काव्य प्रयोजन (भाग-6)
स्वच्छंदतावाद और काव्य प्रयोजन
पिछली पांच पोस्टों मे हमने (१) काव्य-सृजन का उद्देश्य, (लिंक) (२) संस्कृत के आचार्यों के विचार (लिंक), (३) पाश्चात्य विद्वानों के विचार (लिंक), (४) नवजागरणकाल और काव्य प्रयोजन (लिंक) और नव अभिजात्यवाद और काव्य प्रयोजन (लिंक) की चर्चा की थी। जहां एक ओर संस्कृत के आचार्यों ने कहा था कि लोकमंगल और आनंद, ही कविता का “सकल प्रयोजन मौलिभूत” है, वहीं दूसरी ओर पाश्चात्य विचारकों ने लोकमंगलवादी (शिक्षा और ज्ञान) काव्यशास्त्र का समर्थन किया।। नवजागरणकाल के साहित्य का प्रयोजन था मानव की संवेदनात्मक ज्ञानात्मक चेतना का विकास और परिष्कार। जबकि नव अभिजात्यवादियों का यह मानना था कि साहित्य प्रयोजन में आनंद और नैतिक आदर्शों की शिक्षा को महत्व दिया जाना चाहिए। आइए अब पाश्चात्य विद्वानों की चर्चा को आगे बढाएं।
सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी में विकसित नव अभिजात्यवाद की विचारधारा के साथ-साथ नव-मानववाद का भी विकास हुआ। इस विचारधार में मानव को विश्व के केंद्र में माना गया। इसके अलावा आत्मवाद की भी अवधारण सामने आई। रचनाकार आत्माभिव्यक्ति के लिए अभिप्रेरित हुए।
इसी बीच एक महत्वपूर्ण घटना हुई थी ........ औद्योगिक क्रांति। इससे सामंतवादी ढांचे का पतन हुआ था और सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आया। इस तरह से प्रसिद्ध फ्रांसीसी क्रांति की नींव तैयार हो चुकी थी। फ्रांसीसी क्रांति का मुख्य स्वर था समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व। यही तीन स्वर उस समय के साहित्य सृजन के प्रयोजन बनकर उभरे।
इस प्रकार काव्य प्रयोजन ने एक नया आयाम ग्रहण किया। नव अभिजात्यवादी तो नियम और संयम में रूढि़बद्ध थे। पर इस काल में इसका भी विरोध हुआ और स्वच्छंदतावाद का उदय हुआ। विलियम ब्लेक (1757-1827) सैम्युअल कॉलरिज (1772-1834) विलियम वर्डसवर्थ (177-1850 ), शैले, कीट्स, बायरन आदि कवि ने इस विद्रोही स्वर को आवाज दी। इनके अनुसर काव्य सृजन का प्रयोजन था,
“आत्म साक्षात्कार, आत्म सृजन और आत्माभिव्यक्ति।”
इस तरह स्वच्छंदतावादियों ने अपने काव्य सृजन का प्रमुख उद्देश्य मानव की मुक्ति की कामना को माना। जहां इनके पूर्ववर्ती नव अभिजात्चादी नियम, संयम संतुलन, तर्क को तरजीह दे रहे थे, वहीं दूसरी ओर स्वच्छंदतावादी प्रकृति, स्वच्छंदता, मुक्त-अभिव्यक्ति, कल्पना और भावावेग को अपने सृजन में प्रधानता दे रहे थे।
जीवन में आनंद इनके सृजन का उद्देश्य था। आनंद के साथ साथ रहस्य, अद्भुत और वैचित्र्य में उनकी रूचि थी। स्वच्छंदतावादी मानते थे कि सृजन में सुंदर के साथ अद्भुत का संयोग होना चाहिए। यही उनके काव्य का प्राण तत्व था।
कॉलरिज और वर्डसवर्थ ने काव्य में कल्पना शक्ति पर बल दिया। वर्डसवर्थ ने ‘लिरिकल बैलेड्स’ में कहा,
“कविता हमें आनंद प्रदान करती है।”
इस प्रकार हम पाते हैं कि पश्चिम का स्वच्छंदतावाद भारतीय काव्यशास्त्र के रस-सिद्धांत के बहुत करीब है। हिंदी के आधुनिक आलोचकों में से एक डॉ. नगेन्द्र ने भी माना है कि स्वच्छंदतावाद का आनंदवाद से घनिष्ठ संबंध है।
इस काल के प्रमुख रचनाकारों, शैले, वर्डसवर्थ, कॉलरिज, कीट्स, बायरन की रचनाओं में आनंद का स्वर प्रमुखता से दिखाई पड़ता है।
स्वछंदतावादी काव्य समीक्षक डा. नगेंद्र ने ‘रस सिद्धांत’ में कहा भी है कि शैले का मानवता की मुक्ति में अटूट विश्वास, वर्डसवर्थ का सर्वात्मवाद, कॉलरिज का आत्मवाद, कीट्स का सौंदर्य के प्रति उल्लासपूर्ण आस्था और बायरन का जीवन के प्रति अबाध उत्साह, आनंदवाद के ही रूप हैं।
बढ़िया आलेख.
जवाब देंहटाएंस्वच्छंदतावाद और काव्य प्रयोजन पधारें
जवाब देंहटाएं“आत्म साक्षात्कार, आत्म सृजन और आत्माभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसार्थक बात ....सटीक लेख ..अच्छा लगा
“कविता हमें आनंद प्रदान करती है।” इस प्रकार हम पाते हैं कि पश्चिम का स्वच्छंदतावाद भारतीय काव्यशास्त्र के रस-सिद्धांत के बहुत करीब है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा………………वक्त के साथ बदलाव तो आते ही हैं तो काव्य के प्रति सोच मे भी आने ही थे ………………बहुत गंभीरता से आप विश्लेषण कर रहे है और काफ़ी अच्छी जानकारियाँ उपलब्ध करवा रहे है………………शुक्रिया।
गंभीर विश्लेषण... अच्छी जानकारियाँ
जवाब देंहटाएं....बढिया जानकारी दी है आपने!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद। बढिया जानकारी दी है आपने।
जवाब देंहटाएंसर जी.... बहुत ही अच्छी जानकारी है .
जवाब देंहटाएंहिंदी साहित्य की सेवा में आपका योगदान
बहुमूल्य है .
Achi jaankari ke liye thanks..
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक लेख. पिछले २-३ लेख छूट गए...कोशिश करुँगी उन्हें पढ़ कर खुद को अपडेट करने की.
जवाब देंहटाएंआभार.
आज के साहित्य की कक्षा में पश्चिमी साहित्य की ए़क और धारा से परिचय हुआ... इस बॉस कवियों के नाम बताने से युग और युगबोध अधिक स्पस्ट हो गया है...
जवाब देंहटाएंआपके आलेख की यह श्रंखला उनके लिए अधिक रुचिकर और ज्ञान वर्धक है जो साहित्य के छात्र नहीं रहे हैं.. उपयोगी आलेख !
जवाब देंहटाएंरुचिकर और ज्ञान वर्धक है !
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख.
जवाब देंहटाएंगंभीर विश्लेषण... अच्छी जानकारियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंacchhi prastuti
जवाब देंहटाएंनूर की बूँद, “अनामिका” पर, ... देखिए