जब आया पैगाम मेरी मौत का मेरे पास कहा मैंने ठहर अभी उसका ख़त आएगा गर ठहर तू जायेगी कुछ देर और तो क्या धरा पर भूचाल आ जायेगा । हंस कर बोली यूँ मुझसे मौत तब ज़िन्दगी हो गई है अब तेरी पूरी चाह तेरी निकली नही अब तलक भटक रही है क्यों तू लिए आशा अधूरी । छोड़ दे ये अधूरी आस तू मत भटक अब इस संसार में ज़िन्दगी के क्षण तुझे जितने मिले बिता दिए तुने उन्हें बस प्यार में । आई थी जब अकेली इस संसार में कोई भी बंधन तुझसे नही जुडा था बंध गई तू इन सांसारिक बंधनों से कि तुझ पर झूठा आवरण एक पड़ा हुआ था । जब असलियत " मैं " आ गई सामने तेरे अब भी तुझे एहसास नही होता है काट दे इन सांसारिक बंधनों को कि इंसान का बस यही अस्तित्व होता है. संगीता स्वरुप |
सोमवार, 17 जनवरी 2011
अस्तित्व
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आशा का संचार करती सुन्दर कविता.. मन मुग्ध हो गया सुबह सुबह..
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंयही अकाट्य सत्य है ……………मगर ये बंधन इतने आसानी से कहाँ छूटते हैं और गर छूट जाये तो जीना सार्थक हो जाता है……………बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनहीं जानता कि आपने आस्तित्व लिखा है या अस्तित्व!
जवाब देंहटाएंकविता की उडान तो रचनाधर्मी ही समझ सकता है!
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फिर भी रचना बहुत सुन्दर बन पड़ी है!
शास्वत सत्य।
जवाब देंहटाएंउसे आना ही है एक बार।
जिसकी बरसों से प्रतीक्षा है।
दीदी,
जवाब देंहटाएंयह शास्वत सत्य है, अन्य सब मोहबँधन!!
ऐसी रचना पढकर आपार शांति महसुस होती है.
आप सभी सुधि पाठकों का शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएं@ शास्त्री जी ,
त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए आभार
जब आया पैगाम मेरी मौत का मेरे पास
जवाब देंहटाएंकहा मैंने ठहर अभी उसका ख़त आएगा
....
kaisa hai ye jaal moh ka
kaise pakke dhage !
• इस कविता मॆं एक दर्शन और जीने के हठ का संकेत है। थोड़ा अमूर्तन, थोड़ी अभिधा, थोड़ी फैंटेसी है, मगर अनूठापन है। बाहर-भीतर का दृश्यात्मक प्रकाश है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे भाव, मजा आ गया पढकर।
जवाब देंहटाएं---------
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Sangeetaji Behad prabhavpoorn abhivyakti. Abhi bahar hoon isliye Hindi me comment nahin de pa rahi hoon. lekin kavita itani pyari hai ki khud ko rok bhi nahin pa rahi hoon . Itani sundar abhivyakti ke liye badhai evam shubhkamnayen.
जवाब देंहटाएंजब असलियत " मैं " आ गई सामने तेरे
जवाब देंहटाएंअब भी तुझे एहसास नही होता है
काट दे इन सांसारिक बंधनों को
कि इंसान का बस यही अस्तित्व होता है.
सटीक बात कहती हुई रचना-
शुभकामनाएं
आई थी जब अकेली इस संसार में
जवाब देंहटाएंकोई भी बंधन तुझसे नही जुडा था
बंध गई तू इन सांसारिक बंधनों से
कि तुझ पर झूठा आवरण एक पड़ा हुआ था
बस यही शास्वत सत्य है .हर कोई इसे मान ले तो जिंदगी कितनी आसान हो जाये.
बहुत प्रभावी रचना.
जीवन के साथ मृत्यु शाश्वत है लेकिन फिर भी सभी समझते हैं कि मैं मृत्यु से परे हूँ। अन्तिम क्षण तक भी आशाएं पीछा नहीं छोड़ती।
जवाब देंहटाएंजीवन के शास्वत सत्य से रुबरु कराती प्रभावशाली रचना ।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar avivyakti
जवाब देंहटाएंसंगीता दी!
जवाब देंहटाएंमोक्ष उसी जाल को काटने का नाम है! जीवन दर्शन प्रस्तुत करती कविता!!
बहुत ही अच्छे भाव...बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण कविता .....बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएं'insan ka bas yahi astitv hota hai'
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna. '
'insan ka bas yahi astitv hota hai'
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna. '
सार्थक चिंतन...
जवाब देंहटाएंइन्सान के वजूद पर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएं... bahut khoob ... prasanshaneey, badhaai !!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह लाजवाब और अपने ही निराले अंदाज़ में बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
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