जब - जब नारी की तुलना
फूलों से की जाती है तब - तब ये छवि मन में उभर आती है। कि सच ही - नारी फूलों की तरह कोमल है फूलों की तरह मुस्कुराती है लोगों में हर दिन जीने का उत्साह जगाती है एक मुस्कराहट से सबके जीवन में नया उत्साह ले आती है।
पर जब फूलों की तुलना
नारी से की जाती है तब फूल के मन में ये बात आती है हम फूल मुस्कुराते हैं हर सुबह जीने का उत्साह जगाते हैं पर हम नारी की तरह कहाँ हो पाते हैं। नारी तो अगले दिन फिर जीने का उत्साह जगाती है हम तो एक ही दिन में निढाल हो मुरझा कर टहनी से टूट बिखर जाते हैं.
संगीता स्वरुप
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सोमवार, 1 अगस्त 2011
जीवन फ़ूल और नारी का ..
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.http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/कृपया यहाँ भी पधारें और कृतार्थ करें .फूल और नारी दोनों ही खुद अपनी खाद बन जातें हैं एक परिवार को सींचती है दूसरा क्यारी को परिवेश की खुशबू दोनों बनतें हैं .
जवाब देंहटाएंsunder bhaav ..
जवाब देंहटाएंजीने का उत्साह जगाती है
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha abhar
sangeeta jee , aapke sundar bhav ko naman..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही गहरी बात कह दी।
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंइस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।
जवाब देंहटाएंअभिन्न मौलिक वैचारिकता के दर्शन!!
जवाब देंहटाएंनारी को उपमा, फूल की व्यवहारी।
फिर भी रहती नारी, फूल पर भारी॥
बहुत बढ़िया संगीता जी ! वास्तव में अपनी ताज़गी, खुशबू, मुस्कराहट और सौंदर्य को अक्षुण्ण बना कर जिस तरह नारी सबके लिये प्ररणा का स्त्रोत बन जाती है फूल कहाँ उसकी बराबरी कर पाते हैं ! उनकी ताज़गी और मुस्कराहट तो क्षणिक ही होती है ! सुन्दर भाव एवं अनुपम अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंपर जब फूलों की तुलना
जवाब देंहटाएंनारी से की जाती है
तब फूल के मन में
ये बात आती है
हम फूल मुस्कुराते हैं
हर सुबह
जीने का उत्साह जगाते हैं
पर हम नारी की तरह
कहाँ हो पाते हैं।
नारी तो अगले दिन फिर
जीने का उत्साह जगाती है
हम तो एक ही दिन में
निढाल हो मुरझा कर
टहनी से टूट बिखर जाते हैं....waah
पर हम नारी की तरह
जवाब देंहटाएंकहाँ हो पाते हैं।
नारी तो अगले दिन फिर
जीने का उत्साह जगाती है
हम तो एक ही दिन में
निढाल हो मुरझा कर
टहनी से टूट बिखर जाते हैं.
वाह!! बहुत ही सुन्दर. इस कविता में मौलिक दर्शन,अनुपम अभिव्यक्ति !
सुन्दर और यथार्थपरक भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंदर्शन, चितन और भावों से बाहरी कविता... बेहतरीन.. उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंbahut khoob...sangeeta ji...aabhar
जवाब देंहटाएंवाह संगीताजी क्या बात है /फूल और नारी की क्या तुलना की है आपने /और कितना सच कहा आपने /फूल तो दूसरे दिन मुरझा जाते हैं, पर नारी दूसरे दिन फिर उत्साह से भरकर सबमे उत्साह जगाती है /परिवार की धुरी होती है नारी /बधाई आपको /
जवाब देंहटाएंjabardast tulna.
जवाब देंहटाएंKya kamaal kee rachana hai!
जवाब देंहटाएंसंगीता दी,लाजवाब प्रस्तुति बेहद खूबसूरती से भावों को सजाया है
जवाब देंहटाएंgahan abhivaykti...
जवाब देंहटाएंLovely :-)
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या
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