यादें जो जुड़ी रहती हैं हर एक के विगत जीवन से ,
सबके पास होता है कुछ न कुछ याद करने को , हर एक के हिस्से में आती हैं यादें - कुछ खट्टी ,कुछ
मीठी ,कुछ कसैली ,तो कुछ खुशनुमा .... इन्हीं यादों को पिरोया है ‘
यादों के पाखी ‘ में । यादों के पाखी एक हाइकु संग्रह है जिसको संपादित किया है श्री रामेश्वर काम्बोज
‘हिमांशु ’ , डॉo भावना कुँअर
और डॉo हरदीप कौर संधु जी ने । इस संग्रह में कुल 48 हाइकुकारों
की रचनाएँ हैं । जहां एक ओर इसमें वरिष्ठ हाइकुकार शामिल हैं वहीं संपादक मण्डल ने
इसमें नए रचनाकारों को भी शामिल किया है । वरिष्ठ हाइकुकारों के साथ मैं स्वयं को पा कर अभिभूत हूँ
.... इसका सम्पूर्ण श्रेय श्री रामेश्वर काम्बोज
जी को जाता है जिनहोने मुझे हाइकु विधा में लिखने के लिए प्रेरित किया .... उनके प्रति
मैं हृदय से आभारी हूँ ।
यादों को समेटे हर रचनाकार
ने लंबी और सार्थक उड़ान लगाई है ....नन्हें नन्हें हाइकु में यादों को समेट लिया है
और मात्र 17 अक्षर वाले हाइकु यादों को प्रेषित करने के सशक्त माध्यम बन गए हैं
....अकेलेपन
में यादों की महक कुछ ऐसे महसूस होती है ---
अकेलापन / मन-दर्पण यादें /
चन्दन वन । ( डॉo
भगवतशरण अग्रवाल )
यादें निरंतर मन से जुड़ी रहती
हैं ...
जाले बुनतीं / यादों की मकड़ियाँ
/ नहीं थकतीं । ( डॉo
सुधा गुप्ता )
स्मृतियाँ अथाह सागर के समान
हैं ---
बिन्दु से बिन्दु / जोड़ जोड़
बनता / स्मृति का सिंधु । ( डॉo मिथलेश दीक्षित )
मन में बसा है गाँव -----
गाँव मुझको /
ढूँढता , मैं गाँव को / खो गए दोनों । ( डॉo
रमाकांत श्रीवास्तव )
तपती छांव / पनघट उदास / कहाँ
वे गाँव ? ( डॉo
गोपाल बाबू शर्मा )
क्या यादें कभी भूली जा सकती
हैं ?
संभव है क्या ?
तुम्हारी स्मृतियों से / मेरी विदाई ? (डॉo
उर्मिला अग्रवाल )
नदी किनारे की न जाने कौन सी
यादों को समेटे भाव पूर्ण हाइकु देखिये –
नदी का तीर / सपनों में आकार
/ देता है पीर । ( रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु
’)
कुछ यादें सूखे पत्तों जैसे
बिखर जाती हैं उनको सहेजना कितना दुष्कर होता है ? –
सूखे पत्ते –सी / चूर – चूर
बिखरी / सहेजीं यादें । ( डॉo भावना कुंअर )
कभी कभी यादें रूह को भी तृप्त
कर जाती हैं ---
पलों में मिटे / जब यादें हों
पास / रूह की प्यास । ( डॉo हरदीप कौर संधु )
कुछ और हाइकु के उदाहरण देखिये-----
ढूँढता फिरे / यादों – भरी
चाँदनी / आहत मन /
पिरोएँ हम / वक़्त की सुई –संग
/ यादों के रंग /
यादों के बीज / बोये हथेली
पर / उगी फसल /
पांखुरी यादें / बिखरा जाऊँगी
मैं / चुन लेना तू ।
यादें रिसतीं / ज़ख्म है पिघलता
/ व्याकुल मन ।
यादों के पन्ने / आँसू से गीले हुये /तो भी न फटे ।
यादों की रेत / फैसले हर पल
/ पोर – पोर से ।
मन – आँगन / खिले गुलमोहर /
तेरी याद के ।
हंसें या रोएँ / जीवन की माटी
में / यादें ही बोएं ।
छीला जो मैंने / यादों की फलियों
को / बिखरे दाने ।
मन – झरोखा / झांक कर जो देखा
/ यादें थीं सोयीं ।
पुस्तक का नाम ---- यादों के पाखी
संपादक -- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’,
डॉo भावना कुंअर ,
डॉo हरदीप कौर संधु
संयोजक --- रचना श्रीवास्तव
मूल्य --- 200 / रुपये
ISBN ----
978-81-7408-566-5
प्रकाशक ----- अयन
प्रकाशन
1/20, महरौली ,
नयी दिल्ली – 110030 / दूरभाष : 26645812
शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी , दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा से लग रहा है बहुत ही सुन्दर संग्रह है यह.
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई आपको, हिमांशु जी को और सभी प्रतिभागियों को.
इस संग्रह के बारे में जानकरी अच्छी लगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंतपती छांव / पनघट उदास / कहाँ वे गाँव ?
जवाब देंहटाएंकितनी अची बात कही गई है, कम शब्दों में।
आपने एक बेहतरीन परिचय दिया है इस पुस्तक का।