नवगीत – श्यामनारायण मिश्र :: समय के देवता
कुछ लोगों में कविता के छांदसिक और छंदमुक्त रूप को लेकर मतभेद बना रहता है। कुछ लोगों को नवगीत, परम्परागत गीत, दोहा के अलावा कविता का छंदमुक्त रूप स्वीकार नहीं होता। श्यामनारायण मिश्र जी इसी श्रेणी में आते थे। वे गीत को पिता, नवगीत को पुत्र मानते थे बस। हां, नई कविता को नवगीत की सहोदरा मानते थे। चाहे जो भी मत रखते हों, वो एक समर्थ नवगीतकार थे। नवगीत के प्रति उनकी आस्था और समर्पण संदेह से परे था। तभी तो अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे सेन्ट्रल किडनी अस्पताल जबलपुर में उपचार के दौरान जब भी राहत मिलती “केन्द्र में नवगीत” संग्रह की भूमिका लिखने में जुट जाते। सन् २००८ नये साल का पहला दिन जीकर, वह बड़े जीवट का नवगीतकार २ जनवरी की रात अपनी अवधारणा “केन्द्र में नवगीत” को छोड़, मृत्यु के पार के संसार में चला गया। आज उसी संग्रह से एक नवगीत प्रस्तुत है।
समय के देवता!
--- श्यामनारायण मिश्र
समय के देवता!
थोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
तुम्हारे पुण्य-चरणों की
महकती धूल में
आस्था के बीज बोना चाहता हूं।
उम्र भर दौड़ा थका-हारा,
विजन में श्लथ पड़ा हूं।
विचारों के चके उखड़े,
धुरे टूटे,
औंधा रथ पड़ा हूं।
आंसुओं से अंजुरी भर-भर,
तुम्हारे चरण धोना चाहता हूं।
धन-ऋण हुए लघुत्तम
गुणनफल शून्य ही रहा।
धधक कर आग अंतस
हो रहे ठंडे, आंख से
बस धुंआ बहा।
तुम्हारे छोर पर क्षितिज पर,
अस्तित्व खोना चाहता हूं।
आंसुओं से अंजुरी भर-भर,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे चरण धोना चाहता हूं।
XXXXXXXXXXXXXXXX
तुम्हारे छोर पर क्षितिज पर,
अस्तित्व खोना चाहता हूं।
सुंदर तरीके से भाव को अभिव्यक्त किया है ...समय से प्रार्थना की है उसके साथ चलने की ...और अंततः उसमें विलीन होने की ..यही जिन्दगी का यथार्थ है ....सही होता हम समय के साथ चल पाते ...शुभकामनायें
बहुत सुंदर और प्रेरक नवगीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअच्छे भाव !
हम सब प्रायः ऐसी ही ज़िंदगी जी रहे होते हैं। और ज़्यादा ज़मीन माप लेने की दौड़ में बेतहाशा भागते हुए। और,जब अंत आता है,तो पता चलता है कि दो गज़ ज़मीन ही काफी थी।
जवाब देंहटाएंनवीन भाव के गीत... प्रेरित करते..
जवाब देंहटाएंश्यामनारायण मिश्र --- नवगीत के जादूगर थे
जवाब देंहटाएंमैं २ अक्बटूर १९८३ में उनके सम्पर्क में आया और अंतिम साँस के कुछ घंटों तक उनके साथ रहा नवगीत उनकी सांसों में इस तरह रचा बसा था जैसे देह के साथ प्राण अपनी अंतिम साँस के १५ मिनिट पूर्व उन्होंने अपने नवगीत की कुछ पंक्तियाँ नए नवगीत की सुनाई जो सायद लिपिबद्ध नहीं हो पाईं उनके निर्वाण के दो दिन पहले मैं सपत्नीक उनसे मिलाने उनके निवास जबलपुर गया था !हम दोनों रात भर नवगीत को ले कर बातें करते रहे इस बीच उन्होंने जगदीश श्रीवास्तव विदिशा और देवेन्द्र इंद्र से दूरभाष पर बातें की और मुझे भी बात करवाया हम सब लोगों ने मिलकर सुबह का नाश्ता किया और फिर वही नवगीत का उनका विषय मुझे मार्गदर्शन देते रहे इसके बाद उन्होंने मुझे कहा भोलानाथ जी मुझे फिर आज अस्पताल में भारती होना है डाईलेसिस के लिए आप बहु को मैहर छोड़ आओ सुबह आ जाना मैंने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए ! शाम को चित्रकूट एक्सप्रेस से मैहर के लिए निकल गया मुझे भी पता था अब श्याम नारायण जी का अंतिम समय है फिर भी मैं उनके निर्देशानुसार उनके अग्रज और अनुज से धर जा कर मिला और उनकी बात सामने रखा विचार विमर्श के बाद यह तो बिलकुल साफ हो गया की कोई काम नहीं आयेंगे मैं उस दिन कटनी में सारा समय बिताया आनंद तिवारी की खोज में था! आनंद तिवारी अपने गृह ग्राम संकरी गढ़ गए हुए थे अतः हमारी मुलाकात नहीं हो पाई और मैं उस दिन फिर वापस अपने तत्कालीन निवास मैहर वापस आ गया फ़ोन कर के उनकी बिटिया से हाल चाल पूछा और सो गए और सुबह के फिर मैं वापस उनके पास पहुंचा तब तक अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके थे मैं फिर निवास पर गया फिर दोनों लान में बैठे हुए बहुत देर तक गीत सुनते सुनाते रहे ! इस तरह अंतिम क्षणों तक उन्होंने गीत गया ! अनके अंतिम गीत के कुछ शब्द मुझे अभी भी याद हैं और मैं कभी कभी गुनगुना लेता हूँ ! 'समय साक्ष्य तुम्हें ही देना है गा लेने दो अंतिम गीत मुझे......'
और "हिंदी साहित्य के केंद्र में नवगीत" प्रेरणा छोड़ इस संसार से विदा हो गए हमेशा हमेशा के लिए !
भोलानाथ
श्यामनारायण मिश्र --- नवगीत के जादूगर थे
जवाब देंहटाएंमैं २ अक्बटूर १९८३ में उनके सम्पर्क में आया और अंतिम साँस के कुछ घंटों तक उनके साथ रहा नवगीत उनकी सांसों में इस तरह रचा बसा था जैसे देह के साथ प्राण अपनी अंतिम साँस के १५ मिनिट पूर्व उन्होंने अपने नवगीत की कुछ पंक्तियाँ नए नवगीत की सुनाई जो सायद लिपिबद्ध नहीं हो पाईं उनके निर्वाण के दो दिन पहले मैं सपत्नीक उनसे मिलाने उनके निवास जबलपुर गया था !हम दोनों रात भर नवगीत को ले कर बातें करते रहे इस बीच उन्होंने जगदीश श्रीवास्तव विदिशा और देवेन्द्र इंद्र से दूरभाष पर बातें की और मुझे भी बात करवाया हम सब लोगों ने मिलकर सुबह का नाश्ता किया और फिर वही नवगीत का उनका विषय मुझे मार्गदर्शन देते रहे इसके बाद उन्होंने मुझे कहा भोलानाथ जी मुझे फिर आज अस्पताल में भारती होना है डाईलेसिस के लिए आप बहु को मैहर छोड़ आओ सुबह आ जाना मैंने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए ! शाम को चित्रकूट एक्सप्रेस से मैहर के लिए निकल गया मुझे भी पता था अब श्याम नारायण जी का अंतिम समय है फिर भी मैं उनके निर्देशानुसार उनके अग्रज और अनुज से धर जा कर मिला और उनकी बात सामने रखा विचार विमर्श के बाद यह तो बिलकुल साफ हो गया की कोई काम नहीं आयेंगे मैं उस दिन कटनी में सारा समय बिताया आनंद तिवारी की खोज में था! आनंद तिवारी अपने गृह ग्राम संकरी गढ़ गए हुए थे अतः हमारी मुलाकात नहीं हो पाई और मैं उस दिन फिर वापस अपने तत्कालीन निवास मैहर वापस आ गया फ़ोन कर के उनकी बिटिया से हाल चाल पूछा और सो गए और सुबह के फिर मैं वापस उनके पास पहुंचा तब तक अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके थे मैं फिर निवास पर गया फिर दोनों लान में बैठे हुए बहुत देर तक गीत सुनते सुनाते रहे ! इस तरह अंतिम क्षणों तक उन्होंने गीत गया ! अनके अंतिम गीत के कुछ शब्द मुझे अभी भी याद हैं और मैं कभी कभी गुनगुना लेता हूँ ! 'समय साक्ष्य तुम्हें ही देना है गा लेने दो अंतिम गीत मुझे......'
