सोमवार, 21 जून 2010

काव्यशास्त्र-18

काव्यशास्त्र-18

आचार्य परशुराम राय

आचार्य हेमचन्द्र

आचार्य हेमचन्द्र का जन्म गुजरात प्रान्त के अहमदाबाद जनपद के धुन्धुक गांव में 1088 ई. में हुआ था। ये जैनधर्म के विख्यात आचार्य हैं। इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की। अनहिलपट्टन के चालुक्य राजा सिद्धराज के आग्रह पर इन्होंने व्याकरण पर एक ग्रंथ लिखा और महाराज सिद्धराज और अपने नाम पर उसका नाम सिद्धहेम रखा।

काव्यशास्त्र पर इनका अत्यंत प्रसिद्ध ग्रंथ “काव्यानुशासन”मिलता है। यह सूत्र शैली में लिखा गया है। इस पर “विवेक”नामक टीका भी इन्होंने स्वयं लिखा है। यह ग्रंथ अध्यायों में विभक्त है। इसमें काव्य के लक्षण, प्रयोजन, रस, दोष, गुण, अलंकार आदि का निरूपण किया गया है। इसमें काव्यमीमांसा, काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक, अभिनव भारती आदि से लम्बे उद्धरण लिए गए हैं।

आचार्य हेमचन्द्र ने 1172 ई. में 84 वर्ष की आयु में अपना शरीर छोड़ा। काव्यानुशासन के लिए ये हमेशा काव्यशास्त्र के इतिहास में याद किए जाएंगे।

आचार्य रामचन्द्र और गुणचन्द्र

आचार्य रामचन्द्र और आचार्य गुणचन्द्र दोनों आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य हैं। इन दोनों आचार्यों का नाम साथ-साथ आता है। इन दोनों के नाम काव्यशास्त्र के इतिहास में संयुक्त रूप से विरचित“नाट्यशास्त्र” के कारण याद किए जाएंगे।

इनका कार्यकाल गुजरात के सिद्धराज, कुमारपाल और अजयपाल तीनों राजाओं के शासनकाल में रहा है। कहा जाता है कि अन्तिम राजा अजयपाल ने किसी कारण से क्रोधित होकर इन्हें प्राणदण्ड दे दिया था।

आचार्य गुणचन्द्र का “नाट्यदर्पण” के अलावा और कोई दूसरा ग्रंथ नहीं मिलता है। लेकिन कहा जाता है कि आचार्य रामचन्द्र ने कुल लगभग 190 ग्रंथों की रचना की थी। इनके द्वारा विरचित 11 नाटकों के उद्धरण “नाट्यदर्पण” में देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त “नाट्यशास्त्र” के इस ग्रंथ में अनेक दुर्लभ नाटकों के भी उद्धरण आए हैं, यथा विशाखदत्त द्वारा विरचित“देवीचन्द्र गुप्त”।

“नाट्यदर्पण” की रचना कारिका शैली में की गयी है। इसकी वृत्ति भी इन्हीं दोनों आचार्यों ने लिखी है। यह ग्रंथ चार “विवेकों”में विभक्त है। इसमें नाटक, प्रकरण आदि रूपक, रस, अभिनव एवं रूपक से सम्बन्धित अन्य विषयों का भी निरूपण किया गया है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. अनेक वजहों से,हम कितनी ही साहित्यिक धरोहरों से वंचित रह गए हैं। अगर वे उपलब्ध होते,तो नाट्यशास्त्र के संबंध में पश्चिमी विचारों को भाव देने की हमें ज़रूरत नहीं पड़ती।

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  2. भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के बाद इनकी चर्चा तो साहित्य में होती है मगर ज्यादा विस्तार से प्रकाश नहीं डाला गया है।

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  3. यह श्रृंखला साहित्य के अध्येताओं के लिए कालान्तर में धरोहर साबित होगी !

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