जन्म -- 18 अगस्त 1936
1.
उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा
देर तक हाथ हिलती रही वह शाख़ फ़िज़ा में
अलविदा कहने को ? या पास बुलाने के लिए ?
2.
क्या पता कब कहाँ मारेगी ?
बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ
मौत का क्या है, एक बार मारेगी
3.
सब पे आती है सब की बारी से
मौत मुंसिफ़ है कम-ओ-बेश नहीं
ज़िंदगी सब पे क्यों नहीं आती ?
4.
भीगा-भीगा सा क्यों है अख़बार
अपने हॉकर को कल से चेंज करो
"पांच सौ गाँव बह गए इस साल"
5
चौदहवें चाँद को फिर आग लगी है देखो
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा
राख हो जाएगा जब फिर से अमावस होगी
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंगुलज़ार की त्रिवेणियाँ बड़ी रोचक होती हैं.....
सादर
अनु
लाजवाब....
जवाब देंहटाएंगुलज़ार साहब के द्वारा इस विधा के बारें में कोई जानकारी नही थी। जानना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंगुलजार की त्रिवेणियों का जबाब नहीं.
जवाब देंहटाएंक्या बात है? त्रिवेणी का प्रवाह तो बन ही पड़ा है. गुलज़ार साहब का एक नया रूप
जवाब देंहटाएंguljar sahab ki triveniyan padh kar acchha laga. aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंपढ़वाने के लिए आभार!
त्रिवेणियाँ पढना नया अनुभव है । वैसे गुलजार जी के काव्य और गीतों में जो अनूठापन है माधुर्य और ताजगी है उसकी तुलना में ये उन्नीस ही हैं ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !!!!
जवाब देंहटाएंवाकई त्रिवेणी का जवाब नहीं ...बेहतरीन
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