शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

कलगी बाजरे की

आपको यह बताना चाहूंगा कि मैं भी भारतीय वायु सेना से Junior Warrant Officer के पोस्ट से रिटायर्ड होकर वर्तमान मे आयुध निर्माणी बोर्ड, कोलकाता, भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय के राजभाषा विभाग में हिंदी अनुवादक के पद पर कार्यरत हूँ। एक सैनिक होने के नाते भी मेरा साहित्यिक मन बरबस ही उनसे जुड़ गया है क्योंकि साहित्य जीवन में पदार्पण करने के पूर्व ‘अज्ञेय’ जी भी एक सैनिक ही थे।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आपके सुझाव एवं प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। एक टिप्पणी देकर उस दिवंगत आत्मा को श्रद्धा-सुमन अर्पित करें। धन्यवाद।



कलगी बाजरे की

हरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरे बाजरे की।

अगर मैं तुम को ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या शरद के भोर की नीहार-न्हायी कुँई,
टटकी कली चम्पे की,वगैरह, तो
नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है।

बल्कि केवल यही :ये उपमान मैले हो गए हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच।

कभी बासन अधिक घिसने से मुल्लमा छूट जाता हैं।
मगर क्या तुम नहीं पहचान पाओगी :
तुम्हारे रूप के – तुम हो, निकट हो, इसी जादू के -
निजी किसी सहज,गहरे बोध से,किस प्यार से मैं कह रहा हूँ –
अगर मैं यह कहूँ-
बिछली घास हो तुम
लहलहाती हवा में कलगी छरहरे बाजरे की ?

आज हम शहरातियों को
पालतू मालंच पर सँवरी जुही के फूल से
सृष्टि के विस्तार का-ऐश्वर्य का -औदार्य का-
कहीं सच्चा, कहीं प्यारा एक प्रतीक
बिछली घास है,
या शरद की साँझ के सूने गगन की पीठिका पर दोलती कलगी अकेली बाजरे की ।

और सचमुच, इन्हे जब-जब देखता हूँ
यह खुला विरान संसृति का घना हो सिमट आता है-
और मैं एकांत होता हूँ समर्पित।


शब्द जादू हैं -
मगर क्या यह समर्पण कुछ नही है !

5 टिप्‍पणियां:

  1. सचिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय '
    जी की स्मृति में प्रस्तुत विवरण तथा कविता उत्तम है.

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  2. विधुशेखर चतुर्वेदी30 अक्टूबर 2012 को 9:07 am बजे

    मैं अमरीकी छात्रों को हिन्दी भाषा पढ़ाता हूँ । यह कविता उनके लिये मैंने २००७ में वैलेण्टाइन-दिवस पर अनूदित कर के उनको सुनाई और पढ़ाई थी । उनके बीच यह कविता अति-लोकप्रिय रही ।
    अब यही कविता संभवत: डॉ. रुपर्ट स्नेल (अध्यक्ष, हिन्दी-उर्दू फ़्लैगशिप, ऑस्टिन वि. वि., टेक्सस; Teach Yourself Hindi सहित कई पुस्तकों के सुप्रसिद्ध लेखक ..[आदि ] अपने पाठ्यक्रम में भी सम्म्लित करने जा रहे हैं ।
    विधुशेखर चतुर्वेदी

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  3. विधुशेखर चतुर्वेदी30 अक्टूबर 2012 को 9:11 am बजे

    कुछ वर्तनी की अशुद्धियाँ रह गयीं हैं : यथा- विरान (वीरान), इन्हे (इन्हें) ..आदि ।

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