बुधवार, 17 नवंबर 2010

लघुकथा :: शांति का दूत

लघुकथा

 शांति का दूत

--- --- मनोज कुमार

साइबेरिया के प्रदेशों में इस बार काफी बर्फ पड़ रही थी। उस नर सारस की कुछ ही दिनों पहले एक मादा सारस से दोस्ती हुई थी। दोस्ती क्या हुई, बात थोड़ी आगे भी बढ़ गई। इतनी बर्फ पड़ती देख नर सारस ने मादा सारस को अपनी चिंता जताई – “हमारी दोस्ती का अंकुर पल्लवित-पुष्पित होने का समय आया तो इतनी जोरों की बर्फबारी शुरू हो गई है यहां .. क्या करें ?” मादा सारस ने सुझाया – “सुना है ऋषि मुनियों का एक देश है भारत ! वहां पर चलें तो हम इस मुसीबत के मौसम को सुखचैन से पार कर जाएंगे।”

दोनों हजारों मीलों की यात्रा तय कर भारत आ गए। यहां का खुशगवार मौसम उन्हें काफी रास आया। मादा सारस ने अपने नन्हें-मुन्नों को जन्म भी दिया। यहां के प्रवास के दौरान उनकी एक श्वेत-कपोत से मित्रता भी हो गई। श्वेत-कपोत हमेशा उनके साथ रहता, उन्हें भारत के पर्वत, वन-उपवन, वाटिका, सर-कूप आदि की सैर कराता।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। सारस के अपने प्रदेश लौटने का समय निकट आता गया सारस-द्वय अपने नन्हें सारसों के साथ यहां काफी खुश थे, न केवल श्वेत-कपोत की मित्रता से बल्कि आने वाले पर्यटकों से भी। एक दिन सुबह-सुबह सारस-द्वय अपने स्थानीय मित्र श्वेत-कपोत के साथ झील की तट पर अपना प्रिय आहार प्राप्त करने गए। भोजन को मुंह में दबा पंख फैलाकर उड़ान भरने की कोशिश की, पर उड़ न पाए। परदेशी सारस के साथ स्थानीय श्वेत-कपोत भी शिकारी की जाल में फंस गए।

श्वेत-कपोत की आंखों से आंसू टपक पड़े। उसे स्वयं के जाल में फंस जाने का दुख नहीं था, उसके लिए यह तो आम बात थी। सारस-द्वय के लिए उसे दुख तो था, पर उतना नहीं जितना इस बात के लिए कि वे दोनो बच्चे जो बच गए हैं, अब लौट कर अपने वतन जाएंगे और वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा। हम कहीं और चलें। अब फिर वे यहां नहीं आएंगे।

.. .. पता नहीं अपने-अपने प्रदेश के लिए कौन शांति का दूत है .. ?

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपका यह प्रयास अनूठा है... एक कथा के माध्यम से आपने इस समस्या को उठाने की कोशिश की है जो सर्वथा सराहनीय है... पंचतंत्र की कहानियाँ याद आ गईं.

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  2. सम्वेदना के स्वर ने सही कहा है। इस सुन्दर प्रयोग के लिये बधाई।

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  3. वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा। हम कहीं और चलें। अब फिर वे यहां नहीं आएंगे।


    .. .. पता नहीं अपने-अपने प्रदेश के लिए कौन शांति का दूत है ..

    बहुत सारगर्भित लघु कथा ....

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  4. अब लौट कर अपने वतन जाएंगे और वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा। हम कहीं और चलें। अब फिर वे यहां नहीं आएंगे। .. .. पता नहीं अपने-अपने प्रदेश के लिए कौन शांति का दूत है .. ?
    ओह! अब कुछ कहने को बचा ही नहीं…………सोचने को मजबूर कर दिया।

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  5. अदभुद ! प्रवासी क्या अब तो स्थानीय निवासी के लिए भी सुरक्षित नहीं रहा ऋषि मुनियों का देश.. एक छोटी कविता थी मेरी...
    "चिड़ियों के लिए
    महफूज़ नहीं रह गया है
    आकाश
    सुना है कि
    पहुँच गए हैं
    आदमी के हाथ"

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  6. अब लौट कर अपने वतन जाएंगे और वहां के लोगों से कहेंगे ऋषि-मुनियों का देश अब शांत नहीं रहा। हम कहीं और चलें। अब फिर वे यहां नहीं आएंगे।

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  7. मत भावुक हो उठा... बहुत गहरे सवाल उठाती हुई बहुत अच्छी लघुकथा

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  8. बहुत बड़ी बात कह गयी आपकी यह छोटी कहानी. जैसे गागर में भरा हो सागर जितना पानी .बधाई .

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  9. छोटी और एक अच्छी कथा.शुभकामनायें..

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  10. आपके इस प्रयास के लिये बधाई...

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  11. अच्छे सन्देश से युक्त सराहनीय लघुकथा.

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  12. आह ! जब स्याह सच सामने आ जाता है तो आह ही निकलती है ........ हाय ! क्या हो गया इस देश को ... सुन्दर प्रस्तुति ......

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