आँच, आलोचना और मेरी अज्ञानता
- सलिल वर्मा
एक धर्मगुरू किसी निर्जन टापू पर फंस गया. वहाँ से निकलने का कोई रास्ता न पाकर वह वहीं भटकता हुआ लौटने की जुगत लगाने लगा, जैसे आग जलाकर धुआँ उत्पन्न कर किसी जहाज को सांकेतिक सन्देश देना. भटकते-भटकते उसने देखा कि कुछ जंगली वहाँ अपने परमात्मा की उपासना कर रहे थे. उनकी प्रार्थना अजीब थी और उस धर्म गुरू के धर्म में बतायी गयी प्रार्थना से सर्वथा भिन्न थी. ऐसे लोग विपत्ति के समय भी अपना स्वभाव नहीं छोडते हैं, अतः उसने अपने धर्म-प्रचार का यह अवसर गंवाना उचित नहीं समझा या कहें कि उसका सदुपयोग ही कर लेना चाहा. वे जंगली लोग आक्रामक नहीं थे. उस गुरू ने देखा कि तीन व्यक्ति उन जंगलियों की उस प्रार्थना की अगुआई कर रहे थे.
धर्म-गुरू ने उन तीनों को अलग बुलाया और उनसे बात की. उसने उन्हें यह भी बताया कि उनकी प्रार्थना-पद्धति सही नहीं है. वे तीनों उस गुरू की प्रार्थना सीखने को तैयार हो गए. गुरू ने बड़े जतन से उन्हें पूरी पद्धति और विधि-व्यवहार समझाया. संयोग से जिस दिन उनकी पूजा-विधि का व्यावहारिक प्रयोग करने का समय आया, उसी दिन उस गुरू को ढूँढता हुआ एक जहाज उस द्वीप के तट पर आ पहुंचा और धर्म-गुरू को उन जंगलियों को विदा कहना पड़ा. द्वीप से लौटते समय उसके मन में एक संतोष था कि वहाँ बिताए कुछ दिन व्यर्थ नहीं गए, प्रभु के प्रति समर्पित रहे.
जहाज महासागर में निकल पड़ा और लगभग चार-पाँच घंटे की यात्रा में उस द्वीप से मीलों दूर निकल आया. अचानक समुद्र की ओर निहारते हुए उस गुरू को समुद्र की सतह पर दौडती हुई तीन आकृतियाँ दिखाई दीं. जब वे आकृतियाँ पास आईं तो उसने देखा कि पानी पर भूमि की समतल सतह की तरह दौड़ते हुए वे तीनों वही जंगली थे. वह गुरू आश्चर्य-चकित था, इस चमत्कार पर. जब वे तीनों जहाज के समीप पहुंचे तो उन्होंने धर्म-गुरू से पूछा, “श्रीमान! आपके जाते ही हम आपकी बतायी प्रार्थना भूल गए. कृपया एक बार पुनः बताने का कष्ट करें. यही जानने के लिए हमें इतनी दूर आपके पास आना पड़ा! क्षमा चाहते हैं!”
धर्म-गुरू ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर उनसे कहा, “महोदय! मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई. ईश्वर से संवाद के लिए कोई पद्धति निश्चित नहीं होती. और अपने मन की बात ईश्वर से कहने के लिए किसी भाषा और विधि-विधान की आवश्यकता नहीं. आप जिस पद्धति से अपनी पूजा किया करते थे, वैसे ही करें.”
एक अज्ञानी बेचारा क्या करे, उसे तो यह भी पता नहीं होता कि वह जो कर रहा है उसे उपासना, प्रार्थना या पूजा कहते हैं. ऐसे में उस अज्ञानी को क्षमा याचना करनी चाहिए. इसीलिये ज्ञानियों ने अज्ञानियों की क्षमा की भी व्यवस्था कर रखी है. वे कहते हैं कि तुम देवी-देवताओं से कहो कि
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे॥
परमात्मा ने एक बार एक देवदूत को पृथ्वी पर उन लोगों की सूची बनाने भेजा जो ईश्वर से प्रेम करते थे. वो देवदूत घर घर जाकर अपनी पुस्तिका में उन प्रविष्टियाँ करने लगा. अबू नामक एक व्यक्ति ने देखा कि वह देवदूत कुछ लिख रहा है तो उसने पूछ लिया कि आप क्या लिख रहे हैं. देवदूत ने बताया कि उन लोगों के नाम लिख रहा है जो प्रभु को प्यार करते हैं. अबू निराश हुआ, क्योंकि उसने तो कभी प्रभु से प्यार नहीं किया था. उसका नाम उस सूची में था भी नहीं. उसने देवदूत से अनुरोध किया , “यदि आप ऐसे लोगों की सूची बनाएँ जो प्रभु की बनायी हर वस्तु तथा व्यक्ति से प्यार करता है, तो मेरा नाम अवश्य लिखें.” देवदूत चला गया. किन्तु अगले दिन वह पुनः अबू के घर आया. अबू ने पूछा कि क्या ये कल वाली ही सूची है. देवदूत ने कहा, “ हाँ! किन्तु आज इस सूची में तुम्हारा नाम सर्वप्रथम है!”
