आज हम स्वतंत्र भारत के नागरिक जब स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं ध्वज में चन्द पुष्प रख राष्ट्रध्वज फहराते हैं . यह देख अक्सर एक ख्याल आता है मन में क्या हम सच में स्वतंत्र हैं?
किसी मुख्य अतिथि का आना डोरी खींचना , पुष्पों का गिरना हमारा ताली बजाना और राष्ट्रीय गीत गाना . मात्र एक औपचारिकता राष्ट्रीय धर्म निभाने की और इस तरह ध्वज फहराने की .
पर क्या यही कर्तव्य है हमारा ?
आज हम स्वयं को स्वतंत्र मानते हैं पर कितने स्वतंत्र हैं यह कभी जाना?
आज हम अँग्रेज़ों से आज़ाद पर अँग्रेज़ी के गुलाम हैं जो दो बोल अँग्रेज़ी बोलता है समाज में उसी की शान है हमारे भारत के स्वतंत्र नागरिक प्रगतिशील हो गये हैं राष्ट्रीय भाषा नही अपितु अंतरराष्ट्रीय भाषा के ग्याता बन गये हैं . अँग्रेज़ी में गि ट - पिट कर स्वयं को उँचा मानते हैं जो भारती के ग्याता हैं वो हीनता के गर्त में गोते खाते हैं .
आज हम अँग्रेज़ों से स्वाधीन पर अँग्रेज़ियत में जकड़े हुए हैं भाषा के क्षेत्र में अभी तक पराधीनता को पकड़े हुए हैं.
इस स्वतंत्र भारत में अपनी राष्ट्र भाषा का कैसा गौरव बढ़ा रहे हैं ? पूरे वर्ष में हिन्दी की प्रगति के लिए केवल एक सप्ताह मना रहे हैं.
जब तक एक सप्ताह को बावन ( एक साल ) सप्ताह में नही बदल पाएँगे तब तक हिन्दी दिवस का अर्थ सही अर्थों में नही समझ पाएँगे जब भाषा में ही स्वतंत्र ना हो पाए तो इस स्वतंत्रता का क्या अर्थ है जब इस ध्वज का सम्मान ना कर पाए तो ध्वज फहराने का क्या अर्थ है?
नही--अब वक़्त नही- अब तो कुछ करना होगा आज इस क्षण हमें एक वचन लेना होगा . क्यों कर अँग्रेज़ी आगे है क्यों भारती पिछड़ रही है क्यों भाषा का अपमान हुआ क्यों हिन्दी सिसक रही है ? कुछ तो कहना होगा कुछ तो करना होगा भाषा की स्वतंत्रता के लिए एक वचन लेना ही होगा! -- |
अब वह समय आ गया है यह वचन लेना ही होगा संगीता जी हिंदी को एक दिन ,नहीं जीवन में अपनाएं
जवाब देंहटाएं... behatreen ... laajawaab ... prabhaavashaalee abhivyakti, badhaai !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संगीता जी ! मैं पूरी तरह से आपसे सहमत हूँ ! हिन्दी का वर्चस्व कम हो रहा है ! अपनी राष्ट्र भाषा और मातृ भाषा के गौरव को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमें संकल्प लेना ही होगा ! बहुत ही सार्थक प्रस्तुति ! आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....
जवाब देंहटाएंजब तक एक सप्ताह को
बावन ( एक साल ) सप्ताह में नही बदल पाएँगे
तब तक हिन्दी दिवस का अर्थ
सही अर्थों में नही समझ पाएँगे
बहुत ही बढ़िया संगीता जी ! बहुत ही सार्थक प्रस्तुति ! आभार !
मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com
अन्य भाषाओँ का ज्ञान होना ठीक है मगर प्राथमिकता तो अपनी हिंदी भाषा को ही दी जानी चाहिए ...
जवाब देंहटाएंअच्छी जागरूक करती पोस्ट ..
आभार ..!
निजु भाष उन्नति अहै सब उन्नति के मूल,
जवाब देंहटाएंबिनु निजु भाषा ज्ञान के मिटै न हिय के शूल
ये भारतेन्दु जी ने बिल्कुल सटीक कहा था…॥ औरहमे भी कुछ करना चाहिये
बहुत भावभीनी अभिव्यक्ति………………ये वचन तो लेना ही होगा।
जवाब देंहटाएंvachan le chuke hain
जवाब देंहटाएंहिंदी तो दो पाटों को जोड़ता पुल है। इसी कारण से इसे उस भाषा की अनुगामिनी बनने की नियति प्रदान की गई जिसके खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हिंदी तन कर खड़ी हुई थी।
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता प्राप्ति के 63 वर्षों पश्चात् भी हिन्दी को वह दर्ज़ा नहीं मिल पाया है, जिसकी वह हक़दार है। इसके पीछे बड़ी बाधा है --- हमारी मानसिकता। हममें से अधिकांश व्यक्ति अंग्रेज़ी बोलने में गर्व महसूस करता है और हिन्दी बोलते समय उसे हीनता का अनुभव होता है। क्योंकि, हमारी दृष्टि में प्रत्येक विदेशी वस्तु श्रेष्ठ है, भले वह कोई उपभोक्ता सामग्री हो, पॉप गीत या फिर भाषा। पश्चिमी देशों की संस्कृति, भाषा, लोक-व्यवहार का अंधानुकरण करने में ही हमें आधुनिकता दिखाई देती है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!
....सही कहा आपने...अंग्रेजो का शासन तो हमने समाप्त कर दिया, लेकिन अंग्रेजी तो अब तक हमारे देश में शासन कर ही रही है!...वचन हमने तो यही लेना है कि अंग्रेजी का भी शासन हटा दें!....अति महत्वपूर्ण लेख!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , सही आइना लिखाया है, अंग्रेजी परस्तों को. हम स्वतंत्रता के सारे सुख भोग रहे हैं लेकिन शान अपनी गुलामी में ही समझते हैं. ये मानसिक गुलामी से जब मुक्त होंगे तभी हम स्वतन्त्र होंगे. अगर माँ, मात्रभाषा और मातृभूमि का अर्थ जान लें तो फिर ये हिंदी दिवस अलग से मना कर इस बात को याद न दिलाना पड़े की
जवाब देंहटाएं"हिंदी हैं हम वतन हिंदुस्तान हमारा"
न सिर्फ़ वचन लेना होगा ... ुआके लिए कर्म भी करना होगा ... जीवन में लागू करना होगा ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही समसामयिक कविता.. भाषा के प्रति प्रेम को दर्शाती हुई...
जवाब देंहटाएंजिस दिन हिंदी को उसका स्थान मिलेगा
जवाब देंहटाएंउस दिन हिन्दुस्तान को सम्मान मिलेगा.
बहुत अच्छी कविता.
आज हम अँग्रेज़ों से स्वाधीन
जवाब देंहटाएंपर अँग्रेज़ियत में जकड़े हुए हैं
भाषा के क्षेत्र में अभी तक
पराधीनता को पकड़े हुए हैं.
ये भी सच है .. अंग्रेजियत छोड़ने की जरुरत है... बहुत बढ़िया रचना ...
संगीता जे बहुत कुछ कह दिया आपने अपनी रचना के माध्यम से ! मगर क्या हमारे वचन लेने से मामला सुधर जाएगा? शायद नहीं, हमारे राष्ट्र के ये संविधान निर्माता और उसके पोषक इस आज तक राष्ट्रभाषा का दर्जा तो संविधान में दिला नहीं पाए , दिखावे को एक हिन्दी दिवस मना लेते है बस ! देश एक और स्वतंत्रता आन्दोलन मांग रहा है और इस बार कोई विदेशे नहीं बल्कि देश की ही एक जमात जो सत्ता पर कब्ज़ा कर चुकी, को कंटेनरों में बंद करके अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में फेकना (एयर ड्रॉप) करना पडेगा !
जवाब देंहटाएंजागो भाषा के विष्णुगुप्त फिर चमत्कार दिखलाओ,
जवाब देंहटाएंविदेशज भाषा अलक्षेन्द्र से हमको त्राण दिलाओ।
पुनः उतिष्ठ विष्णुगुप्त! उतिष्ठ हिन्दी! उतिष्ठ भारत! उतिष्ठ भारती! -प्रकाश पंकज
@http://prakashpankaj.wordpress.com
बिल्कुल सही बात कही है आपने संगीता जी अपनी कविता के माध्यम से । केवल सितम्बर माह में ही सबको हिंदी की याद आती है । बाकी पूरे साल हम अंग्रेजी के गुणगान करते हैं । यह सोच तो निश्चित रूप से बदलनी ही चाहिए ।
जवाब देंहटाएं"मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती
जवाब देंहटाएंभगवान सारे विश्व में गूँजे हमारी भारती"
संगीताजी, हिंदी अब व्यवसाय की भाषा का रूप ले रही है। इसका अस्तित्व भूमंडलीय होता जा रहा है। आप को जान कर हर्ष होगा कि मेरी आवाज़ में दमादिदोवा, मास्को, अंतर्राषट्रीय हवाई अड्डे पर जनता हेतु हिंदी में भी उद्घोषणा 13 अगस्त 2007 से हो रही है। इसी तरह हिंदी लगातार मीडिया की भाषा बन विस्तार पा रही है।
केवल वचन इसके परिष्कृत एवम् साहित्यिक स्वरूप को विस्तार देने के लिए लेना होगा। आप जैसे साहित्यकारों से यह प्रयास जारी है।
आपकी सहज अभिव्यक्ति एवम् कविता के लिए
बधाइयाँ।
मेरे ब्लॉग पृष्टों पर भी पधारें। हालाँकि मैं इस क्षेत्र में शैशवावस्था में हूँ।
भाषा की स्वतंत्रता के लिए
जवाब देंहटाएंएक वचन लेना ही होगा!
संगीता जी बहुत खूब लिखा है मैं भी आपसे सहमत हूँ की मात्र एक दिवस मानाने से कुछ नहीं होगा हर एक दिन देना पड़ेगा हिंदी पर ध्यान और लोगों का ध्यान आकर्षित करना पड़ेगा
बेहद उम्दा ख्यालात
जवाब देंहटाएंआपको बधाई
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति. देरी के लिए क्षमा चाहती हूँ.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति पढ कर भारतेंदु हरीशचंद्र जी की लिखी दो पंक्तियाँ याद आ गयी..
जिसको न निजभाषा तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नही, नर पशु निरा है और मृतक समान है
अवश्य लेना होगा..उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
आदरणीय दी,
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति प्रस्तुत की आपने ...आभार !
बस इतना कहना चाहूंगी हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हमारा स्वाभिमान है .....हिंदी को आगे बड़ाने और इसका सम्मान बड़ाने के लिए हमें सतत प्रयत्नशील तो रहना ही है
हर भाषा महान होती है मानवीय संवेदनाओं के संचार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ......इसलिए कोई भाषा न तो निंदनीय है न ही उपेक्षा की पात्र बल्कि कई भाषओं का ज्ञान होना आपके ज्ञान कोष की वृद्धि करता है जो अच्छी बात है लेकिन ये निसंदेह सत्य है की किसी और की माँ भी अपनी ही माँ की तरह पूज्यनीय होती है लेकिन उसके सम्मान में अपनी माँ की उपेक्षा करना कोई महानता नहीं ....!
मात्रभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी का विस्तार और सम्मान सदा ही बड़ता रहे ...
जय हिंद जय हिंदी
सभी पाठकों का आभार ....आपने पढ़ा और सराहा ...आपकी सराहना नयी उर्जा देती है ...पुन: धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहिंदी है हम
जवाब देंहटाएंहिंदी है हम
हिंदी है हम
हिन्दोस्तान हमारा
सारे भाषा से अच्छा
हिंदी भाषा हमारा
मुझे ज्ञात नहीं कि पाठकों को कार्यालयीन संस्कृति के बारे में कुछ जानकारी है या नहीं पर एक बात तो बिल्कुल स्पष्ठ है कि सरकारी अधिकारी खाते तो हिंदी के नाम पर हैं, कभी-कभार गुणगान भी कर लेते हैं लेकिन वास्तविकता इसकी बिल्कुल उलट है। कार्यालयों में शत-प्रतिशत कार्य अंग्रेजी में होता है परन्तु दिखाया हिन्दी में जाता है। न तो इस पर कोई कार्रवाई होती है और न ही कोई इसे देखने को तैयार होता है। मैं आपको ऐसे-ऐसे संस्थानों के नाम भी बता सकता हूं जहां पर कभी हिंदी के पद भरे ही नहीं गये बल्कि उनके स्थान पर प्राधिकृत अधिकारियों द्वारा कार्य अंग्रेजी में किया जाता है। स्वयं हिंदी अधिकारी भी अंग्रेजी में काम करते हैं क्योंकि न तो उन्हें हिन्दी आती है और न ही वे प्रयास करते हैं। यदि कोई हिन्दी प्रेमी अपनी इस बात को रखता है तो कार्यालय में उस अधिकारी को सबके समक्ष प्रताड़ित किया जाता है और उसकी सुनने वाला न तो कोई कार्यालय में होता है और न ही सरकार में। मैं पिछले आठ वर्षों से इस पीड़ा को झेल रहा हूं जब इसके खिलाफ आवाज उठायी तो स्थिति कंपनी से निकालने तक की पैदा हो गयी है।
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