सोमवार, 29 अप्रैल 2013

रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर


'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ?
कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ?
धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान?
जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान?

'नहीं पूछता है कोई तुम व्रती , वीर या दानी हो?
सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो?
मगर, मनुज क्या करे? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं,
चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं।

'मैं कहता हूँ, अगर विधाता नर को मुठ्ठी में भरकर,
कहीं छींट दें ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमण्डल पर,
तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहाँ आ सकता है;
नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है?

'कौन जन्म लेता किस कुल में? आकस्मिक ही है यह बात,
छोटे कुल पर, किन्तु यहाँ होते तब भी कितने आघात!
हाय, जाति छोटी है, तो फिर सभी हमारे गुण छोटे,
जाति बड़ी, तो बड़े बनें, वे, रहें लाख चाहे खोटे।'

गुरु को लिए कर्ण चिन्तन में था जब मग्न, अचल बैठा,
तभी एक विषकीट कहीं से आसन के नीचे पैठा।
वज्रदंष्ट्र वह लगा कर्ण के उरु को कुतर-कुतर खाने,
और बनाकर छिद्र मांस में मन्द-मन्द भीतर जाने।

कर्ण विकल हो उठा, दुष्ट भौरे पर हाथ धरे कैसे,
बिना हिलाये अंग कीट को किसी तरह पकड़े कैसे?
पर भीतर उस धँसे कीट तक हाथ नहीं जा सकता था,
बिना उठाये पाँव शत्रु को कर्ण नहीं पा सकता था।

क्रमश:

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 6...... रामधारी सिंह ' दिनकर '


वीर वही है जो कि शत्रु पर जब भी खड्‌ग उठाता है,
मानवता के महागुणों की सत्ता भूल न जाता है।
सीमित जो रख सके खड्‌ग को, पास उसी को आने दो,
विप्रजाति के सिवा किसी को मत तलवार उठाने दो।

'जब-जब मैं शर-चाप उठा कर करतब कुछ दिखलाता हूँ,
सुनकर आशीर्वाद देव का, धन्य-धन्य हो जाता हूँ।
'जियो, जियो अय वत्स! तीर तुमने कैसा यह मारा है,
दहक उठा वन उधर, इधर फूटी निर्झर की धारा है।

'मैं शंकित था, ब्राह्मा वीरता मेरे साथ मरेगी क्या,
परशुराम की याद विप्र की जाति न जुगा धरेगी क्या?
पाकर तुम्हें किन्तु, इस वन में, मेरा हृदय हुआ शीतल,
तुम अवश्य ढोओगे उसको मुझमें है जो तेज, अनल।

'जियो, जियो ब्राह्मणकुमार! तुम अक्षय कीर्ति कमाओगे,
एक बार तुम भी धरती को निःक्षत्रिय कर जाओगे।
निश्चय, तुम ब्राह्मणकुमार हो, कवच और कुण्डल-धारी,
तप कर सकते और पिता-माता किसके इतना भारी?

'किन्तु हाय! 'ब्राह्मणकुमार' सुन प्रण काँपने लगते हैं,
मन उठता धिक्कार, हृदय में भाव ग्लानि के जगते हैं।
गुरु का प्रेम किसी को भी क्या ऐसे कभी खला होगा?
और शिष्य ने कभी किसी गुरु को इस तरह छला होगा?

'पर मेरा क्या दोष? हाय! मैं और दूसरा क्या करता,
पी सारा अपमान, द्रोण के मैं कैसे पैरों पड़ता।
और पाँव पड़ने से भी क्या गूढ़ ज्ञान सिखलाते वे,
एकलव्य-सा नहीं अँगूठा क्या मेरा कटवाते वे?

क्रमश: 

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 5 / रामधारी सिंह ' दिनकर '


सिर था जो सारे समाज का, वही अनादर पाता है।
जो भी खिलता फूल, भुजा के ऊपर चढ़ता जाता है।
चारों ओर लोभ की ज्वाला, चारों ओर भोग की जय;
पाप-भार से दबी-धँसी जा रही धरा पल-पल निश्चय।

'जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलायेंगे,
ज्ञान, त्याग, तप नहीं श्रेष्ठता का जबतक पद पायेंगे।
अशन-वसन से हीन, दीनता में जीवन धरनेवाले।
सहकर भी अपमान मनुजता की चिन्ता करनेवाले,

'कवि, कोविद, विज्ञान-विशारद, कलाकार, पण्डित, ज्ञानी,
कनक नहीं , कल्पना, ज्ञान, उज्ज्वल चरित्र के अभिमानी,
इन विभूतियों को जब तक संसार नहीं पहचानेगा,
राजाओं से अधिक पूज्य जब तक न इन्हें वह मानेगा,

