गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

स्वर्ग का था नीरव उच्छ्वास

सुधी पाठक वृन्द को अनामिका का सादर प्रणाम ! आप सभी  पाठकों की प्रेरणादायक टिप्पणियों ने  मुझे प्रोत्साहित करते हुए पुलकित मन से इस श्रृंखला को  आगे बढाने का जो मनोबल दिया इसके लिए  मैं बहुत बहुत आभारी हूँ...और अब इस श्रृंखला को क्रमबद्ध  करते हुए आगे का लेखन जारी करती हूँ......

164323_156157637769910_100001270242605_331280_1205394_nअनामिका

अनामिका

वय के सामर्थ्य में कहीं अधिक आपने सातवें वर्ष से लेकर नवें वर्ष तक के बीच में हिंदी, उर्दू, संगीत और चित्रकला का अप्रत्याशित ज्ञान प्राप्त कर लिया था.  ब्रज भाषा के पद, कवित्त-सवैये की समस्यापूर्ति के साथ खड़ी बोली में भी कवितायेँ लिखने लगी थीं. इसे संस्कारगत प्रतिभा की प्रबलता के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है ? जिज्जी (माँ) और बाबूजी ने भी  बेटी की असाधारण बुद्धि और प्रतिभा की  जन्मजात प्रखरता देखकर प्रोत्साहन देने में कभी कोई चूक नहीं की. आजीवन शिक्षा-संस्थाओं से सम्बद्ध रहने के कारण बाबूजी बच्चों की परख में पारंगत थे. पढाई-लिखाई में पिताजी का प्रबुद्ध निरीक्षण-परीक्षण और उत्साहवर्धन तथा गृह कार्य में माताजी की शिक्षा-दीक्षा ने मिलकर इन्हें दोनों क्षेत्रों में दक्ष कर दिया था. महादेवीजी ने इसका उल्लेख किया है - 

                                                 महादेवी वर्मामहादेवी जी 

"एक साधानापूत आस्तिक और भावुक माता और दूसरी ओर सब प्रकार की साम्प्रदायिकता से दूर कर्मनिष्ठ और दार्शनिक पिता ने अपने - अपने संस्कार देकर मेरे जीवन को जैसे विकास दिया उसमे भावुकता बुद्धि के कठोर धरातल पर, साधना एक व्यापक दार्शनिकता पर और आस्तिकता एक सक्रिय, किन्तु किसी वर्ग या सम्प्रदाय में न बंधने वाली चेतना पर ही स्थित हो सकती थीं" !

इसी कारण एक सजग यथार्थवादी की तरह सोचने -समझने और आस्थावान आदर्शवादी की तरह कार्य करने की इनकी अपनी एक अलग प्रणाली है. समन्वय और सामंजस्य इनके जीवनक्रम के मूलाधार हैं.  अनेक आश्चर्यजनक विलक्षणताओं   का  सहज समाहार, विविध विजातीय वर्गों से समान सम्बन्ध, विभिन्न वयस और विचार के व्यक्तियों से एकरस सहानुभूति, परस्पर विरोधी नाना प्रकार के कार्यों को कर सकने की अद्भुत क्षमता, मोतियों की हाट और चिंगारियों का एक साथ मेला लगाते चलने की अनन्य धुन आदि इनकी समन्वयशीलता के साक्षी हैं.  काव्य के गंभीर रहस्यवादी होकर भी जीवन में इतना सहज, सरल , स्पष्ट और शिशुवत कुतूहली होने का रहस्य भी यही है. इनकी ये पंक्तियाँ भी यही कहती हैं -

दूसरी होगी कहानी,

शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोयी निशानी,

आज जिस पर प्रलय विस्मित

में लगाती चल रही नित

मोतियों की हाट औ' __

चिंगारियों का एक मेला.

अभी तक आप छोटे  खिलौने -विशेष के लिए बच्चों के साथ कलह-कोलाहल तक पर भी उतर आती हैं. चुन्नी का हाथी छीन लेना चाहती हैं, मुन्नी की गुडिया छिपा लेने के ताक में रहती हैं. सम्पर्कित परिवार के बच्चे खिलौने के विषय में इनसे सदा सतर्क रहते हैं. खिलौनों का इतना बड़ा संग्रह इनके पास है कि शायद ही किसी और के पास हो. रूसी कलाकारों ने आपको एक सुंदर रूसी गुडिया भेंट की, तो आपने प्रसन्नता में उन्हें अपनी दर्जनों गुड़ियों का संग्रह दिखाया. वे स्तब्ध रह गए.  उनकी इस पंक्ति पर ध्यान दीजिये...

' यह खिलौने और यह उर प्रिय नयी असमानता है '.

' क्षण में आंसू क्षण में हास' की उक्ति में भी बच्चों के साथ आपकी बाजी रहती है.  महाप्राण निराला जी की मानसिक अवस्था से करुणार्द्र होकर आंसुओं के साथ उन्हें विदा देते समय भी आप गुप्त जी का स्वागत मुक्तहास के साथ करने में समर्थ हैं. पलकों में आंसू और ओठों में हास साथ ही संजो रखने में आप अद्वितीय हैं.

क्रमशः 

स्वर्ग का था नीरव उच्छ्वास

स्वर्ग का था नीरव उच्छ्वास

देव-वीणा का टूटा तार

मृत्यु का क्षणभंगुर उपहार

रत्न वह प्राणों का श्रृंगार ;

      नयी आशाओं का उपवन

      मधुर वह था मेरा जीवन !

क्षीरनिधि की थी सुप्त तरंग

सरलता का न्यारा निर्झर,

हमारा वह सोने का स्वप्न

प्रेम की चमकीली आकर ;

      शुभ्र जो था निर्मेघ गगन

      सुभग मेरा संगी जीवन !

अलक्षित आ किसने चुपचाप

सुना अपनी सम्मोहन तान,

दिखाकर माया का साम्राज्य

बना डाला इसको अनजान ?

      मोह मदिरा का आस्वादन

      किया क्यों हे भोले जीवन !

न रहता भौरों का आह्वान

नहीं रहता फूलों का राज्य,

कोकिला होती अंतर्धान

चल जाता प्यारा ऋतुराज

     असंभव है चिर सम्मलेन

     न भूलो क्षणभंगुर जीवन !

तुम्हें ठुकरा जाता नैराश्य

हंसा जाती है तुमको आश,

नचाता मायावी संसार

लुभा जाता सपनों का हास ;

       मानते विष को संजीवन

       मुग्ध मेरे भूले जीवन !

विकसते मुरझाने को फूल,

उदय होता छिपने को चंद

शून्य होने को भरते मेघ

दीप जलता होने को मंद;

      यहाँ किसका अनंत यौवन ?

      अरे अस्थिर छोटे जीवन !

छलकती जाती है दिन -रैन

लबालब तेरी प्याली मीत,

ज्योति होती जाती है क्षीण

मौन होता जाता संगीत ;

       करो नयनों का उन्मीलन

       क्षणिक हे मतवाले जीवन !

शून्य सा बन जाओ गंभीर

त्याग की हो जाओ झंकार,

इसी छोटे प्याले में आज

डुबा डालो सारा संसार;

      लजा जाएँ यह मुग्ध सुमन

      बनो ऐसे छोटे जीवन !

सखे ! यह है माया का देश

क्षणिक है मेरा - तेरा संग,

यहाँ मिलता कांटो में बंधू !

सजीला - सा फूलों का रंग

      तुम्हें करना विच्छेद सहन

      न भूलो हे प्यारे जीवन !

                                -- नीहार

19 टिप्‍पणियां:

  1. दुर्गा देवी सदा और सभी पर सहाय हों . .ह्रदय सी ऐसी ही कामना उठ रही है.

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  2. महादेवी वर्मा के बारे में "स्वर्ग का था नीरव उच्छवास" के माध्यम से उनके अंतरंग जीवन की बातों का उल्लेख इस तथ्य को दर्शाता है कि साहित्य. की हर विधा मे अपनी अभिव्यक्ति को उनहोंने जो रूप, शैली एवं आयाम दिया है उन सबकी पृष्ठभूमि में अपनों का सहयोग रहा है । किसी भी व्यक्ति के जीवन में संस्कार का महत्व होता है एवं इसके द्वारा ही उसके जीवन की दशा और दिशा निर्धारित होती है। .आशा ही नही अपितु मेरा विश्वास है कि आप भविष्य में भी इनके बारे में जानकारियाँ प्रस्तुत करती रहेंगी । पोस्ट अच्छा लगा । रामनवमी एवं दशहरा की अशेष शुभकामनाओं के साथ........।
    धन्यवाद सहित ।

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  3. पढ़ा। हालांकि आप एक लेख में बहुत कम ही लिख रही हैं। …

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  4. महादेवी वर्मा जी की रचना पढ़वाने के आपका आभार और उनको शत शत नमन ......

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  5. Bahut badhiya likh rahee hain aap!
    Vijayadashmee kee anek shubh kamnayen!

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  6. आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

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  7. महादेवी जी का यह गीत बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिला। आभार।

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  8. दशहरा पर आपको और अपने सभी पाठकों को दशहरा की बधाई।

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  9. सबसे पहले आपको तथा आपके परिवार को मेरी तरफ से विजय दशमी के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामना / आप निरंतर रचनारत रहें , स्वस्थ रहें और ईश्वर का आशीर्वाद हमेशा आप पर बना रहे/

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  10. महादेवी वर्मा के जीवन के अन्तरंग पक्ष से आपने रु -बा -रु करवाया .अच्छी प्रस्तुति ,आभार .

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  11. शून्य सा बन जाओ गंभीर

    त्याग की हो जाओ झंकार,

    इसी छोटे प्याले में आज

    डुबा डालो सारा संसार;.... bahut achha laga padhker

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  12. महादेवी वर्मा जी से अंतरंग परिचय करवाने के लिये आभार...विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  13. महादेवी जी के जीवन प्रसंग को आपने इतने सुंदर ढंग से व्यक्त किया वह बहुत अच्छा लगा। साथ ही एक बहुत ही अच्छी कविता भा पढ़वाई आपने।
    विजयदशमी की शुभकामनाएं।

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  14. महादेवी जी के बारे में पढ़ना और उनकी अनुपम रचनाओं का रसास्वादन करना एक ऐसी अनुभूति को जन्म दे जाता है जिसके माधुर्य को अभिव्यक्ति दे पाना नितांत असंभव है ! बहुत ही संतुष्टि एवं सुखदायक आलेख ! विजयादशमी की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें !

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  15. आप सब को विजयदशमी पर्व की शुभकामनाएँ।

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  16. महादेवी वर्मा को पढ़ना हमेशा भाता है।

    आभार,

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  17. आज जिस पर प्रलय विस्मित मैं लगाती चल रही नित मोतियों की हाट ओ चिंगारियों का एक मेला

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