सोमवार, 14 जनवरी 2013

मधुशाला ... भाग - 15 / हरिवंश राय बच्चन

जन्म -- 27 नवंबर 1907 
निधन -- 18 जनवरी 2003 

मधुशाला ..... भाग ---15


वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला, 

जिसमें मैं बिंबित - प्रतिबिम्बित  प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।



मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।



मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छंछा प्याला,
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!
बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।१२३।



कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ  गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।१२४।



अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला, 
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर  पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।



'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'
'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित  जी
'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६।



कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७।



जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रसिक , उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।



जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।



हर जिह्वा  पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।१३०।

क्रमश: 



11 टिप्‍पणियां:

  1. आहा! आनन्दमयी है मधुशाला
    जिसने पीया मय का प्याला

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  2. सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  3. अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
    अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
    फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -
    अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।
    कितना सटीक.

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय बच्चन जी की "मधुशाला" की प्रस्तुति के

    लिए शुक्रिया ....वैसे सच कहा जाय तो मेरी आदत

    किताबें पढने की नहीं थीं, अभी भी आदत में शुमार नहीं

    हो पाया है, किन्तु मेरा सौभाग्य है आप लोगों का यहाँ साथ

    पाकर। इस मंच पर बहुत कुछ "रसपान" करने को मिल रहा है ..

    आभार !......

    जवाब देंहटाएं
  6. मधुर आनंद ... हमेशा की ताजगी लिए ...

    जवाब देंहटाएं

  7. आभार इस मधु रस को बिखेरे रखने के लिए

    जवाब देंहटाएं
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