जन्म – 27 नवंबर 1907 निधन – 18 जनवरी 2003
मैं कल रात नहीं रोया था
दुख सब जीवन के विस्मृत कर, तेरे वक्षस्थल पर सिर धर,तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था!
प्यार-भरे उपवन में घूमा, फल खाए, फूलों को चूमा, कल दुर्दिन का भार न अपने पंखो पर मैंने ढोया था! मैं कल रात नहीं रोया था! आँसू के दाने बरसाकर किन आँखो ने तेरे उर पर ऐसे सपनों के मधुवन का मधुमय बीज, बता, बोया था? मैं कल रात नहीं रोया था! |
सोमवार, 1 अगस्त 2011
मैं कल रात नहीं रोया था --- हरिवंशराय बच्चन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
आशा और उत्साह से लबरेज
जवाब देंहटाएंहालावाद के प्रसिद्ध प्रवर्तक एवं उमर खैयाम के रूबाईयों के स्वरूप को हिंदी साहित्य में एक नए अंदाज और शैली में प्रस्तुत करने वाले हरिवंश राय बच्चन साहित्य के सही संदर्भों में साहित्यानुरागी थे।
जवाब देंहटाएंसाहित्य के प्रति उनकी समर्पित अनुरागिता का प्रभाव उनकी तीन कृतियों ' क्या भूलूँ क्या याद करूँ ',' नीण का निर्माण फिर ' एवं ' बसेरे से दूर ' में मुखरित हुई हैं। उनकी प्रत्येक रचना हम सबको अपने जीवन के साक्षात्कार क्षणों का सामीप्य-बोध करा जाती है। मिल्टन पर रिसर्च करने के दौरान वे अपनी पत्नी को भी विस्मृत कर पाने में असमर्थ होकर अपनी ' रचना बसेरे से दूर ' में लिखा था--
"कितने रंजीत प्रात,उदासी में डूबी कितनी संध्याएं,
सबके बीच पिरोना होगा प्रिय हमको धीरज का धागा,
याद तुम्हारी लेकर सोया,याद तुम्हारी लेकर जागा।"
जीवन की सांध्य-बेला तक साहित्य के प्रति समर्पित रहने वाले बच्चन जी पर यदि कोई भी कुछ लिखना चाहे तो शायद इसकी परिणति एक महाकाव्य की रचना के रूप मे सामने आएगी। आपके द्वारा प्रस्तुत बच्चन जी की भाव-प्रवण कविता 'मैं कल रात मैं नही रोया था..."उनके उदात्त मन की शोचनीय परिस्थितियों की उपज है। सर, आपका चयन ही आपके परिचय को ब्लॉग जगत के फलक पर एक पृथक पहचान से प्रतिष्ठित करता है।
धन्यवाद।
आज 01- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
बच्चन जी की मनमोहक कृति पढवाने के लिये आपके आभारी हैं।
जवाब देंहटाएंबच्चन जी यह कविता कालजयी है....आभार पढवाने के लिए !
जवाब देंहटाएंबच्चन जी यह कविता कालजयी है....आभार पढवाने के लिए !
जवाब देंहटाएंबच्चन जी की एक बहुत ही अच्छी कविता शेयर करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंयह कविता मैंने नहीं पढ़ी थी।
बच्चन जी यह कविता कालजयी है....आभार पढवाने के लिए !
जवाब देंहटाएंkomal bhaavo se susajjit sunder rachna ham tak padhane ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएं