मंगलवार, 14 जून 2011

मीडिया हाउसों के मुंह में तो पानी आता है हर नए घोटाले को देख कर

मीडिया हाउसों के मुंह में तो पानी आता है हर नए घोटाले को देख कर

arunpicअरुण चन्द्र रॉय

बाबा रामदेव ने अंततः अपना व्रत तोड़ दिया. जब बाबा ने काले धन और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर अनशन और सत्याग्रह की शुरुआत की थी, पूरा मीडिया समाज अति उत्साहित हो इसका कवरेज़ कर रहा था. बाबा भी उत्साह में थे और कांग्रेसी राजनीति के शिकार हो गए. दो घाघ राजनीतिज्ञों ने बाबा को फांस लिया. रात को जो रामलीला मैदान में होना था उसकी नीति दिन में ही तैयार हो गई थी और पूरे मीडिया वर्ग को इसकी विधिवत सूचना दी गई थी. इस बीच छद्म पत्रकार भी बनाये गए थे जिन्हें मीडिया वालो के बीच असहज  और बाबा को भड़काने वाले प्रश्न पूछने के लिए प्लांट किया गया था.

रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसे मीडिया ने ही जलियांवाला बाग़ करार दिया. अब तक मीडिया का उद्देश्य कालाधन को देश के सामने लाना था.

रविवार को कांग्रेस के मुख्यालय और कई गुप्त स्थानों पर दिन भर बैठकें हुई. फिर सरकार को अचानक भारत निर्माण, जननी सुरक्षा, ग्रामीण स्वस्थ्य, वृद्ध पेंशन जैसे मुद्दों की याद आई गई. सोमवार को ड़ी ए वी पी  से मीडिया प्लान तैयार करने के लिए कहा गया. फिर उसी दिन शाम तक सभी मीडिया हाउसों के शिड्यूलिंग डिपार्टमेंट में विभिन्न योजनाओं के विज्ञापन के आर ओ यानी रिलीज़ आर्डर पहुँच गए. ये आर्डर लाखों में नहीं थे. उस से कहीं अधिक थे.

अचानक मीडिया का सुर बदल गया. बाबा रामदेव झूठे हो गए. उन्होंने काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की हवा निकाल दी. तरह तरह के रिपोर्ट आने लगे. बाबा के ट्रस्ट को खंगाला गया. बाबा के सहयोगी बालकृष्ण की जन्मपत्री तक ढूंढ लिया गया.

थोड़े दिन पहले राजस्थान सरकार के किसी बड़ी परियोजना में मुख्यमंत्री जी के बेटे शामिल थे. बड़ी परियोजना बड़ा खेल. पत्रिका और भास्कर ग्रुप को क्या था. उछाल दिया मुद्दे को हवा में. तीन दिन तक मुख्य पृष्ठ पर यही मुद्दा छाया रहा राष्ट्रीय मुद्दे के तौर पर. फिर कांग्रेस को वापिस सत्ता दिलाने वाली विज्ञापन एजेंसी के मालिक और प्रबंधकों जिनकी सोनिया जी के पास सीधी पहुँच है, मनमोहन और प्रणव दा से कहीं अधिक को जल्दी में जयपुर बुलाया गया. एक गुप्त बैठक फिर हुई. संवाद जो कि राजस्थान सरकार की सरकारी विज्ञापन एजेंसी है के निदेशक को बुलाया गया. गहलोत सरकार की उपलब्धियों के पूरे पूरे पृष्ठ के रंगीन विज्ञापन आनन फानन में तैयार हुए. विज्ञापन अखबारों में रातों रात लगे. ये विज्ञापन भी लाखों में नहीं थे. थोड़े अधिक थे. इसकी महक दिल्ली के मीडिया हाउसों तक भी पहुची और हम भी राजस्थान सरकार की उप्लाधियों से वाकिफ हुए.

अब ऐसे में जो बाबा प्रथम पृष्ठ पर थे वे तीसरे पेज पर गए. फिर पांचवे पेज पर. फिर ग्यारहवे पेज पर. फिर अखबार से बाहर भी चले जाएँ तो क्या है. मीडिया ने अपना दायित्व तो निभा लिया.

फिर मीडिया का कहना कि रामलीला मैदान में जो हुआ वह बाबा रामदेव के कारण हुआ, बाबा में नेतृत्वा गुण नहीं हैं. बाबा को केवल योग पर ध्यान देना चाहिए, बाबा को ऐसे मुद्दे उठाने ही नहीं चाहिए आदि आदि!!

वहाँ कोई गलत तो नहीं. अभी तो मीडिया और सरकार ने इस मुद्दे को दबा दिया है. अभी जो विज्ञापन की हड्डियाँ मिली हैं वो पचने में थोडा समय तो लगेगा. आने दीजिये मानसून सत्र. कोई ना कोई मुद्दा जरुर उठाएगी मीडिया जैसे महिला आरक्षण, लोकपाल बिल... अरे कहाँ हैं आप.. अभी तो तेल कुओं के आवंटन का घोटाला सामने आ रहा है... मीडिया हाउसों के मुह में तो पानी आ रहा है इस नए घोटाले को देख कर.