बस और क्या ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उसकी भक्ति के ज्ञान से तो उसके बनाए मानव जाति की सेवा की अज्ञानता ही सबसे बड़ी भक्ति है.
एक दिन एक चाय की दुकान पर रेडियो पर एक गीत बज रहा था. अज्ञानी रामबिलास उस गीत को सुनकर आनंदित हुआ जा रहा था. उसके साथ बैठे एक ज्ञानी सज्जन ने उससे कहा कि तुम्हें पता भी है कि यह गीत राग भैरवी में रूपक ताल पर संगीतबद्ध किया गया है.
रामबिलास बोला, “महाराज ई गाना सुनकर हमको लगता है कि स्वर्ग का आनंद भी इसके आगे फीका है. हमको आपका राग अउर ताल के बारे में कुच्छो नहीं मालूम. हम ठहरे गंवार, मगर ई जानते हैं कि हमरे किसोरी चचा के गला में सुरसती का बास था. ई गाना जो रेडियो में बज रहा है, किसोरी चचा के गाना से निकाला हुआ है. अब आपको का बताएं कि हमरे किसोरी चचा थे अंगूठा छाप. उनको आपके जइसा सुर, ताल, राग, मात्रा, ठुमरी, दादरा का जानकारी नहीं था, मगर उनके आगे बइठकर कोनो करेजा से उठने वाला गाना का राग छेडिए त तनी, उनका आँख से लोर टपकने लगेगा. अरे संगीत त करेजा से निकलकर करेजा में समा जाने वाला चीज है.”
कमाल का (अ)ज्ञानी था रामबिलास. साइकिल के आगे रेडियो लटकाए घूमता रहता था. संगीत प्रेमी था कि संगीत साधक, पता नहीं.
वही बात कविता के ज्ञान पर कहना चाहता हूँ... क्षमा चाहता हूँ अज्ञान पर. एक चाँद जो किसी वैज्ञानिक को कोई आकाशीय पिंड दिखाई देता है, किसी कवि को उसकी प्रेमिका का मुख, किसी भूखे को रोटी का टुकड़ा, किसी भिखारी को अठन्नी. वैसे ही कविता का अर्थ कोई कैसे ग्रहण करता है यह तो पाठक पाठक पर निर्भर करता है, जब तक कि कवि स्वयं उस कविता के अर्थ पर अपनी टीका की गाँठ न लगा दे. फिर भी दूसरों के द्वारा ग्रहण किये गए अर्थों को ‘डिलीट’ करना तो उस कवि के बस की भी बात नहीं. तभी तो श्रीमद्भागवत गीता की अनगिनत व्याख्याएं उपलब्ध है.
अंत में, कविता के अपने ज्ञान के विषय में कुछ ज्ञानी कवियों के वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ.
यों मैं कवि हूँ, आधुनिक हूँ, नया हूँ:
काव्य-तत्त्व की खोज में कहाँ नहीं गया हूँ ?
चाहता हूँ आप मुझे
एक-एक शब्द पर सराहते हुए पढ़ें ।
पर प्रतिमा--अरे, वह तो
जैसी आप को रुचे आप स्वयं गढ़ें । (अज्ञेय)
काव्य-तत्त्व की खोज में कहाँ नहीं गया हूँ ?