और "हिंदी साहित्य के केंद्र में नवगीत" प्रेरणा छोड़ इस संसार से विदा हो गए हमेशा हमेशा के लिए !
भोलानाथ
मेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया नवगीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर सामाजिक व्यवस्था और प्रबंधन की चरमराती लचर तानाशाही के कुरूप चहरे की मुक्म्मल बदलाव की जरूत महसूस करता हुआ नवगीत !
हटाएंसाहित्यिक संध्या की सुन्दरतम की पूर्व बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्...
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
चेहरों का
अक्स नहीं उभरा
तरासेंगी चींटियाँ
चमचमाता आइना
फोड़ कर
पाँव से पहाड़,
बरसाती
मेंढकों से
सुन सुन
गंगा की अमर कथा
कुओं की गुलरियाँ
तोड़ रहीं पानी में हाड,
गोबर की गौरें
बंदन कर
पूजी हैं
कई कई
नदी ताल झरने
समझी विधायें न
पाथ दिये कंडे !
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
गुर क्या सीखेंगे
बडबोले नेवले
पिया जहर
नागों का
उगल रहे ओंठों से
शब्दों के ऊपर,
संज्ञायें सूरज की
निगल रही
लोमड़ियाँ
बंजर के
इतिहासी शिलालेख
गुरुकुल में उगी है थूहर,
चुंगी चिलम के
अखबारी चर्चे
कसे हैं
देवालय धुंआ में
बाना लिये
मुह में
नाच रहे पँडे !
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
सनकी हवाओं की
धमकी दबे पाँव
हलकी सी आहट
सवाली शहर की
हवेली है
कोनों से खंडित,
बरगद की छाती
अनचाही
पीपल की माया
बामियों बमीठों में
खोज रहा हाथी
जादूगर पंडित,
मुखागर
कहें क्या
सूखी है स्याही
कलम की
ओंठों के
नगमे
कंठों में कैसे हैं ठंडे !
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
भोलानाथ
डॉराधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क – 8989139763
मेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया नवगीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर सामाजिक व्यवस्था और प्रबंधन की चरमराती लचर तानाशाही के कुरूप चहरे की मुक्म्मल बदलाव की जरूत महसूस करता हुआ नवगीत !
हटाएंसाहित्यिक संध्या की सुन्दरतम की पूर्व बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्...
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
चेहरों का
अक्स नहीं उभरा
तरासेंगी चींटियाँ
चमचमाता आइना
फोड़ कर
पाँव से पहाड़,
बरसाती
मेंढकों से
सुन सुन
गंगा की अमर कथा
कुओं की गुलरियाँ
तोड़ रहीं पानी में हाड,
गोबर की गौरें
बंदन कर
पूजी हैं
कई कई
नदी ताल झरने
समझी विधायें न
पाथ दिये कंडे !
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
गुर क्या सीखेंगे
बडबोले नेवले
पिया जहर
नागों का
उगल रहे ओंठों से
शब्दों के ऊपर,
संज्ञायें सूरज की
निगल रही
लोमड़ियाँ
बंजर के
इतिहासी शिलालेख
गुरुकुल में उगी है थूहर,
चुंगी चिलम के
अखबारी चर्चे
कसे हैं
देवालय धुंआ में
बाना लिये
मुह में
नाच रहे पँडे !
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
सनकी हवाओं की
धमकी दबे पाँव
हलकी सी आहट
सवाली शहर की
हवेली है
कोनों से खंडित,
बरगद की छाती
अनचाही
पीपल की माया
बामियों बमीठों में
खोज रहा हाथी
जादूगर पंडित,
मुखागर
कहें क्या
सूखी है स्याही
कलम की
ओंठों के
नगमे
कंठों में कैसे हैं ठंडे !
गूंगे मुह
साहस तो देखिये
चूहों ने
मांदों को
भूंसे का
ढेर समझ
गाड दिये पौरुष के झंडे !
बिल्ली
बिलारों की
बात क्या करें
शेरों के
सामने
शिकारी से तने हुये
चींटियों के अंडे !
भोलानाथ
डॉराधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क – 8989139763