19 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बिल्कुल सही कहा है, मैं सहमत हूँ।

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  2. भाई साहब,
    आपका पोस्ट अति प्रशंसनीय है। लेकिन जहां तक मीडिया वालों का प्रश्न है कि उन्हे हर नए घोटालों मे कुछ मया मशाला मिलता है या मुंह में पानी आ जाता है बिल्कुल सही है। आज yellow Journalism (पीत पत्रकारिता)का युग है। उन्होंने अपना धर्म निर्वाह किया है। सच तो यह है कि हम स्वतंत्र होने के बाद भी अपनी मानसिकता मे आमूल परिवर्तन नही ला सकें हैं। भ्रष्टाचार को उजागर करने के खिलाफ सरकार के इस कदम का निंदा करने के बजाय लोगों ने इसका मजाक उड़ाया है। संवैधानिक ढाँचे के अंतर्गत बाबा रामदेव जी द्वारा किया गय़ा शांतिपूर्वक विरोध हर पैमाने पर सही है। आज मीडिया का कवरेज नही रहता तो हमे क्या जानकारी मिलती। बाबा को अन्ना हजारे को या हम सबको शासन द्वारा दबाया जा सकता है किंतु भ्रष्टाचार या काले धन की वापसी के लिए जो सुगबुगाहट जनमानस के अंतर्मन में बैठ गयी है उसे अब दबाना एक कठिन कार्य होगा। धन्यवाद।

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  3. यह सर्वसमावेशी विकास का दौर है।

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  4. हर कोई दोहरे मापदंद लिये सियासत कर रहा है। अच्छा आलेख।

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  5. सरकार और मीडिया अब जनक के सामने बेनकाब हो रहे हैं ...यह लहर धीमी ज़रूर हुई है खत्म नहीं ..

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. सजीव विश्लेषण . मीडिया के ही एक रिपोर्टर का ब्लॉग भी मीडिया की भांति बोल रहा था यहाँ क्लिक कीजिये इस मनहूस रिपोर्ट के लिए
    http://naisadak.blogspot.com/2011/06/blog-post.html

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  8. मैं प्रेम सरोवर जी के विचारों से बिल्कुल सहमत हूं....
    मीडिया को तो हर दिन नई खबर चाहिए अपना टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए, उन्हें सही और गलत से कोई फर्क नहीं पड़ता ।

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  9. विभिन्न चैनलों पर मीडिया का जो रूप दिखता है उससे उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न तो खडा होता है क्योंकि सच को तोड मरोड कर बिकाऊ बना कर प्रस्तुत करना उसके व्यवसाय का हिस्सा बन गया है । कभी-कभी तो वह दुराग्रह से ग्रस्त भी प्रतीत होता है । बाबा रामदेव जैसे सच्चे राष्ट्र भक्त के प्रति बेशक मीडिया भी अनुदार है । फिर भी जो भी तथ्य हमारे सामने आते हैं,मीडिया के द्वारा ही आते हैं । अफसोस है कि लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ जिसकी भूमिका अपरिहार्यतः निष्पक्ष होनी चाहिये व्यावसायिकता से परिचालित है ।आपका आलेख अच्छा लगा ।

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  10. शब्दशः सहमति है आपसे...

    अप्रत्याशित अंकों की कमाई के नशे में धुत्त कुछ चैनलों ने तो पैनल तक बैठा लिए थे सिद्ध करने के लिए कि बाबा जो योग सिखाते हैं,वे मनुष्यमात्र के स्वस्थ के लिए कितने खतरनाक हैं...

    एक चैनल या समाचार पत्र ऐसा नहीं दीखता आज जिससे अपेक्षा की जाए कि वह सत्य को ज्यों का त्यों बिना किसी लाग लपेट के ,बिना किसी गुप्त एजेंडे के दिखा दे...

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  11. आज हिन्दी सिनेमा से गरीब/गरीबी और समाचार मिडिया से सत्य...पूर्णतः गायब हो गया है... नहीं ???

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  12. अद्भुत जानकारी दी है आपने।

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  13. सब प्रायोजित है..तभी तो इन्हें हम समाचार मनोरंजन चैनल कहते हैं.. और फिर नीरा रादिया के टेप ने तो रही सही कसर भी पूरी कर दी है.. आप हड्डियों की बात करते हैं.. मामला उससे भी कहीं आगे तक का है.. यह पीली पत्रकारिता नहीं.. पत्रकारिता की वेश्यावृत्ति है!!

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  14. विचारणीय लेख ...
    सार्थक एवं सटीक विश्लेषण

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