सोमवार, 2 मई 2011

हिंदी की स्वर ध्वनियों से “ ऋ “ का लोप



हिंदी भाषा के स्वरों की स्थिति इस प्रकार है ---
परंपरा से प्राप्त स्वर – अ , आ , इ , ई , उ , ऊ, ( ऋ ) ,ए , ऐ , ओ , औ .
आगत स्वर - ऑ .

उक्त स्वरों में मूल स्वर तो दस ही हैं. “ ऋ “ संस्कृत भाषा का स्वर हिंदी में प्रयोग किया जाता था . उच्चारण के स्तर पर अब ये समाप्त हो चुका है . इसका प्रयोग केवल तत्सम शब्दों (संस्कृत भाषा के शब्द ) के लेखन में किया जाता है . आज हिब्दी भाषा- भाषी “ ऋ “ का उच्चारण स्वर के रूप में न करके र ( यहाँ र पर हलंत आएगा जो टाइपिंग में नहीं आ रहा है ) र + इ के संयुक्त रूप ( रि के रूप ) में करते हैं
जहाँ एक स्वर था , अब इसका उच्चारण हिंदी में व्यंजन र + इ स्वर के मिले हुए रूप से हो गया है. . हम लिखते तो ऋषि , कृपा , मृग हैं परन्तु बोलते रिशी, क्रिपा , तथा म्रिग हैं .
यहाँ एक प्रश्न उठता है कि यदि हिंदी में “ ऋ “ स्वर का उच्चारण समाप्त हो गया है तो भी हम इसे वर्ण – माला में क्यों रखे हुए हैं ?
इसका प्रमुख कारण ये है कि भाषा विकास क्रम में ध्वनियों के उच्चारण में तो निरंतर परिवर्तन स्वत: ही होते रहते हैं परन्तु लेखन – व्यवस्था सम्बन्धी परिवर्तन स्वत: नहीं होते . जब कभी विद्वानों की कोई समिति बैठती है और विचार करती है तब वह कुछ परिवर्तन का सुझाव देती है . हिंदी की लिपि – वर्तनी में समय – समय पर अनेक बार इस तरह के सायास प्रयत्न होते रहे हैं . दूसरा लाभ है कि इन वर्णों को वर्ण – माला में रखने से शब्द का लिखित रूप देख कर उसका परंपरागत रूप पता चल जाता है , भले ही वह ध्वनि का उच्चारण न होता हो.
अत: आज हिंदी में “ऋ “ स्वर का प्रयोग तत्सम शब्दों के लेखन करते समय किया जाता है , जैसे ऋषि , मृग , गृह ,पृथा आदि .
आगत स्वर --- ऑ स्वर अंग्रेजी और अनेक यूरोपीय भाषाओँ के शब्द हिंदी भाषा में समाहित हो जाने से आया है....इसलिए इसे आगत स्वर कहते हैं . बहुत से अंग्रेजी भाषा के शब्द आज हिंदी के बन गए हैं जैसे – doctor , coffee , copy , shop , इन शब्दों की “o “ ध्वनि न तो हिंदी की ओ है और ना ही औ .इसका उच्चारण इन दोनों के मध्य में कहीं होता है . इस आगत ध्वनि के लिए “ ऑ “ वर्ण बना लिया गया है .मानक वर्तनी के अनुसार इन आगत शब्दों को ऑ स्वर से लिखा जाना चाहिए . जैसे
डाक्टर – डॉक्टर
कापी / कोपी – कॉपी
शोप / शाप – शॉप आदि
अनुनासिक स्वर ध्वनि

जब स्वरों का उच्चारण करते समय वायु को मुख के साथ साथ नाक से भी बाहर निकाला जाता है तब वे स्वर अनुनासिक हो जाते हैं .अत: अनुनासिकता स्वरों का एक गुण है. हिंदी में सभी मूल स्वर अनुनासिक हो सकते हैं उदाहरण के तौर पर---
शब्द                     ध्वनि                                    
सवार                       अ                                         
सँवार                       अं   ( चन्द्र बिंदु)
सास                       आ
साँस                       आँ
आई                        ई
आईं                        ईं
पूछ                         उ
पूँछ                         ऊँ
इस प्रकार हिंदी में अनुनासिक स्वर शब्दों का अर्थ परिवर्तन कर देते हैं...
उपर्युक्त जानकारी मानक हिंदी व्याकरण पुस्तक पर आधारित हैं ..
आप सब सुधिजन की टिप्पणियों का इंतज़ार है.

15 टिप्‍पणियां:

  1. संगीता जी!
    "ऋ" ध्वनि का उच्चारण भले ही न किया जा सकता हो परंतु इसे वर्ण माला में रखना ही होगा अन्यथा संधियों के नियम बिगड़ जाएंगे। गुण संधि के नियमों में "ऋ" को "अर्" आदेश होता है। "महा+ऋषि = महर्षि, देव+ऋषि = देवर्षि" आदि। हिंदी में दो मूर्धन्य ध्वनियाँ - "ऋ" और "ष" हैं जिनका उच्चारण प्रारंभ से और सही ढंग से नहीं सिखाया जा रहा है। इन्हें "रि" और "पेट फटा श" या ऐसे ही किसी रूप में पढ़ाया जाता है। उच्चरित करके ध्वनि के रूप में नहीं सिखाया जाता है। अतः इसे उच्चरित करने की आदत ही नहीं पड़ती है। इसके लिए प्रारंभिक स्तर के भाषा शिक्षक दोषी हैं। पहले उनकी ट्रेनिंग होनी चाहिए।
    आप व्याकरण के आधारभूत पहलुओं पर चर्चा करके भाषा शिक्षकों को सही दिशा दिखा रही हैं। बधाई।

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    1. बहुत ही अच्छे ढंग से आपने इस शंका का निवारण किया है।
      साधुवाद स्वीकार करें।

      हटाएं
  2. हिंदी के स्वर में जो अपने विश्लेषण किया है वह बहुत ही गहराई किया गया है. सच तो यह है इस विषय में कोई हिंदी के स्वर और शामिल होने वाले नए स्वरों को इतनी गंभीरता से नहीं देख हैं. आज का हिंदी शिक्षक भी इस स्तर तक और जानने या छात्रों को बताने की जरूरत महसूस नहीं करता है. इस प्रस्तुति के लिए आभार.

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  3. एक और वर्ण ॡ भी स्वर में प्रयोग होता था किन्तु अब बिलकुल गायब है .और व्यंजन में ळ भी गायब है इनकी ध्वनिया भी अक्सर प्रयुक्त होती है किन्तु सिखाया नहीं जा रहा है

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  4. आज तो हिंदी स्वर का ज्ञान बढ़ गया है... ऐसे और भी विषयों पर लिखे.. नए लोगो को जानकारी मिलेगी...

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  5. सत्य कहा आपने...व्यवहारिक प्रयोग में ऋ का उपयोग बहुत ही कम हो गया है,परन्तु मुझे यह कभी स्वीकार्य न हुआ है न होगा...

    बहुत ही सुन्दर विवेचना की है आपने...

    इस उपयोगी पोस्ट के लिए आपका आभार..

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  6. बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है।

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  7. संगीता जी,
    इस विषय-वस्तु पर विशेष चर्चा न करते हुए संक्षेप में यही कहना चाहूंगा कि हमारी बुनियादी शिक्षा पद्धति के पाठ्यक्रम में कक्षा के अनुरूप इसे थोड़ी जगह मिलनी चाहिए। हिंदी की स्वर ध्वनियों से "ऋ" के लोप होने के बारे में जानकारी अच्छी लगी।आभार।

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