जन्म: 30 जनवरी 1889
निधन: 14 जनवरी 1937
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई
छलछल थे संध्या के श्रमकण
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अँगड़ाई
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
गहन-विपिन की तरु छाया में
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी
रही बचाए फिरती कब की
मेरी आशा आह ! बावली
तूने खो दी सकल कमाई
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर
प्रलय चल रहा अपने पथ पर
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर
उससे हारी-होड़ लगाई
लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे
इसने मन की लाज गँवाई
हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रतिनिधि रचनाकार के रूप में अपनी रचनाधर्मिता को उजागर करने वाले जयशंकर प्रसाद काव्य, नाटक, उपन्यास आदि विधाओं में अपनी जिन कुशल ज्ञान-रश्मियों से हिंदी साहित्य को आलोकित किया है, वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी। फंतासी - शिल्प से प्रभावित होने के कारण उनके भावों ने वेदना की आकुलता और तड़प सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है। इस कविता में भी कवि ने अपने विरह की विषम वेदना को "आह!वेदना मिली विदाई " के माध्यम से घनीभूत कर प्रस्तुत किया है। इस महान कवि को पढ़ना तो दूर की बात है है,नाम सुनकर ही मन में काव्य-सृजन के लिए अनगिनत भाव आने जाने लगते हैं। अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अमृत रस घोल गयी ...प्रसाद स्वरुप....यह रचना .
जवाब देंहटाएंपढ़कर ...इन्हीं शब्दों में खो सा गया मन ....!!
आभार....
अमृत रस घोल गयी ...प्रसाद स्वरुप....यह रचना .
जवाब देंहटाएंपढ़कर ...इन्हीं शब्दों में खो सा गया मन ....!!
आभार....
बहुत ही कुब कहा आप ने..........
जवाब देंहटाएंप्रसाद जी की सुन्दर कृति पढवाने के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं"वेदना मिली विदाई "
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंप्रसाद जी की यह बेहतरीन रचना पहली बार पढ़ी।
जवाब देंहटाएंसादर
जितना आभार व्यक्त किया जाये कम है। बहुत अच्छा लगा आज प्रसाद जी को यहाँ पढ़कर।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं'आह ! वेदना मिली विदाई' गीत किस पात्र ने गाया है
जवाब देंहटाएंदेवसेना
हटाएंआह ....ऐसी रचनाओं का क्या कोई सानी हो सकता है.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट पुलिस के सिपाही से by पाश
ब्लॉग अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करना ताकि आपको नई पोस्ट की जानकारी मिलती रहे
आह वेदना मिली विदाई मैंने भ्रम वंश जीवन संचित मधुकरियों की भीख लुटाई पंतियों में कोनसा काव्य गुण हैं
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