सोमवार, 26 नवंबर 2012

मधुशाला ...भाग --- 8



जन्म -- 27 नवंबर 1907 
निधन -- 18 जनवरी 2003 

मधुशाला ..... भाग --- 8 



कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।५१।

और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।५२।

आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
जहाँ अभी हैं मंदिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।

यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भट्ठी  की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।

सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
युग युग से है पुजती आई, नई नहीं है मधुशाला।।५५।

वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।

कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।

श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
ठुकराते हरि - मंदिर वाले, पलक बिछाती मधुशाला।।५८।

एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९।

बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।६०।

क्रमश: 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आभार हम तक यह रचना पहुँचाने के लिए ....वैसे निशा निमंत्रणके भी बेहद प्रभावशाली संग्रह है

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  2. आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
    आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
    होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
    जहाँ अभी हैं मंदिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला
    पूरा जीवन दर्शन..

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  3. एक लौ इस तरह क्यूँ बुझी ... मेरे मौला - ब्लॉग बुलेटिन 26/11 के शहीदों को नमन करते हुये लगाई गई आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
    अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
    रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
    साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।५९।
    जीवन दर्शन है पूरा इसमें ।

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  5. इस रचना का गहन जीवन दर्शन सदैव मन हरता है।

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  6. डॉ हरिवंश राय "बच्चन" जी को अमर श्रद्धांजलि। "मधुशाला" एक जीवंत कविता - संग्रह।
    मेरी नयी पोस्ट "10 रुपये का नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के " को भी एक बार अवश्य पढ़े । धन्यवाद
    मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com

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  7. मधुशाला में मधु का स्वाद कभी फीका नहीं पड़ता .जितने भी बार पढो उतना ही प्यास बढ़ता जाता है.

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