अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१मनोज कुमार |
चौदहवीं शताब्दी में, दिल्ली सल्तनत का एक ऐसा शासक हुआ जिसने अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति एवं कठोर अनुशासन से यह साबित कर दिया कि, शासक चाहे तो किसी भी योजना या नीति का कार्यान्वयन असंभव नहीं है, चाहे वह समाज के प्रभावशाली वर्ग के हितों के विरूद्ध क्यों न हो? वह शासक था- अलाउद्दीन खिलजी, जिसने मध्यकालीन भारत में आम लोगों के हित के लिए उपयोगी वस्तुओं को न केवल सस्ती दरों पर मुहैया किया और न केवल बाजार को नियंत्रित किया बल्कि वस्तुओं के मूल्यों को भी नियत किया एवं उस मूल्य पर व्यापारियों द्वारा वस्तुओं का विक्रय भी सुनिश्चित किया। अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1296 ई. में अपने बूढ़े चाचा जलालुद्दीन खिलजी को धोखे से मरवाकर स्वयं को दिल्ली का शासक घोषित किया। उसका शासनकाल काफी महत्वपूर्ण था मध्यकालीन इतिहास में उसके कुछ सुधार पूर्णतः नवीन प्रयोग कहे जा सकते हैं। वह दिल्ली सल्तनत का महान शासक था जिसने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी दूरदर्शिता और मौलिकता प्रदर्शित की। हालांकि अलाउद्दीन खिलजी शिक्षित नहीं था फिर भी उसमें व्यावहारिक ज्ञान की कमी नहीं थी और वह अपने राज्य की आवश्यकताओं को भली-भांति समझता था। यह सही है कि उसने कुछ ऐसे कदम उठाये थे जो अमीरों एवं उलेमाओं जैसे प्रभावशाली वर्ग के हितों के विपरीत थे। यह चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशक में एक राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था को दर्शाता है। यह प्रयोग नया था। इस योजना से अलाउद्दीन खिलजी को जो सफलता मिली वह काफी रोचक एवं असाधारण है। वस्तुओं के जो नियंत्रित मूल्य अलाउद्दीन खिलजी ने रखे उसका अनुपालन दृढ़तापूर्वक हो उसने व्यक्तिगत तौर पर सुनिश्चित किया। सामायन्यतः यह माना जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी द्वारा इस योजना को लागू करनें का मुख्य उद्देश्य सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति पर आधारित था। एक बड़ी सेना को अपेक्षाकृत कम खर्च पर कायम रखना इसका उद्देश्य था। अलाउद्दीन का शासनकाल सतत युद्ध का काल था इसके लिए एक वृहत् एवं मजबूत सेना की आवश्यकता थी। यह कहना उचित नहीं है कि अलाउद्दीन ने आर्थिक सुधार केवल सेना को ही ध्यान में रखकर किए थे। क्योंकि यह नीति सैन्य अभियान समाप्त होने के बाद भी चालू रखी गई। दूसरी बात यह है कि अलाउद्दीन द्वारा चौदहवीं शताब्दी के पहले दशक में दिया जाने वाला 234 टंका प्रतिवर्ष या 19.5 टंका प्रतिमाह कोई छोटी राशि नहीं थी। खासकर जब हम इसकी तुलना बाद के शासकों अकबर 240 रू. प्रतिवर्ष से करते हैं। अलाउद्दीन अकबर से 6 रू. कम एवं शाहजहां से 34 रू. प्रतिवर्ष अधिक देता था अतः हम यह कह नहीं सकते कि सैनिकों की तनख्वाह कम थी। जब बाद के दिनों में लगभग इसी वेतन से अकबर एवं शाहजहां के अधीन सेना संतुष्ट थी, तब अलाउद्दीन के समय यह राशि अल्प नहीं कही जा सकती। अतः इस ध्येय से मूल्य नियंत्रण आवश्यक नहीं था। दूसरी ध्यान देनेवाली बात यह है कि अलाउद्दीन ने न सिर्फ अनिवार्य उपयोगी वस्तुओं का मूल्य नियंत्रण किया था बल्कि रेशम आदि विलास वस्तुओं के मूल्य पर भी अंकुश लगाया था। फिर एक और बात यह है कि मूल्य नियंत्रण का लाभ सिर्फ सैनिकों के लिए ही नहीं था बल्कि पूरी आम जनता के हित में था। हर कोई बाजार से नियत दर पर सामान खरीद सकता था। अगर यह सिर्फ सैनिक के लिए होता तो इसकी व्याप्ति सीमित होती। अलाउद्दीन का उद्देश्य तो अपनी प्रजा को इस कल्याणकारी उपाय द्वारा मदद करना था। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि लोक हितकारी विचार से यह योजना बनायी गयी थी। इस विषय पर एक अधिक तार्किक पक्ष यह है कि यह योजना मुद्रास्फीति नियंत्रण के उद्देश्य से लागू की गई थी। युद्ध में विजयोपरांत दिल्ली के नागरिकों के बीच धन का प्रचुर वितरण होता था। जिसके कारण दिल्ली में सोने एवं चांदी के सिक्कों की मात्रा में तेजी से वृद्धि हो गई थी। परंतु वस्तुओं की आपूर्ति उस अनुपात में पर्याप्त न होने के कारण मूल्य वृद्धि होना लाजिमी था। ऐसी परिस्थिति में जब दिल्ली में मुद्रा का संचालन में अधिक होना, व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा था और व्यापारी कृत्रिम अभाव पैदा कर मूल्य वृद्धि करने को प्रवृत हो रहे थे। फलतः अलाउद्दीन को व्यापारी वर्ग के इस जोड़ तोड़ को रोकने के लिए मूल्य नियंत्रण योजना लागू करना आवश्यक हो गया था। अलाउद्दीन ने खाने, पहनने व जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं के भाव नियत कर दिए। यहां तक कि गुलामों, नौकरों एवं दास-दासियों के भाव भी निश्चित थे। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि सस्ते में रोटी उपलबध कराकर अलाउद्दीन ने सफल शासन का जंतर प्राप्त कर लिया। अगर वह वस्तुओं के मूल्यों को नीचे लाता है तो उसे प्रसिद्धि मिल जाएगी एवं वह सफलतापूर्वक शासन कर पाएगा। एक तरफ उसने जहां अमीरों की कई सुविधाओं में कटौती की वहीं दूसरी ओर उन्हें विलास-वस्तुओं को कम कीमत पर मुहैया कराने का प्रबंध किया। अतः इस योजना का उद्देश्य एक व्यापक राजनीतिक हित साधन था। मूल्य नियंत्रण की आज्ञा केवल दिल्ली के लिए दी गई थी या पूरी सल्तनत के लिए, यह विवादास्पद प्रश्न है। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि यह योजना सिर्फ दिल्ली शहर तक सीमित थी। अगर यह सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित रही होती तो क्या सेनाओं के वेतन के लिए दुहरा मापदंड रखा गया था? संभवतया नहीं क्योंकि यदि यह योजना सिर्फ सेना के लिए थी तो सेना सिर्फ दिल्ली में ही नहीं रहती थी। और फिर अलग-अलग जगह रहनेवाली सेनाओं का वेतन अलग-अलग हो, यह व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता। दूसरी बात यह है कि यदि सिर्फ दिल्ली में ही मूल्य नियंत्रण होता तो दूरदराज के व्यापारी दिल्ली में आकर कम मूल्य पर अपना सामान क्यों बेचते? वे उसे कहीं और बेच सकते थे जहां उन्हें अधिक मुनाफा मिलता। ऐसा भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता कि दिल्ली में आकर व्यापार करने के लिए प्रशासन की तरफ से कोई बाध्यता थी। तो हम तार्किक रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि नियंत्रित बाजार सिर्फ दिल्ली में ही नहीं थे, बल्कि कुछ और बड़े केंद्रो में भी यह व्यवस्था थी। उन दिनों जब सरकारी मशीनरी इतनी संगठित नहीं थी, इस तरह की योजनाओं को सल्तनत के प्रत्येक शहर में लागू करना सहज नहीं था। यहां एक और ध्यान देनेवाली बात यह है कि इसका प्रमुख उद्देश्य मूल्य वृद्धि को नीचे लाना तथा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखना था। सोने एवं चांदी के सिक्कों की बहुतायत के कारण सिर्फ दिल्ली या फिर कुछेक बड़े शहरों में मूलय नियंत्रण से बाहर जा रहा था। अतः इस योजना की आवश्यकता दिल्ली एवं कुछेक बड़े शहरों में ही पड़ी होगी, बाकी मूल्य नीचे ही रहे होंगे। (ज़ारी…) |
यह आलेख कांदंबिनी में प्रकाशित हुआ था| |
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१
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प्रभावित करने वाली पोस्ट। सुंदर आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा पोस्ट!
जवाब देंहटाएं... bhaavpoorn abhivyakti !!!
जवाब देंहटाएंजानकारी रखने मे क्या हर्ज है
जवाब देंहटाएंnice post with historical evidences!
जवाब देंहटाएंgood to know that it got published in kadambini too...
best wishes!
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार और लाजवाब पोस्ट!
जवाब देंहटाएंऐतिहासिक जानकारी देने वाला प्रभावशाली आलेख. इसके लिए आप बधाई के पत्र हैं क्योंकि ये सब के विषय की बात नहीं है लेकिन ज्ञान की जरूर है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख .....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी देता लेख ...
जवाब देंहटाएंजानकारी में काफी इजाफा हुआ इतिहास वैसे भी मेरा पसंदीदा विषय है .आभार आपका.
जवाब देंहटाएंमूल्यवान प्रस्तुतियां
जवाब देंहटाएंज्ञानबर्धक आलेख ..पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआभार ...
यह देखना सुखद है कि अग्रजों की हत्या कर सत्तानशीं हुए शासक केवल महत्वाकांक्षी नहीं थे,व्यावहारिक पक्ष का ध्यान भी उन्हें था।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी वाली पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख.
जवाब देंहटाएंजहां तक खिलजी की सेना की बात थी। उसके सीधे नियंत्रण में रहने वाली भी शायद 70,000 घुड़सवार से कम नहीं थी। उस जमाने में किसी सुल्तान के अपने नियंत्रण में सीधे इतनी सेना नहीं थी। इसके अलावा सूदूर दक्षिण में मदूरै तक औऱ पूर्व में बंगाल तक सेना भेज कर विजयी अभियान चलाने के लिए अलग सेना की जरुरत थी। जिसके लिए काफी धन की जरुरत थी। इसलिए ये ज्यादा प्रतीत होता है कि ये व्यवस्था काफी दूर दूर तक प्रचलित थी। जाने-अनजाने इसका फायदा रियाया को भी होता था। वैसे भी भारत में धन की प्रचुरता में कमी नहीं थी। हालांकी धार्मिक कट्टरता के कारण खिलजी एक क्रूर शासक था। पर अर्थव्यवस्था का नियंत्रण और मजबूत इच्छाशक्ति से शासन चलाया जा सकता है खिलजी औऱ उसके 250 साल बाद अकबर से बेहतर कोई नहीं कर पाया।
जवाब देंहटाएंVery informative post...Thanks.
जवाब देंहटाएंअत्योत्तम आलेख....जानकारीपरक!
जवाब देंहटाएंआभार..
mera prashn hai hum apane javano ke liye kya kar rahe hai.......?
जवाब देंहटाएंsardee se bachane ke liye kya unake paas sabhee suvidhae uplabdh hai.....?
itihaas se hee kuch to seekha jae.........
ek acche lekh ko post banane ke liye dhanyvaad ....
अच्छा लेख । कोई भी व्यक्ति सिर्फ बुरा या सिर्फ अच्छा नही होता अच्छे बुरे गुण हर एक में होते हैं । अल्लाउद्दीन खिलजी की क्रूरता और लंपटता के किस्से तो सब जानते हैं पर वह एक कुशल शासक भी था आपने जानकारी दी ।
जवाब देंहटाएंBahut accha lika aapne. apne dharam ke liye har koi sakht mizas hota hai ye sirf allauddin ki hi nahi sabhi shashako ki baat hai chahe wo log hindu ho ya muslim shashak ho. lekin ye sirf mugal hi the jinhone hindustan ko apna ghar samjha aur babar se lekar aurangjeb tak sabhi ne hindustan ko sone ki chudya banaya. aur dunya ki sabse haseen imarat Taj Mahal ko banaya jis par aaj tak hindustan ko garv hai.lekin bhai logo mai to sirf itna kehna chahta hu ki aaj hum log is tarah ki imarat nahi bana sakte lekin unse jo paisa kamaya jata hai use to unke use me la sakte hai aur unki dekh rekh kar sakte hai.but I Proud to an Indian
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