने हुए हैं कुप्रथा - कुरीतियों के दास
वैभव और संस्कृति की निशानी ऋषि मुनियों की ओजपूर्ण वाणी और जिनके उपदेशों ने दुनियां को थी राह दिखाई स्वतंत्रता के विकास की कहानी अपने पन्ने उलट- उलट कर वहीं खड़ी है जहां से उसने आज़ादी की थी अलख जगाई।
पशुता के पंक में धंसकर मलिन मानवता का सरोज सभ्यता हमारे लिए आज भौतिक सुख साधनों की खोज
क्या नहीं था हमारे पास विवेकशीलता की कहानी थी। एक जोश था, रवानी थी राम का आदर्श था गौतम बुद्ध की वाणी थी
बहुत कुछ था हमारे द्वार, आपस का वह प्यार दिल के आइने चेहरे दिल पर खाकर घाव भी गहरे एक दूजे के लिए मरना मुंह पर हंसी खुशी का फूल धरना।
हम सब जिनको भूल चुके हैं, कहां गया वह प्यार हमारा गंगा-जमुना का सा रिश्ता कहां गई वह पावन धारा।
जिस यशगाथा की गूंजें भू-मंडल में थी गूंजा करती। मरघट की सी नीरवता में डूब गई है भरत की धरती मानवता पर दानवता हावी देश है पतनोन्मुख। सबको सूझता है केवल अपना ही सुख।
चारों ओर है ख़ून का पहरा, ख़ूनी दिल है, ख़ून का चेहरा। वातावरण में रक्त की महक फैली है अत्याचारी छाया होड़ लगी है हिंसा प्रतिहिंसा की ना कोई मोह, ना कोई माया।
स्त्रियों की इज़्ज़त बचा न पाए भंवरी अपनी लाज गंवा कर धन के लिए औलाद को बेचा लगता यह इलज़ाम पिता पर बहुएं शूली चढ जाती हैं दहेज के दानव का होकर शिकार आज़ाद देश में रूपकंवर सी बेटी जल जाए शौहर की चिता पर,
बापू के सुन्दर सपनों का, हमने ख़ूब किया अभिनंदन। नाम कलंकित किया देश का, टीक भाल पर ख़ूनी चंदन। करुणा विहीन यह हृदय हमारा बहा रहा है शोणित धारा भौतिकता के उन्माद तले मानवता कर रही क्रंदन।
आतंकवाद का काला साया हरी-भरी वादियां निगल रहा है। साम्प्रदायिकता का उन्मादी पिशाच आग के गोले उगल रहा है। मनवता का हो रहा ह्रास आपाधापी घट-घट में है, घृणा-द्वेष का फैला पंजा भाईचारा मसल रहा है ।
निर्बल की कराह-सिसकियां सुनने वाला कोई नहीं। बेचैन, थकी, उनींदी आंखें वर्षो से हैं सोई नहीं अपमानित होने की पीड़ा जाने वही जिसने सहा। परंपराओं के नाम पर कौन सी जाति रोई नहीं। . .. ... .... ..... ...... यदि सही स्वतंत्रता हम चाहते हैं तो, हमको आगे बढना होगा। शांति और सौहार्द्र के वातावरण में, नया भारत गढ़ना होगा। होठों पर मुसकान सजा कर दिल में प्यार की जोत जगा कर हिंसा, घृणा, दुश्मनी हटाकर प्यार के पाठ को पढ़ना होगा।
घिसी पिटी बेमानी रस्में भारत से उठ जाएं बिलकुल जाति-धर्म का भेद मिटा कर रहें देश में हम सब मिलजुल सोच हमारी फिर विस्तृत हो सुख शांति खुशहाली से एकता का जो पाठ पढाए फिर से निर्मित हो वह गुरकुल
मलिनता बुहर जाए जग की मन हम सब इस तरह बुहारें आज़ादी के वीरों की वाणी अपने अपने दिल में उतारें। तब हम समझें कि हमने पाई है आज़ादी सच्ची अपने-अपने घरों में जब हम सुख चैन से रात गुज़ारें।
आज़ादी हमारा अधिकार है कर्त्तव्य है और है अस्तित्व की मुनादी। *** *** *** |
रविवार, 15 अगस्त 2010
ये कैसी स्वतंत्रता -- मनोज कुमार
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मनोज जी, अपने तो वाकई आजादी का अर्थ महसूस करा दिया..शानदार रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
Behtreen prastuti..Aabhar
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
जश्ने आजादी मुबारक हो... जय हिंद
जवाब देंहटाएंुआपकी रचना ने तो स्तब्ध कर दिया। आज़ादी के मायने तभी हैं जब हम अपने अधिकक़रों के साथ कर्तव्य भी समझें। लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
आज़ादी और आज के भारत की सही तस्वीर प्रस्तुत कर दी है ...मार्ग भी दिखने का प्रयास है ...इस ओर एक कदम भी बढ़ पाए तो रचना सार्थक हो जायेगी ...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
जय हिंद
आप को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंजय हिंद...........जय भारत
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
मेरी ओर से भी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंगहरी चिंता जताई है आपने।
जवाब देंहटाएंक्या ऐसी ही है स्वतन्त्रता ...
जवाब देंहटाएंमायने बदल गए है आजकल ...
विचारोत्तेजक रचना ....