रात की स्याही जब चारों ओर फैलती है गुनाहों के कीड़े ख़ुद -ब -ख़ुद बाहर निकल आते हैं चीर कर सन्नाटा रात के अंधेरे का एक के बाद एक ये गुनाह करते चले जाते हैं। इनको न ज़िन्दगी से प्यार है और न गुनाहों से है दुश्मनी ज़िन्दगी का क्या मकसद है ये भी नही पहचानते हैं। रास्ता एक पकड़ लिया है जैसे बस अपराध का उस पर बिना सोचे ही बढ़ते चले जाते हैं। कभी कोई उन्हें सही राह तो दिखाए ये तो अपनी ज़िन्दगी बरबाद किए जाते हैं। चाँद की चाँदनी में ज्यों दीखता है बिल्कुल साफ़ चलो उनकी ज़िन्दगी में कुछ चाँदनी बिखेर आते हैं। कोशिश हो सकती है शायद हमारी कामयाब स्याह रातों से उन्हें हम उजेरे में ले आते हैं । एक बार रोशनी गर उनकी ज़िन्दगी में छा गई तो गुनाहों की किताब को बस दफ़न कर आते हैं. संगीता स्वरुप |
सोमवार, 17 अक्तूबर 2011
एक कोशिश
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ज्ञान की रोशनी सबको मिले ताकि गुनाहों का अंधेरा दूर हो!
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना।
अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंएक बार रोशनी गर
जवाब देंहटाएंउनकी ज़िन्दगी में छा गई
तो गुनाहों की किताब को
बस दफ़न कर आते हैं.... bahut hi achhi abhivyakti
सदाशयता से परिपूर्ण कितनी सुन्दर भावना है ! लेकिन दुःख तो इसी बात का है कि जिन्होंने इस रास्ते को चुन लिया है उन्होंने हर प्रकाश, हर परोपकारी भावना और मन को पवित्र करने वाली हर वाणी के प्रति अपनी आँख कान को कस कर बंद कर लिया है ! फिर भी कोशिश तो जारी रहनी ही चाहिये शायद चाँदनी के चंद कतरे इनकी राह को भी रोशन कर दें ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
कठोर कितने भी हों, पाषाण नहीं हैं
जवाब देंहटाएंकैसे समझ लें उनको इंसान नहीं हैं
चलो मशाल लेके उन्हें तम से निकालें
माना ये राह उतनी आसान नहीं है.
आपके आव्हान पर सभी अपने-अपने स्तर पर शुरुआत तो करें,निश्चय ही नव-युग की शुरुआत होगी.
कोशिश हो सकती है
जवाब देंहटाएंशायद हमारी कामयाब
स्याह रातों से उन्हें हम
उजेरे में ले आते हैं ।
- विचार बहुत बढ़िया है !
प्रभावी भावाभिव्यक्ति , आभार .
जवाब देंहटाएंएक बार रोशनी गर
जवाब देंहटाएंउनकी ज़िन्दगी में छा गई
तो गुनाहों की किताब को
बस दफ़न कर आते हैं.
सौदेश्य सार्थक प्रस्तुति सकारात्मकता से संसिक्त .बधाई .
कोशिश हो सकती है
जवाब देंहटाएंशायद हमारी कामयाब
स्याह रातों से उन्हें हम
उजेरे में ले आते हैं ।
एक बार रोशनी गर
उनकी ज़िन्दगी में छा गई
तो गुनाहों की किताब को
बस दफ़न कर आते हैं... bhaut hi sundar abhivaykti....
prabhaavi abhivaykti...
जवाब देंहटाएंतमसो मा ज्योतिर्गमय
जवाब देंहटाएंविचार तो बढ़िया है…
जवाब देंहटाएंकोशिश की जाये तो क्या नही संभव्……………काश सब ऐसा ही सोचे और करें तो गुनाह कोई करे ही नही…………।बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।
जवाब देंहटाएंkitna achcha likhtin hain aap.....
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना !
जवाब देंहटाएंयह कोशिश होनी चाहिए... अँधेरे दूर होंगे!
जवाब देंहटाएंसशक्त रचना!
एक बार रोशनी गर
जवाब देंहटाएंउनकी ज़िन्दगी में छा गई
तो गुनाहों की किताब को
बस दफ़न कर आते हैं.
bahut khoob...aabhar
बहुत कठिन है रौशनी ज्ञान की पाना.सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक सन्देश ..
जवाब देंहटाएंहम अँधेरे में है रोशनी दे,
जवाब देंहटाएंखो न दें खुद को ही दुश्मनी से!
कुछ ऐसी ही सीख देती कविता.. एक ज्योति आशा की!!
इसीलिए पूछा गया कि दो में से तुम्हें क्या चाहिए-कलम या कि तलवार। एक के मिलते ही,दूसरा अपने आप छूट जाता है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ... ज्ञान से अन्धकार दूर होता है ...
जवाब देंहटाएंएक बार रोशनी गर
जवाब देंहटाएंउनकी ज़िन्दगी में छा गई
तो गुनाहों की किताब को
बस दफ़न कर आते हैं.bhut hi achche vichar.
यह गुमराह इस कद्र भटके हुए हैं .....
जवाब देंहटाएंकी कोई तर्क, कोई तजवीज़ नहीं समझ पाते ...
लाख कर लें उन्हें समझाने की कोशिश ...
यह नासमझ बस अपनी राह पकडे जाते हैं ...
फिर भी देरी नहीं हुई है अभी ...अब भी उम्मीद की किरन बाकी है
हम इनकी ज़िन्दगी में कुछ फर्क कर सकें
कोशिश एक और किये जाते हैं ....