जन्म -- 27 नवंबर 1907
निधन -- 18 जनवरी 2003
बुरा सदा कहलायेगा जग में
बाँका, मद-चंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी,
अलबेला पीने वाला,
अलबेला पीने वाला,
पटे कहाँ से, मधुशाला औ'
जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण,
पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।
बिना पिये जो मधुशाला को
बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुँह
पर पड़ जाएगा ताला,
दास- द्रोहियों दोनों में है
जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में
आई मेरी मधुशाला।।२४।
हरा भरा रहता मदिरालय,
जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए,
यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी
वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी,
ईद मनाती मधुशाला।।२५।
एक बरस में, एक बार ही
जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी,
जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन
आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली,
रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
नहीं जानता कौन, मनुज
आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से,
जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर
मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले
पाई उसने मधुशाला।।२७।
बनी रहें अंगूर लताएँ
जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे
बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा
तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले,
बनी रहे यह मधुशाला।।२८।
सकुशल समझो मुझको, सकुशल
रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे
मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो
आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो 'जय राम' न मिलकर,
कहा करो 'जय मधुशाला'।।२९।
सूर्य बने मधु का विक्रेता,
सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी,
भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा
रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ,
वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०।
क्रमश:
बढ़िया |
जवाब देंहटाएंआभार ||
बनी रहे वह मिटटी जिससे
जवाब देंहटाएंबनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा
तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले,
बनी रहे यह मधुशाला।।२८
आनन्द आ रहा है पढकर्………अलौकिक सुख समाया है इसमें…………आभार
बहुत सुन्दर ...सच में आनंद आ जाता है पढकर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर....
जवाब देंहटाएंसुन्दर............
सुन्दर....................
आभार संगीता दी..
अनु
har baar nai lagti hai ye madhushaala...
जवाब देंहटाएंपहले तो बिलकुल
जवाब देंहटाएंपढ़ना लिखना कुछ भाता नहीं था,
धन्य धन्य ये ब्लॉग की दुनिया;
हिंदी के बड़े बड़े साहित्यकारों की कृतियों से
परिचय कराने वाली
पाकर आप लोगों का संग,
मन में उमड़ा उत्साह-उमंग
दुई आखर लिख पा रहा हूँ
वरना कलम पकड़ना भी आता नहीं था।।
डॉ बच्चन जी की कविता के कुछ अंश पढ़कर
मन्त्र मुग्ध हो गया .........
प्रस्तुति के लिए सादर सधन्यवाद ...जय जोहार।
सुन्दर कविता पढकर आनन्द आ गया
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद कविता के प्रकाशन के लिए
बिखरे मोती
जवाब देंहटाएंखलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
डैश बोर्ड चिटठा जगत राज भाषा हिंदी चर्चा मंच गीत...मेरी अनुभूतियाँब्लॉग जगत में मधु छिडकाव करने के लिए आपका शुक्रिया .
जाग रहे नित पीने वाले, जगी पड़ी है मधुशाला . कृपया शेर के स्थान पर शैर लिखें बिखरे मोती परिचय में .और चिठ्ठा लिखें .शुक्रिया .
madhushala ko paribhashit karti rachna.
जवाब देंहटाएंपढ़े मर्सिया दुनिया सारी,
जवाब देंहटाएंईद मनाती मधुशाला।
अहा क्या पंक्तियां हैं!
दिन को होली, रात दिवाली,
रोज़ मनाती मधुशाला।
एक-एक पंक्ति सौ-सौ बार पढ़ने का मन करता है।