शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

हिंदी का विस्तार : मशीनी अनुवाद प्रक्रिया !

उरई(जालौन) में जन्मी रेखा श्रीवास्तव जी का लेखन बचपन से ही शुरू हो गया! राजनीतिशस्त्र, समाजशास्त्र और शिक्षाशस्त्र में एम. ए. कंप्यूटर में डिप्लोमा. प्राप्त रेखा जी आई आई टी कानपुर में विगत २३ वर्षों से मशीन अनुवाद में शोध सहायक के पद पर कार्य कर रही हैं।. पिछले दो वर्ष से ब्लॉग्गिंग के क्षेत्र में कदम रखा है। कादम्बिनी, साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, नवनीत , सरिता और मनोरमा जैसी स्तरीय पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं समय-समय पर प्रकाशित होती रहीं हैं।



                                   हिंदी भले ही विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा न हो लेकिन हिंदी भारत की प्रमुख भाषा है और भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र  भाषा भी है. हम अपने देश , प्रदेश, शहर, गाँव और गली मोहल्ले  में तो इसी को सुनते हुए पले बढे हैं और इसी लिए  इसकी प्रगति , प्रचार एवं प्रसार भी हमें बहुत प्रिय है. हमारे सारे प्रयास इसी के लिए होने भी चाहिए.

                                और लोगों की तरह हिंदी मुझे भी प्रिय है और तभी इसके सहज और सुलभ प्रयोग के लिए चल रहे एक विशाल अभियान "मशीन अनुवाद" से मैं इसके आई आई टी में आरम्भ होने के प्रथम प्रयास १९८७ से जुड़ी और उस समय से जब कि हमारे समूह के संयुक्त प्रयासों से एक अलग रोमन का निर्माण किया ( जो आज आई आई टी कानपुर रोमन के नाम से जानी जाती है) . इस अभियान को शैश्ववास्था से लेकर आज इसके पूर्ण परिपक्व होने तक के सफर की मैं साक्षी रही हूँ और इससे निरंतर सम्बद्ध हूँ. इसको सिर्फ संगणक विज्ञान ( computer science ) और हिंदी का समागम नहीं मना जा सकता है बल्कि इसके लिए प्रबुद्ध जनों ने पाणिनि की अष्टाध्यायी से लेकर तमाम व्याकरण के उद्गम शास्त्रों का अध्ययन करके इसको सही दिशा प्रदान की है. इसमें कंप्यूटर इंजिनियर , भाषाविज्ञ दोनों की ही महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. सबसे अधिक तो इसमें रूचि रखने वालों की भूमिका होती है.

                             इसमें मशीन तो वही करती है जो उसको दिशा निर्देश प्राप्त होता है और ये दिशा निर्देश इतने स्पष्ट और पारदर्शी होने चाहिए कि मशीन  को शब्द से लिंग, वचन और पुरुष के भेद का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त हो सके. इसके मध्य की प्रक्रिया इतनी जटिल और पेचीदी होती है की कई चरणों में कई रूपों में इसको स्पष्ट करना पड़ता है ताकि हम सही अनुवाद प्राप्त कर सकें.

                           मशीन अनुवाद को सिर्फ अंग्रेजी से हिंदी में ही नहीं अपितु हिंदी से अंग्रेजी के लिए भी तैयार किया गया है. जिससे कि हम एक साहित्य की दिशा में नहीं बल्कि विज्ञान , मेडिकल, वाणिज्य आदि सभी क्षेत्रों की सामग्री को अपनी भाषा में अनुवाद कर सकें और हिंदी को समृद्ध बना सकें. अगर हिंदी जानने वाले अन्य क्षेत्रों की जानकारी प्राप्त कर उसे अपनी भाषा में चाहे तो इसके प्रयोग से ये संभव है. अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी हम इस को प्रयोग कर सकते हैं.

                         इसके प्रयोग के बढ़ने के साथ साथ ही इसका शब्दकोष (lexicon )  समृद्ध करना होता है क्योंकि सीमायें बढ़ाने से उसके ज्ञान और शब्द कोष भी बढ़ता जाता है. जो शब्द शब्दकोष में नहीं होंगे उनको लिप्यान्तरण के द्वारा दर्शाया जाता है. इसकी आतंरिक प्रक्रिया इतनी विस्तृत है कि उसको समझाना बहुत ही दुष्कर कार्य है. इसके लिए सरकार द्वारा अपेक्षित सहयोग मिला होता तो इसका विकसित स्वरूप कुछ और ही होता.

                       यद्यपि गूगल भी अपनी अनुवाद प्रणाली को प्रस्तुत कर चुका है और लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं लेकिन अगर गुणवत्ता की दृष्टि से देखें तो गूगल हमारी प्रणाली के समक्ष कहीं भी नहीं ठहरता. इसका तुलनात्मक अध्ययन हमने अपने कार्य की महत्ता को दर्शाने  के लिए किया है और उसको भविष्य में होने वाले कार्यों के लिए प्रमाण स्वरूप सरकार के समक्ष भी रखा है. अपनी कुछ वैधानिक सीमाओं के चलते इसको प्रकट करना संभव नहीं है. फिर भी बहुत जल्दी अपनी सीमाओं के साथ इसके प्रयोगात्मक स्वरूप को राजभाषा के माध्यम से प्रस्तुत अवश्य करूंगी.

