सोमवार, 15 अप्रैल 2013

रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 5 / रामधारी सिंह ' दिनकर '


सिर था जो सारे समाज का, वही अनादर पाता है।
जो भी खिलता फूल, भुजा के ऊपर चढ़ता जाता है।
चारों ओर लोभ की ज्वाला, चारों ओर भोग की जय;
पाप-भार से दबी-धँसी जा रही धरा पल-पल निश्चय।

'जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलायेंगे,
ज्ञान, त्याग, तप नहीं श्रेष्ठता का जबतक पद पायेंगे।
अशन-वसन से हीन, दीनता में जीवन धरनेवाले।
सहकर भी अपमान मनुजता की चिन्ता करनेवाले,

'कवि, कोविद, विज्ञान-विशारद, कलाकार, पण्डित, ज्ञानी,
कनक नहीं , कल्पना, ज्ञान, उज्ज्वल चरित्र के अभिमानी,
इन विभूतियों को जब तक संसार नहीं पहचानेगा,
राजाओं से अधिक पूज्य जब तक न इन्हें वह मानेगा,

'तब तक पड़ी आग में धरती, इसी तरह अकुलायेगी,
चाहे जो भी करे, दुखों से छूट नहीं वह पायेगी।
थकी जीभ समझा कर, गहरी लगी ठेस अभिलाषा को,
भूप समझता नहीं और कुछ, छोड़ खड्‌ग की भाषा को।

'रोक-टोक से नहीं सुनेगा, नृप समाज अविचारी है,
ग्रीवाहर, निष्ठुर कुठार का यह मदान्ध अधिकारी है।
इसीलिए तो मैं कहता हूँ, अरे ज्ञानियों! खड्‌ग धरो,
हर न सका जिसको कोई भी, भू का वह तुम त्रास हरो।

'नित्य कहा करते हैं गुरुवर, 'खड्‌ग महाभयकारी है,
इसे उठाने का जग में हर एक नहीं अधिकारी है।
वही उठा सकता है इसको, जो कठोर हो, कोमल भी,
जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।

क्रमश: 

3 टिप्‍पणियां:

  1. कवि, कोविद, विज्ञान-विशारद, कलाकार, पण्डित, ज्ञानी,
    कनक नहीं , कल्पना, ज्ञान, उज्ज्वल चरित्र के अभिमानी,
    इन विभूतियों को जब तक संसार नहीं पहचानेगा,
    राजाओं से अधिक पूज्य जब तक न इन्हें वह मानेगा,

    'तब तक पड़ी आग में धरती, इसी तरह अकुलायेगी,
    चाहे जो भी करे, दुखों से छूट नहीं वह पायेगी।
    थकी जीभ समझा कर, गहरी लगी ठेस अभिलाषा को,
    भूप समझता नहीं और कुछ, छोड़ खड्‌ग की भाषा को।
    क्या गज़ब की पंक्तियाँ ...आज भी सटीक.

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  2. वही उठा सकता है इसको ,जो कठोर हो ,कोमल भी ,
    जिसमे हो धीरता ,वीरता और तपस्या का बल भी .
    बहुत सुंदर ...आभार।

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