अज्ञेय की कविताएं 7. औद्योगिक बस्ती
पहाड़ियों से घिरी हुई इस छोटी-सी घाटी में
ये मुँहझौंसी चिमनियाँ बराबर
धुआँ उगलती जाती हैं।
भीतर जलते लाल धातु के साथ
कमकरों की दुःसाध्य विषमताएँ भी
तप्त उबलती जाती हैं।
बँधी लीक पर रेलें लादे माल
चिहुँकती और रँभाती अफराये डाँगर-सी
ठिलती चलती जाती हैं।
उद्यम की कड़ी-कड़ी में बँधते जाते मुक्तिकाम
मानव की आशाएँ ही पल-पल
उसको छलती जाती हैं।
औद्योगिक बस्ती का सजीव चित्रण है इस कविता में ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना .
जवाब देंहटाएंमुन्हझौंसी, चिहुन्काती, रंभाती (रेल, डांगर... इन शब्दों को जीवंत कर दिया है अनोखे प्रयोग से.. महान कवि की महान रचना!!
जवाब देंहटाएंIs kavita ka sarnsh btaye
हटाएंश्रमिको की बेबसी को स्वर देती एक वातावरण प्रधान प्रगति वादी धारा की श्रेष्ठ रचना . .
जवाब देंहटाएंhttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/http://sb.samwaad.com/
मार्मिक एवं ज्ञानवर्धक रचना प्रस्तुत करने हेतु धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना .
जवाब देंहटाएंपूंजीवाद के खिलाफ एक आवाज थी जिसमें कामगार उबलते रहते हैं
जवाब देंहटाएंaudyogikaran me chhupi buraiya sehajta se kah diya is kavita ke zariye Agyey ji ne.
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