चाहता हूँ आप मुझे
एक-एक शब्द पर सराहते हुए पढ़ें ।
पर प्रतिमा--अरे, वह तो
जैसी आप को रुचे आप स्वयं गढ़ें । (अज्ञेय)
या फिर
कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे । (रघुवीर सहाय)
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे । (रघुवीर सहाय)
और एक तुकबंदी जहाँ शब्दों की फिजूलखर्ची साफ़ दिखाई देती है जिसे पढकर सड़क पर भागते पहिये का नहीं रेलगाड़ी के पहियों का दृश्य और उसकी गति का अनुमान स्वतः ही हो जाता है...
फुलाए छाती, पार कर जाती,
आलू रेत, बालू के खेत
बाजरा धान, बुड्ढा किसान
हरा मैदान, मंदिर मकान
चाय की दुकान
पुल पगडंडी, टीले पे झंडी,
पानी का कुण्ड, पंछी का झुण्ड,
झोपड़ी झाडी, खेती बाड़ी,
बादल धुआँ, मोट कुआं,
कुँए के पीछे, बाग बगीचे... (डॉ. हरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय)
इति!
आपके इस पोस्ट में कुछ नवीन भावों के दर्शन से साक्षात्कार हुआ। इसे और सूचनापरक बनाने के लिए आप के द्वारा परमात्मा देवदूत एव अबू के बारे में जो कुछ लिखा है उसके संबंध में अंग्रेजी कविता को प्रस्तुत कर रहा हूं जिसे मैंने विद्यार्थी जीवन में पढ़ा था-
जवाब देंहटाएंAbou Ben Adhem
Abou Ben Adhem (may his tribe increase!)
Awoke one night from a deep dream of peace,
And saw, within the moonlight in his room,
Making it rich, and like a lily in bloom,
An angel writing in a book of gold:—
Exceeding peace had made Ben Adhem bold,
And to the Presence in the room he said
"What writest thou?"—The vision raised its head,
And with a look made of all sweet accord,
Answered "The names of those who love the Lord."
"And is mine one?" said Abou. "Nay, not so,"
Replied the angel. Abou spoke more low,
But cheerly still, and said "I pray thee, then,
Write me as one that loves his fellow men."
The angel wrote, and vanished. The next night
It came again with a great wakening light,
And showed the names whom love of God had blessed,
And lo! Ben Adhem's name led all the rest.
इस पोस्ट को पढ़ना बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद ।
प्रेरित करने वाली, जानकारीपरक सारगर्भित रचना.
जवाब देंहटाएंअज्ञेय जी कि पंक्तियाँ बहुत कुछ बड़े ही सरल भव में कहती है.
मनोज जी आपको कोटि-कोटि धन्यवाद.
मनुष्य भूल जाता है कि वह स्वयं ही ब्रह्मांश है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रेरणादायी और रोचक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंजय हो ... :)
जवाब देंहटाएंमुझ से मत जलो - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
एक और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंसच मा संगीत तो कलेजा से निकल कर कलेजा में ही समा जाता है.......काहे की कविता काहे का शब्द सौंदर्य.....दिल की आवाज भली जइसे भी निकले .का फर्क पड़ता है जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त लेखन ... आभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिउ
जवाब देंहटाएंसंगीत के बारे में भली कही. मुझ जैसों की भी बात कही जिन्हें ज्ञान जरा भी नहीं किन्तु कुछ भा जाए तो भा जाए. पूरा लेख अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
छोटी-छोटी कथाओं के माध्यम से व्यंजना द्वारा आपने जो विचार व्यक्त किए हैं उनका सन्देश सुस्पष्ट हैं और अर्थ व्यापक। सलिल भाई, आपके लेखन की यह शैली बहुत आकर्षक है और प्रभावित करती है।
जवाब देंहटाएंआँखें खोलने में सक्षम, अच्छी जानकारी, आभार ......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट ,काबिले तारीफ ।
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट -"क्या आप इंटरनेट पर ऐसे मशहूर होना चाहते है?" को अवश्य देखे ।धन्यवाद ।
मेरे ब्लॉग का पता है - harshprachar.blogspot.com
अपने ज्ञानी होने की अनुभूति ही सबसे बडी अज्ञानता है । आप अपने को अज्ञान कहते हैं पर ऐसा ज्ञान बहुत कम लोगों को होता है । ऐसे विचार और उनकी ऐसी अभिव्यक्ति सुलभ नही होती ।
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी पोस्ट...मुझे अज्ञानी की आँखें खोलने के लिए आभार ....
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