मंगलवार, 22 जून 2010

काव्यशास्त्र-19

काव्यशास्त्र-19

आचार्य  वाग्भट्ट

आचार्य  परशुराम राय

 

कुछ काल तक गुजरात का अनहिलपट्टन राच्य जैन विद्वनों का केन्द्र था। आचार्य हेमचन्द्र, रामचन्द्र, गुणचन्द्र आदि काव्यशास्त्र के अनेक आचार्यों ने शास्त्रों एवं साहित्य का प्रणयन किया। इसी परम्परा में आचार्य रामचन्द्र-गुणचन्द्र के बाद आचार्य वाग्भट का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इनका काल अनहिलपट्टन के चालुक्यवंशी राजा जयसिंह का शासन काल माना जाता है। अपने ग्रंथ “वाग्भटालंकार”में उदाहरण के रूप में राजा जयसिंह की स्तुति देखने को मिलती है। इसके अनुसार वे राजा जयसिंह के मंत्री (महामात्य) भी थे।

_a_art_028 आचार्य  वाग्भट को अनेक ग्रंथों का रचयिता माना जाता है, जिनमें वाग्भटालङ्कार, काव्यानुशासन, नेमिनिर्वाणमहाकाव्य, ऋषभदेवचरित, छन्दोनुशासन और अष्टाङ्गहृदयसंहिता मुख्य हैं। कुछ लोगों का मानना है कि दो वाग्भट हुए हैं और उन्हें वाग्भट प्रथम और वाग्भट द्वितीय के नाम से अभिहित करते हैं। इस मान्यता के अनुसार वाग्भट प्रथम ने केवल वाग्भटालंकार की रचना की थी और काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन एवं ऋषभदेवचरित की रचना वाग्भट द्वितीय ने। नेमिनिर्वाणहाकाव्य और आयुर्वेद पर लिखी अष्टांगहृदयसंहिता किस वाग्भट की रचनाएँ हैं, स्पष्ट नहीं है। लेकिन कुछ विद्वान दो वाग्भट न मानकर उक्त सारी रचनाएँ एक ही वाग्भट की मानते हैं। क्योंकि वाग्भटालङ्कार की टीका में एक पंक्ति इस प्रकार मिलती है-

‘इदानीं ग्रंथकार इदमलङ्कारकर्तृत्वख्यापनाय वाग्भटाभिधस्य महाकवेर्महायात्यस्य तन्नाम गाथया एकया निदर्शयति।’

उपर्युक्त पंक्ति में आचार्यवाग्भट को महाकवि, अलङ्कारकर्ता और महामात्य कहा गया है।  इससे लगता है कि उक्त ग्रंथों  के रचयिता एक ही वाग्भट हैं।

_a_back_prof1 आचार्य वाग्भट के जीवन वृत्त के विषय में  बहुत अधिक नहीं मिलता। लेकिन उपर्युक्त सारी उपलब्धियों के होते हुए भी इनके जीवन में बड़ी ही दुखद घटना हुई। इनकी एक अत्यन्त सुन्दरी, गुणवती, विदुषी एवं कवयित्री कन्या जब विवाह के योग्य हुई, तो उसे हठात् राजप्रासाद की शोभा बढ़ाने के लिए इनसे छीन लिया गया। न चाहते हुए भी कठोर राजाज्ञा के सामने दोनों को झुकना पड़ा। राजभवन प्रस्थान करते समय पिता को सान्त्वना देते हुए उसने कहा-

    तात वाग्भट! मा रोदीः कर्मणां गतिरिदृशी।

    दुष्  धातोरिवास्माकं गुणो दोषाय केवलम्।।

उक्त  घटना का उल्लेख करते हुए अत्यन्त  कष्ट का अनुभव हो रहा है।  आज भी इक्कीसवीं शताब्दी में सारे विकास के होते हुए भी हम लोगों को ऐसी घटनाएँ आए दिन देखने-सुनने को मिलती हैं, यह उससे भी दुखद है।

इन  सबके बावजूद काव्य जगत  आचार्य वाग्भट को याद रखेगा। काव्यशास्त्र के क्षेत्र  में इनके दो ग्रंथ ‘वाग्भटालङ्कार’ और ‘काव्यानुशासन’ बड़े ही महत्त्वपूर्ण है।

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