मच रहा है
चहुँ ओर
हाहाकार
लेखनी को चाहिए
अब अंगार
एक धमाके से
कितनी ही जाने
हो रहीं निसार
और कान में तेल दिए
बैठी है सरकार
अपने ही कर रहे
पीठ पीछे वार
लेखनी को चाहिए
अब अंगार .
व्यवस्थाएं सब जैसे
चरमरा गईं
सहिष्णुता भी सबकी
है भरभरा गयी
रोज़ ही
होते हैं लोग
हादसों के शिकार
लेखनी को चाहिए
अब अंगार .
जल रहा हर क्षेत्र है
अब इस देश का
लहरा रहा परचम
है व्याभिचार का
छाद्मधारी
वेश धारण कर
विकास का कर रहे
बस झूठा प्रचार
लेखनी को चाहिए
बस अंगार ......
सरकार और सत्ता पर आसीन नेताओं के कृत्य पर कटाक्ष करती आपकी कविता "लेखनी को चाहिए अब अंगार" बेहद अच्छी लगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंखुबसुरत और उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंसादर.
...अब लेखनी ही एकमात्र हथियार है जिससे दुष्प्रवृत्तियों को मारा जा सकता है !
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जवाब देंहटाएंतोप,तलवार और बंम के गोलों से अधिक शक्ति लेखनी में होती है - यह बात बिलकुल सही है !
प्रणाम दी :)
जवाब देंहटाएंआभार दी ,इस आवाहन के लिए !
विकास का कर रहे
बस झूठा प्रचार
लेखनी को चाहिए
बस अंगार .... !!
बस अंगार .... !!
कविता के स्वर उत्प्रेरक हैं।
जवाब देंहटाएंकोशिश तो ज़ारी है ... देखें कहां तक सफल होते हैं।
आज के परिपक्ष को देखते हुए बहुत सारगर्भित रचना है दी ...!!
जवाब देंहटाएंउदास होता है मन सब तरफ का वातावरण देख कर ......
सही वक्त पर बहुत सही आह्वान है संगीता जी ! जैसे हालात हैं वाकई आपकी इस पुकार पर सचेत हो कमर कसने का यह समय है ! जगह-जगह हाहाकार मचा हुआ है और हम सबको इस भ्रष्टाचार के दानव का दमन करने के लिये कृत संकल्प होने की सख्त ज़रूरत है ! बहुत ही प्रासंगिक व समयानुकूल रचना !
जवाब देंहटाएंवाह वाह ……………आज के संदर्भ मे एक सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंBADHIYA KAVITA... SAMAJ KEE DRISHTI SE BHI AUR BLOG KE VATAVARAN KI DRISHTI SE BHI
जवाब देंहटाएंअपने ही कर रहे
जवाब देंहटाएंपीठ पीछे वार ...
चेहरे बेनकाब
लिजलिजे से एहसास
खुद ही होना है अंगार
sateek aaj ki avyavastha par .joshili rachna .aabhar
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
अंगार भी चाहिए...
और हथियार भी-धारदार.....
सादर
अनु
बहुत सुंदर ! लेखनी ही वह साधन है जिसको हथियार बना कर भी प्रयोग कर सकते हें लेकिन यहाँ पर तो दिग्गज उसकी धार को भी कुण्ड करने के लिए बहुत से रास्ते खोज लेते हें. गुनाह बनता जा रहा है बेबाक लेखन का तरीका और फिर समर्थ को नहीं दोष गुसाईं.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने !
जवाब देंहटाएंमोहब्बत यह मोहब्बत - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
जल रहा हर क्षेत्र है
जवाब देंहटाएंअब इस देश का
लहरा रहा परचम
है व्याभिचार का
छाद्मधारी (छद्मधारी )
वेश धारण कर
विकास का कर रहे
बस झूठा प्रचार
लेखनी को चाहिए
बस अंगार ...... देश से मोह भंग देश द्रोही व्यवस्था रोबोटों से आम आदमी हताश निराश है यही चौतरफा अफरा तफरी इस रचना में प्रतिबिंबित ,अनुगुंजित हुई है .
ram ram bhai
सोमवार, 3 सितम्बर 2012
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जान
जल रहा हर क्षेत्र है
जवाब देंहटाएंअब इस देश का
लहरा रहा परचम
है व्याभिचार(व्यभिचार ) का
छाद्मधारी (छद्मधारी )
वेश धारण कर
विकास का कर रहे
बस झूठा प्रचार
लेखनी को चाहिए
बस अंगार ...... देश से मोह भंग देश द्रोही व्यवस्था रोबोटों से आम आदमी हताश निराश है यही चौतरफा अफरा तफरी इस रचना में प्रतिबिंबित ,अनुगुंजित हुई है .
कवि अनुचित के खिलाफ हर युग में आवाज़ बुलंद करते रहे हैं। निश्चय ही,इससे व्यवस्था तो चेतती ही है,स्वयं लेखक-समुदाय को भी अपनी ज़िम्मेदारी का बोध बना रहता है।
जवाब देंहटाएंaaj aise hi angaar ki jarurat hai. lekhni ki dhaar talwar ki dhaar se adhik teekhi hoti hai yah ham sab ko siddh karke dikhane ki jarurat hai.
जवाब देंहटाएंsamsaamyik rachna.
मन की बात छीन ली आपने अब साहित्य को जागना ही चाहिए इसी ब्लॉग में पढ़ा था जब राजनीती लडखडाती है तो साहित्य उसे सम्हलता है
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