'तब तक पड़ी आग में धरती, इसी तरह अकुलायेगी,
चाहे जो भी करे, दुखों से छूट नहीं वह पायेगी।
थकी जीभ समझा कर, गहरी लगी ठेस अभिलाषा को,
भूप समझता नहीं और कुछ, छोड़ खड्‌ग की भाषा को।

'रोक-टोक से नहीं सुनेगा, नृप समाज अविचारी है,
ग्रीवाहर, निष्ठुर कुठार का यह मदान्ध अधिकारी है।
इसीलिए तो मैं कहता हूँ, अरे ज्ञानियों! खड्‌ग धरो,
हर न सका जिसको कोई भी, भू का वह तुम त्रास हरो।

'नित्य कहा करते हैं गुरुवर, 'खड्‌ग महाभयकारी है,
इसे उठाने का जग में हर एक नहीं अधिकारी है।
वही उठा सकता है इसको, जो कठोर हो, कोमल भी,
जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।

क्रमश: 

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

टैबलेट में हिन्‍दी गुगल इंस्‍टालेशन




टैबलेट में हिन्‍दी गुगल इंस्‍टालेशन

सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ ही बाजार में दिन प्रतिदिन नए-नए इलेक्‍ट्रॉनिक गैजेट आ रहे हैं इनमें सर्वाधिक प्रचलित हैं टैबलेट्स तथा स्‍मार्ट फोन । इस अंक में टैबलेट्स में गुगल हिन्‍दी एप्पलिकेशन इंस्‍टॉल करने संबंधी जानकारी प्रस्‍तुत है।

सर्वप्रथम टैबलेट को इंटरनेट से कनेक्‍ट करें तथा वेबब्राउजर ओपन कर  गुगल प्ले स्टोर में जाकरGoogle Hindi Input सर्च करें या 
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.google.android.apps.inputmethod.hindi लिंक क्लिक कर G.H.I.apk फाइल डाउनलोड कर लें। यदि कतिपय कारणों से आप पूर्वोक्‍त साइट से G.H.I.apk फाइल डाउनलोड नहीं कर पा रहे हैं तो इसे http://www.mediafire.com/?dfz243nwxibemzf लिंक से क्लिक कर डाउनलोड करें। यह एप्‍पलिकेशन मात्र 5.85  एम.बी.साइज का है।

डाउनलोड फोल्‍डर या उस फोल्‍डर विशेष को ओपन करें जहॉं आपने G.H.I.apk को सेव किया है । अब G.H.I.apk फाइल को रन कर दें। ऐसा करते ही G.H.I.apk रन करने संबंधी सूचना प्रदर्शित होगी। अगले क्रम में क्रमश: ओ.के., इंस्‍टॉल बटन को टच करते हुए डन बटन को टच करें ।

टैबलेट के सिस्‍टम सेंटिंग को टच कर सक्रिय करें। ऐसा करते ही सेटिंग मेन्‍यू ओपन हो जाएगा जिसमें वाई फाई, डेटा यूसेज, साउन्‍ड, डिस्‍पले, स्‍टोरेज आदि बहुत सारे फिचर प्रदर्शित होंगे। इन्‍हें स्‍क्राल करते हुए लैंग्‍वेज एण्‍ड इनपूट को टच करते हुए सक्रिय करें।

उपरोक्‍त क्रिया के निष्‍पादन के साथ ही समानांतर विंडों में क्रमश: लैंग्‍वेज, स्‍पेलिंग करेक्‍शन,पर्सनल डिक्‍शनरी व की-बोर्ड एण्‍ड इनपूट मेथड़ ऑप्‍शन दिखाई देगा।  

इन विकल्‍पों में से की-बोर्ड एण्‍ड इनपूट मेथड़ ऑप्‍शन को टच कर एक्टिवेट कर लें। ऐसे होते ही‘’सिलेक्‍ट इनपूट मेंथड़’’ नामक नया विंडों ओपन हो जाएगा जिसमें विद्यमान इंग्लिश एंड्रायड की-बोर्ड तथा हिन्‍दी ट्रॉन्‍स्‍लिट्रेशन  गुगल हिन्‍दी इनपूट की-बोर्ड संबंधी विकल्‍प प्रदर्शित हो जाएगा। इनमें से हिन्‍दी ट्रॉन्‍स्‍लिट्रेशन  गुगल हिन्‍दी इनपूट की-बोर्ड को टच करते हुए डिफाल्‍ट की-बोर्ड के रूप में सेट करें। ऐसा करने पर हिन्‍दी ट्रॉन्‍स्‍लिट्रेशन  गुगल हिन्‍दी इनपूट की-बोर्ड के सम्‍मुख बना रेडियो बटन हाईलाइट हो जाएगा तथा आपके टैबलेट में गुगल हिन्‍दी इनपूट संस्‍थापित हो जाएगा । इस इनपूट विधि से आप टैबलेट में विद्यमान वर्ड, स्‍प्रेडशीट, प्रेजेंटेशन, मेसेज, नोटपैड तथा इन्टरनेट ब्राउजर पर सहजता के साथ हिन्‍दी में टंकण कर सकेंगे।



