समझ का फेरसंगीता स्वरुप |
कब तक वो इस छोटे से कमरे में अकेली बैठे ? `देखूं बाहर क्या हो रहा है,’ यही सोच कर वो रसोई में पहुँची. अचानक उसके हाथ से काँच का गिलास गिर कर टूट गया. बहू कि कर्कश आवाज़ आई - “क्या हुआ?” वो सहमी सी खड़ी थी यही सोचती हुई कि `पहले बहू आएगी फिर बेटा.’ यही हुआ . बहू आग्नेय नेत्रों से देख रही थी! बेटा झुंझला के बोला - "माँ ! तुमको कितनी बार कहा है कि अपने कमरे में रहा करो . कुछ ना कुछ तोड़ - फोड़ करती रहती हो , ये नही कि आराम से कमरे में बैठो . पर तुमको कुछ समझ आए तब ना. " बचपन में ना जाने क्या क्या तोड़ दिया करता था . जब ये बोलना भी नही सीखा था तब इसकी बात मैं इशारे से समझ जाती थी , आज कह रहा है कि मैं इसकी बात समझती नही .यह सोचते सोचते उसके कदम अपने कमरे की ओर बढ़ गये -- |
सोमवार, 20 सितंबर 2010
समझ का फेर
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संगीता दी का छोटा छोटा कबिता अऊर नज़्म के तरह ई छोटा कहानी भी गहरा भाव लिए हुए है... बरिश्ठ नागरिक को समाज में सम्मान दिलाने का बात करने वआले लोगों के अपने घर में क्या दुर्दसा है उनके अपने बृद्ध माँ बाप का..यह लघु कथा उद्वेलित करता है!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .. दिल को छू गयी ये बातें!!
जवाब देंहटाएंलेखिका ने इस लघुकथा की कहानी द्वारा हमारे घर परिवार की तल्ख़ वास्तविकता को सहज ढ़ंग से बेपर्द करती हुई प्रतिरोध के रूप में सामने आती हैं और पाठक में साहस की सृष्टि करती हैं।
जवाब देंहटाएंjane yah kaisa safar hai...koi samjha nahi, koi jaana nahi
जवाब देंहटाएंSangita ji bahut achchhi kahani. Vartman me badlate huye parivesh par aapane bahut achchha likha hai.
जवाब देंहटाएंLaghu katha lagatar likhen.
aabhar...............
बहुत अच्छी लगी ये लघुकथा। बधाई।
जवाब देंहटाएंवक्त का भी फ़ेर है और समझ का भी………………अच्छी लघु कथा।
जवाब देंहटाएं"समझ का फेर" अच्छी लघु कथा है। बहुत सीधी सरल भाषा. एक नारी मन व उसकी व्यथा.
जवाब देंहटाएंसन्गीता जी आपने तो आज के समय मे बुजुर्गो की स्थिती को छोटी सी कथा मे अभिव्यक्त कर दिया... बहुत सुन्दर !मार्मिक !
जवाब देंहटाएंसब वक्त वक्त की बात है ..ये बेटा बहु भी कभी इसी कगार पर होंगे.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी.
aaj is mod par hain ....
जवाब देंहटाएंkal jeevan sandhya mein apni bhi wahi sthiti hogi...
samajh ke pher apne upar bhi waise hi aaropit honge... ye kyun bhool jate hain log!
marmsparshi rachna!!!
बहुत ही अच्छी लघु कथा...जीवन की विसंगतियों को उजागर करती हुई
जवाब देंहटाएंबच्चे तुच्छ सामान तोड़ने पर माँ को बोलते है , लेकिन ये नहीं समझते की उसने अपने माँ का क्या तोड़ दिया.
जवाब देंहटाएं...कितनी दयनीय परिस्थिति में जी रही है वह!...बहू-बेटे को गिलास टूट्ने का दुःख है...लेकिन यह नही पूछ रहे कि.." मां, आपके हाथ में कांच तो नही चुभ गया?" ...सार्थक लघुकथा!
जवाब देंहटाएं....बधाई!
सुन्दर कहानी हकीक़त को बयाँ करती हवी.. सच है कि जब बचपन था तब उनकी तुतली भाषा को भी माँ बाप प्रेम से समझते और बच्चे किसी चीज के बारे में बार बार पूछे तो उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिए उस चीज की बारे में बच्चे को उतनी ही बार बताते ... बच्चो में क्या उतना धेर्य है आज..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कहानी हकीक़त को बयाँ करती हवी.. सच है कि जब बचपन था तब उनकी तुतली भाषा को भी माँ बाप प्रेम से समझते और बच्चे किसी चीज के बारे में बार बार पूछे तो उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिए उस चीज की बारे में बच्चे को उतनी ही बार बताते ... बच्चो में क्या उतना धेर्य है आज..
जवाब देंहटाएंमाता-पिता तो जिंदगी भर बच्चों की हर गलती को मुआफ़ ही करते हैं लेकिन वही बच्चे कैसे-कैसे दिन दिखाते है कि बुजुर्गों की जीने की इच्छा ही मर जाती है। कमोबेश यही हालत है आज के बुजुर्गों की...दिल को छूती लघु कथा...बहुत अच्छी...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, आपकी यह लघुकथा सन्न कर देती है। पारिवारिक संबंधों की निजता और उष्णता आज के दौर-दौरा में ग़ाएब-सा हो गया है, इसका संकेत इस कहानी का देय है और यह चेतावनी भी कि देर से जागने पर, जो खोया जा चुका है, उसे वापस नहीं लाया जा सकता।
जवाब देंहटाएंएक दम सहज और बिना किसी आवेग के चलती यह कहानी अंततः अपने पाठक को एक गहरा चिंतन आवेग सौंपती है जिसके स्पंदन से पाठक बच नहीं पाता।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंऔर समय ठहर गया!
, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
पारिवारिक विसंगतियों और असामंजस्य को उजागर करती बहुत ही मर्स्पर्शी लघु कथा ! कभी कोई अशक्त होते हाथ, धुँधली पड़ती नज़र और काँपते पैरों की विवशता को क्यों नहीं समझता ? लोगों के मन संवेदनाएं क्यों इस तरह मर जाती हैं ? यही भविष्य उनका भी हो सकता है जो अपने माता पिता के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करते हैं ! आँखें खोलने वाली पोस्ट !
जवाब देंहटाएंइस लघु कथा ने इतने थोड़े से शांदों में वह उजागर कर दिया , जिसको शायद आज कुछ घरों की सभ्यता में शामिल कर लिया गया है. लेकिन उस माँ के मनोभावों को जो उकेरा है सिर्फ चंद शब्दोंमें वह काबिलेतारीफ है.
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने इस लघु कथा को सराह कर मेरा हौसला बढ़ाया ...
जवाब देंहटाएंवैसे मैं कथा और कहानियों की विधा में लिखना नहीं जानती हूँ ...आप सबकी प्रतिक्रिया से नयी प्रेरणा मिली है ..
@ संगीता जी,
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति का माध्यम कोई हो बात दिल की दिल से निकले और दिल को छुए। चाहे गद्य हो, या पद्य। पर एक कवयित्री जब गद्य लिखती है तो कविता से कम होती है क्या! इस अमोल प्रस्तुति के लिए साधुवाद।
मां अपने बच्चों के न जाने कितनी गलतियों को माफ कर देती है पर वही बच्चें जब बड़े हो जाते हैं तो अपने मां-बाप की एक भी गलती को माफ करने को तैयार नहीं होते ............ कड़वा सत्य है ।
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ.... उस छोटी से कथा में आपने गहरे जज्बातों में आंधी का अहसास करा दिया हैं. बहुत ही बदनसीब होती है ऐसी औलाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह लघुकथा |बहुत कुछ कह गई
जवाब देंहटाएंबधाई
आशा
बहुत अच्छी लघु कथा...हर नयी पीढ़ी पुराणी पीढ़ी को पढ़ाना चाहती है...और भूल जाती है की वही उसके गुरु हैं.
जवाब देंहटाएंसुंदर कथा.
सार्थक लघुकथा!
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya....
जवाब देंहटाएंshukriya ...
एक संवाद मेरी ओर से भी -
जवाब देंहटाएंबूढ़ी माँ ,भोजन समाप्त कर चुकी थीं .
उन्होंने प्लेट में बची रोटी की पपड़ियाई कोरें अलग उठा लीं और कमरे से बाहर चल दीं ,
तभी एक तीखा स्वर आया- काहे अम्माँ जी ,ये सूखे टुकड़े ,पड़ोसिन को दिखलावे जाय रही हो.
वे ठिठक गईँ- नाहीं बहू,नाहीं.हम काहे किसी को दिखाएंगी .बेकार अन्न फिंके सो हम तो चिरैयन को डाल रहीं थीं .
(मेरा कंप्यूटर खराब हो गया था,ठीक होने के बाद कुछ विराम चिह्न नहीं आ रहे हैं प्रश्न-चिह्न ,इनवर्टेड-कामा वगैरा त्रुटियाँ क्षमा करें .
एक संवाद मेरी ओर से भी -
जवाब देंहटाएंबूढ़ी माँ ,भोजन समाप्त कर चुकी थीं .
उन्होंने प्लेट में बची रोटी की पपड़ियाई कोरें अलग उठा लीं और कमरे से बाहर चल दीं ,
तभी एक तीखा स्वर आया- काहे अम्माँ जी ,ये सूखे टुकड़े ,पड़ोसिन को दिखलावे जाय रही हो.
वे ठिठक गईँ- नाहीं बहू,नाहीं.हम काहे किसी को दिखाएंगी .बेकार अन्न फिंके सो हम तो चिरैयन को डाल रहीं थीं .
(मेरा कंप्यूटर खराब हो गया था,ठीक होने के बाद कुछ विराम चिह्न नहीं आ रहे हैं प्रश्न-चिह्न ,इनवर्टेड-कामा वगैरा त्रुटियाँ क्षमा करें .
बेहतरीन ...मन को छूने वाली लघुकथा|
जवाब देंहटाएंपढकर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंकहानी छोटी होकर भी बहुत तथ्यपूर्ण और पारिवारिक यथार्थ को दर्शाने वाली है ।
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