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति। एक नई जानकारी से लोगों को अवगत कराता यह आलेख मशीन के द्वारा अनुवाद के विभिन्न चरणों को स्पष्ट करता है और ढेर सारी तकनीकी जानकारी भी प्रदान करता है।
    आशा है भविष्य में आपसे और भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    हिन्दी का विस्तार-मशीनी अनुवाद प्रक्रिया, राजभाषा हिन्दी पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें

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  2. यह तो बहुत अच्छी बात बताई ...

    हिंदी यूँ ही प्रगति करे ..आपके प्रस्तुतिकरण का इंतज़ार रहेगा ..

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  3. प्रशन्सनीय पोस्ट …………धेर सारी जान्कारी देने के लिये शुक्रिया ……………………॥मेरे ब्लोग पर आने के लिये शुक्रिया

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  4. बहुत नई जानकारी देता लेख |बधाई
    आशा

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  5. अच्छा लगा जानकर कि आईआईटी कानपुर जैसे संस्थान भी हिन्दी के लिए कार्य कर रहे हैं. गूगल के अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद की खामियों ने तो खासा निराश ही कर दिया है.

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  6. रेखा जी बहुत ज्ञान वर्धक आलेख प्रस्तुत किया है आपने.. लेकिन या प्रणाली कहाँ और कैसे उपलब्ध है बताती तो हमे भी फायदा होता ... गूगल ने हिंदी को जितनी तेजी से आई टी दुनिया में प्रचलित किया है वह अतुलनीय है... हमे कृतज्ञ होना चाहिए...

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  7. अरुण जी,

    आपका कहना सही है, गूगल ने जो किया है उससे हम लाभान्वित हो रहे हैं , लेकिन हम जब उसको अपने अनुवाद के समकक्ष देखते हैं तो हमें अपनी उपलब्धि नजर आती है. अगर हमें गूगल की तरह से व्यवसायीकरण करने की अनुमति होती तो हम सरकार की अनुमति का मुँह न देख रहे होते और कहीं से कहीं पहुँच जाते. जब से हमने काम शुरू किया था तब न गूगल था और न अन्य सुविधाएँ. हमने हिंदी के लिए gist card का प्रयोग करके काम शुरू किया था. पहले पञ्च कार्ड, फिर बड़ी फ्लोपी , छोटी फ्लोपी , सी. डी और पेन ड्राइव तक का सफर बहुत लम्बा है. गूगल एक वाक्य व्याकरण की दृष्टि से सही अनुवाद नहीं कर पा रहा है, हम उसके जगह पर पाराग्राफ और लघुकथा एक साथ देकर अनुवाद दे रहे हैं और वह भी सही मायने के साथ.

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  8. हिंदी का विस्तार यूं ही होता रहे और हिंदी प्रगति करती रहे हम तो बस यही उम्मीद करते है, माध्या चाहे कोई भी हो ।
    बहुत बढ़िया और जानकारीयुक्त लेख ।

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  9. इन्तजार रहेगा. शुभकामनाएँ.

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  10. जानकारी के लिए धन्‍यवाद.

    ईद व गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनांए.

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  11. बहुत अच्छी और काम की पोस्ट।
    इन साधनों के विकास के साथ राजभाषा हिन्दी का भी उत्तरोत्तर विकास हो रहा है।
    इस तकनीकी विकास की परियोजना (प्रोजेक्ट) से जुड़े आप सब विशेषज्ञों को बधाई।

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  12. बहुत अच्छी जानकारी. इन्तजार रहेगा.

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  13. बहुत अच्छी पोस्ट रेखा जी। हमारे लिए तो यह बिल्कुल नई जानकारी थी। इसी तरह की नई-नई जानकारियों से हमारा परिचय होगा, उम्मीद है।

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  14. पहले तो उक्यत आलेख के लिए बधाई। यह मेरा सौभाग्य है कि दो साल बाद मैं अचानक आपके एस आलेख से मुकातिब हुई। बहुत अच्छी जानकारी है... आजकर वि वि में अनुवाद पर डिप्लामा का कोर्स पढाया जाता है... जिसमें एक अध्याय होता है मशीनि अनुवाद.. पर वास्तव में जो काम हो रहा है उससे प्राद्यापक वर्ग अनभिज्ञ है... आपके आलेख ने काफी अचछी जानकारी ही है... यदि आप कुछ और बातें नई बातें जो इन दो वर्षों में विकसित हुई है जोड दें तो हम अपडेट हो जाएंगे।

    प्रतिभा मुदलियार

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  15. पहले तो उक्यत आलेख के लिए बधाई। यह मेरा सौभाग्य है कि दो साल बाद मैं अचानक आपके एस आलेख से मुकातिब हुई। बहुत अच्छी जानकारी है... आजकर वि वि में अनुवाद पर डिप्लामा का कोर्स पढाया जाता है... जिसमें एक अध्याय होता है मशीनि अनुवाद.. पर वास्तव में जो काम हो रहा है उससे प्राद्यापक वर्ग अनभिज्ञ है... आपके आलेख ने काफी अचछी जानकारी ही है... यदि आप कुछ और बातें नई बातें जो इन दो वर्षों में विकसित हुई है जोड दें तो हम अपडेट हो जाएंगे।

    प्रतिभा मुदलियार

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