हिन्‍दी की-बोर्ड :-
किसी भी टैक्‍स्‍ट एडिटिंग प्रोग्राम को ओपन करें तथा लिखने के लिए टैक्‍स्‍ट एरिया में अपनी उंगलियॉं टच करें। ऐसा करते ही वर्चुअल की-बोर्ड स्‍क्रीन पर प्रदर्शित हो जाएगा। प्रथमत: यह की-बोर्ड अंग्रेजी में प्रदर्शित होगा। हिन्‍दी में लिखने के लिए प्रदर्शित की-बोर्ड के स्‍पेसबार की बॉंयी ओर मौजूद ’’टोगल-की’’ को टच करें। प्रतिक्रियास्‍वरूप वर्चुअल हिन्‍दी की-बोर्ड प्रस्‍तुत हो जाएगा।

हिन्‍दी में टंकण विधि :-
टैबलेट में हिन्‍दी टाइप करना बहुत आसान है। हिन्‍दी वर्चुअल की-बोर्ड की प्रथम दो पंक्तियों में व्‍यंजन तथा तृतीय पंक्ति में स्‍वर टाइप करने की व्‍यवस्‍था है। उल्‍लेखनीय है इस कि-बोर्ड पर एक बार में केवल 20 व्‍यंजन तथा 7 स्‍वर प्रदर्शित करने की व्‍यवस्‍था है। अत : शेष व्‍यंजन एवं स्‍वर देखने अथवा टाइप करने हेतु "1/2" की दिया गया है जिसे टच कर शेष व्‍यंजनों तथा स्‍वरों का टाइप किया जा सकता है। इसके अतिरिक्‍त हिन्‍दी में अंक, प्रतिशत, हैश, रूपये, जोड़, घटाव, कोष्‍ठक, प्रश्‍नचिह्न तथा गुणा संबंधी प्रतीक चिह्नों के टंकण हेतु विशेष की भी इस की-बोर्ड में है।

पुन: अंग्रेजी की-बोर्ड सक्रिय करना:
"टोगल-की" को टच कर पुन: अंग्रेजी की-बोर्ड का सक्रिय किया जा सकता है।

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4 ...... दिनकर


खड्‌ग बड़ा उद्धत होता है, उद्धत होते हैं राजे,
इसीलिए तो सदा बनाते रहते वे रण के बाजे।
और करे ज्ञानी ब्राह्मण क्या? असि-विहीन मन डरता है,
राजा देता मान, भूप का वह भी आदर करता है।

'सुनता कौन यहाँ ब्राह्मण की, करते सब अपने मन की,
डुबो रही शोणित में भू को भूपों की लिप्सा रण की।
औ' रण भी किसलिए? नहीं जग से दुख-दैन्य भगाने को,
परशोषक, पथ-भ्रान्त मनुज को नहीं धर्म पर लाने को।

'रण केवल इसलिए कि राजे और सुखी हों, मानी हों,
और प्रजाएँ मिलें उन्हें, वे और अधिक अभिमानी हों।
रण केवल इसलिए कि वे कल्पित अभाव से छूट सकें,
बढ़े राज्य की सीमा, जिससे अधिक जनों को लूट सकें।

'रण केवल इसलिए कि सत्ता बढ़े, नहीं पत्ता डोले,
भूपों के विपरीत न कोई, कहीं, कभी, कुछ भी बोले।
ज्यों-ज्यों मिलती विजय, अहं नरपति का बढ़ता जाता है,
और जोर से वह समाज के सिर पर चढ़ता जाता है।

'अब तो है यह दशा कि जो कुछ है, वह राजा का बल है,
ब्राह्मण खड़ा सामने केवल लिए शंख-गंगाजल है।
कहाँ तेज ब्राह्मण में, अविवेकी राजा को रोक सके,
धरे कुपथ पर जभी पाँव वह, तत्क्षण उसको टोक सके।

'और कहे भी तो ब्राह्मण की बात कौन सुन पाता है?
यहाँ रोज राजा ब्राह्मण को अपमानित करवाता है।
चलती नहीं यहाँ पंडित की, चलती नहीं तपस्वी की,
जय पुकारती प्रजा रात-दिन राजा जयी यशस्वी की!

क्रमश: