'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ?
कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ?
धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान?
जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान?
'नहीं पूछता है कोई तुम व्रती , वीर या दानी हो?
सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो?
मगर, मनुज क्या करे? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं,
चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं।
'मैं कहता हूँ, अगर विधाता नर को मुठ्ठी में भरकर,
कहीं छींट दें ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमण्डल पर,
तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहाँ आ सकता है;
नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है?
'कौन जन्म लेता किस कुल में? आकस्मिक ही है यह बात,
छोटे कुल पर, किन्तु यहाँ होते तब भी कितने आघात!
हाय, जाति छोटी है, तो फिर सभी हमारे गुण छोटे,
जाति बड़ी, तो बड़े बनें, वे, रहें लाख चाहे खोटे।'
गुरु को लिए कर्ण चिन्तन में था जब मग्न, अचल बैठा,
तभी एक विषकीट कहीं से आसन के नीचे पैठा।
वज्रदंष्ट्र वह लगा कर्ण के उरु को कुतर-कुतर खाने,
और बनाकर छिद्र मांस में मन्द-मन्द भीतर जाने।
कर्ण विकल हो उठा, दुष्ट भौरे पर हाथ धरे कैसे,
बिना हिलाये अंग कीट को किसी तरह पकड़े कैसे?
पर भीतर उस धँसे कीट तक हाथ नहीं जा सकता था,
बिना उठाये पाँव शत्रु को कर्ण नहीं पा सकता था।
क्रमश:
दिनकर जी को पढना हमेशा ही प्रेरक होता है. नेट पर रश्मिरथी का प्रसरण सुखद और मंगलकारी संयोग है. संगीता जी को बधाई और उनके श्रम को नमन...
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रसंग
जवाब देंहटाएंbahut accha lagta hai dinkar jee ko padhna dhanyavad sangeeta jee .....
जवाब देंहटाएंशानदार |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आभार ..... अद्भुत पोस्ट साझा करने का
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंआभार आपका
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये क़पया एक बार अवश्य देंखें
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अत्यंत सुन्दर एवं प्रभावी प्रस्तुति | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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शानदार प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं@मानवता अब तार-तार है
दैवायत्ते कुले जन्मः
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ।
bahut sunder prastuti abhar...
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जवाब देंहटाएंसमकालीन संदर्भो से परे नहीं है यह रचना भारत के सन्दर्भ में काल जीत रचना है यह दिनकर जी की। आभार आपका पढवाने को।
सारी सेकुलर राजनीति आज कर्ण को मार के खा रही है-
और खुद कुर्सी पा रही है।
सावधान सेकुलरों से २०१४ आ रहा है ,
वोट का लिटमस पेपर टेस्ट आ रहा है ,
सेकुलर झांसे में मत आना ,
कर्ण फिर मारा जाएगा।
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
रश्मिरथी मुझे इतनी पसंद है कि पूरी कंठस्थ है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
२०० साल तक जीना चाहते हो तो यह पोस्ट जरुर पढ़िए
http://merasamast.blogspot.in/2013/12/blog-post_27.html#comments
शानदार प्रस्तुति., अच्छी कविता से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
जवाब देंहटाएं"सपनों की भी उम्र होती है "पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।
प्रशंसनीय पोस्ट ! बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंशानदार, अद्भुत !
जवाब देंहटाएंDINKAR JEE KEE YE RACHANA AAJ BHEE PRASANGIK HAI.
जवाब देंहटाएंउत्कृ्श्ट रचना1
जवाब देंहटाएंधँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान?
जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान? वाह सही कहा है1
दिनकर जी को नमन ! और आपको भी,जिनके माध्यम से यह कृति हमें उपलब्ध हुई ।
जवाब देंहटाएंव्लॉग पर लिखना नही हो रहा। किसी खास काम में व्यस्त हैं शायद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ब्लाग और बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंVery nice post ...
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog.
प्रशंसनीय पोस्ट ! बहुत बहुत आभार ! मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंvery nice thanku...
जवाब देंहटाएंVisit Science notes in hindi
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर हमेशा ही बहुत अच्छी जानकारी दी जाती है ऐसे ही लिखते रहिये Keep it Up
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