श्याम नारायण मिश्र देश के ख्यातिलब्ध नवगीतकार हैं। उनके नवगीतों में प्रकृति का अद्भुत् चित्रण और मनोभावों का सूक्ष्म विश्लेषण है। कथ्य, बिम्ब योजना, छान्दसिकता, शिल्प-शौष्ठव, चित्रात्मकता की दृष्टि से उनके नवगीत नव्य-भव्य और अन्य रचनाकारों के समांतर अपनी मौलिक पहचान रखते हैं। आज प्रस्तुत है ....
जन्मगाथा गीत की
बांस का जंगल जला,
फिर बांसुरी ने गीत गाए।
तुम कहां हो
गीत की यह जन्मगाथा मन सुनाए।
तीर्थ से लौटी नहीं है श्वांस पश्चाताप की,
दूर तक फैली हुई पगडंडियां है पाप की,
पोर गिन-गिन उंगलियां डाकिन चबाए।
अस्थियां इतिहास की कलश देहरी पर धरा है।
और आंगन में अधूरे कत्ल का शोणित भरा है।
कौन? आंखों के दिए में आग भर के
प्रेत को फिर से जगाए।
सच में यह नवगीत प्रकृति का अद्भुत् चित्रण और मनोभावों का सूक्ष्म विश्लेषण, कथ्य, बिम्ब योजना, छान्दसिकता, शिल्प-शौष्ठव, चित्रात्मकता की दृष्टि से नव्य-भव्य बन पड़ा है।
जवाब देंहटाएंमनोज जी की बात को ही आगे बढाते हुए उसमें लयात्मकता जोड़ना चाहता हूँ. डाकिन शब्द से बहुत दिनों बाद मिलना हुआ...
जवाब देंहटाएं... bahut sundar ... shaandaar prastuti !!!
जवाब देंहटाएंकौन? आंखों के दिए में आग भर के
जवाब देंहटाएंप्रेत को फिर से जगाए।
बेहतरीन चित्रण ………………पढवाने के लिये आभार्। आखिरी पंक्तियाँ दिल मे उतर गयीं।
अस्थियां इतिहास की कलश देहरी पर धरा है।
जवाब देंहटाएंऔर आंगन में अधूरे कत्ल का शोणित भरा है।
विचारों को झकझोड़ने की क्षमता है इस नवगीत में ....... बहुत उम्दा लिखा है ...
तत्सम और तद्भव शब्दों के अनूठे संयोग का सुंदर दृश्य उपस्थित हुआ है इस गीत के माध्यम से। बेहद सशक्त गीत। कम शब्दों में अर्थ का भण्डार। यह प्रमाणित करता है कि गीत में विस्तृत अर्थ भरने के लिए अधिक शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती और यह एक समर्थ रचनाकार ही कर सकता है।
जवाब देंहटाएंआभार।
बेहतरीन नवगीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएं"अस्थियां इतिहास की कलश देहरी पर धरा है।
जवाब देंहटाएंऔर आंगन में अधूरे कत्ल का शोणित भरा है।"... बहुत सुन्दर गीत. कम देखने को मिलते हैं आज कल गीत.
बहुत ही सुन्दर नवगीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंगहन गूढ़ार्थों को समेटे, अनूठे बिंबों से सजी, अद्भुत नवगीत. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.