मंगलवार, 1 मार्च 2011

बजट २०११ के बहाने

बजट २०११  के बहाने
मेरा फोटोअरुण चन्द्र रॉय

सोच कर देखिये
क्या देता है देश
बजट के माध्यम से
आम आदमी को

बजट घोषणा के साथ ही
उछल पड़ता है सेंसेक्स
गृहणिया करने लगती हैं
जोड़ तोड़ आशंका में कि
बढ़ेंगे फिर से
रसोई गैस के दाम

द्वार खुल रहे हैं
वैश्विक खुदरा बाज़ार के लिए
खतरे की घंटी बजने लगी है
पड़ोस के परचून की दुकान पर
जबकि पहले से ही
बेरोजगार हो रहे हैं
कम पूंजी वाले व्यवसायी
आत्महत्या कर रहे हैं
किसान हर दिन
घोषणा हो रही है कि
और भी आसान हो गई है
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

शेयर बाज़ार
जब सूचक हो
देश की अर्थव्यस्था का
जहाँ प्रतिनिधित्व नहीं है
एक रेखा के नीचे की जनता का
वहीँ अब घुसपैठ की तैयारी है
विशाल मध्यवर्ग की जेब पर
कि म्युचुअल फंड में भी आ रहे हैं
विदेशी संस्थानिक निवेशक
जो अपनी सुविधा से करेंगे निवेश
अपनी सुविधा से डालेंगे
हमारी अर्थव्यस्था में नकेल

बजट में
कहीं नहीं है
खेतिहर किसान जिनके पास है
कट्ठा भर खेत
नहीं है हमारे चौक पर बैठने वाला नाई
वो छोटा सुनार
वो हलवाई / मल्लाह / बढई

कतार में खड़े आम आदमी के लिए
है तो बस एक दिवास्वप्न
कि हो रहा है भारत निर्माण
होने वाला है भारत निर्माण
इस बरस भी
पिछले बरस की तरह.

22 टिप्‍पणियां:

  1. कतार में खड़े आम आदमी के लिए
    है तो बस एक दिवास्वप्न
    कि हो रहा है भारत निर्माण
    होने वाला है भारत निर्माण
    इस बरस भी
    पिछले बरस की तरह.
    --
    आम आदमी की पीड़ा को दर्शाती सुन्दर रचना!

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  2. सन्देश देती बढ़िया प्रस्तुती. सच्चाई भी यही है.

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  3. aam janta ki kam se kam aap to sun hi lete ho...aur apne kavita me unke dard ko bahut pyar se vyakt kar dete ho...!
    great arun jee!

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  4. @नहीं है हमारे चौक पर बैठने वाला नाई
    वो छोटा सुनार
    वो हलवाई / मल्लाह / बढई

    हाथ से काम करने वाले 20 करोड़ कारीगरों के लिए हमने पृथक मंत्रालय की मांग की थी। कैसी विडम्बना है कि लकड़ी लोहा के कारीगर कपड़ा मंत्रालय के अधीन हैं।

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  5. आज स्थिति यह है कि आम आदमी बजट का इन्तजार नहीं करता बल्कि चिंता करता है कि राहत की बजाय किस किस मद में मूल्य वृद्धि होने वाली है . बजट सिर्फ महंगाई, नए कर और विदेशी घुसपैठ बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है . सटीक और प्रासंगिक रचना. कलम की धार बनी रहे. शुभकामना

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  6. सामयिक एवं सत्य. पता नहीं किसका हाथ आम आदमी के साथ है.... ! जैसे-जैसे आपकी कविता पढता गाया मुट्ठियाँ पॉकेट में भींचती गयी... ! आप अपनी कविताओं के माध्यम से अपने ब्लॉग 'सरोकार' का नाम सार्थक कर रहे हैं. धन्यवाद !

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  7. आपने अपना सरोकार बड़ी खूबसूरती से प्रस्‍तुत कर दिया लेकिन इस सरोकार से सरकार को कितना अंतर पड़ता है यह देखना है।

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  8. सरकारी व्यवस्था का समाज पर क्या असर होता उसका मार्मिक चित्रण की प्रस्तुति

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  9. कतार में खड़े आम आदमी के लिए
    है तो बस एक दिवास्वप्न
    कि हो रहा है भारत निर्माण
    होने वाला है भारत निर्माण
    इस बरस भी
    पिछले बरस की तरह.

    और ये आम आदमी कतार मे ही पैदा होता है कतार मे ही मर जाता है न पीडा दर्शाने का इसमे साहस होता है और ना विद्रोह का तो फिर क्यो सरकार इसके लिये कुछ करे…………जिसमे हिम्मत होती है वो ही बाजी जीत जाता है ……………क्यो परेशान हो रहे है आम आदमी के लिये, किया क्या है आम आदमी ने आज तक?

    बेह्द उम्दा प्रस्तुति…………आम आदमी के बहाने गहन प्रस्तुति दी है मगर मन के भावो को रोक नही सकी इसलिये लिख दिया।

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  10. आपके अन्दर के कवि को दाद देनी पड़ेगी,अरुण जी. बजट आते ही कविता लिख डाली. वाह वाह पसंद आया बजट का काव्यात्मक विश्लेषण.

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  11. आप जा रहे हैं चाय की दुकान पर कट चाय पीने, जरा ठहरिये, बजट देख लें.

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  12. कतार में खड़े आम आदमी के लिए
    है तो बस एक दिवास्वप्न
    कि हो रहा है भारत निर्माण
    होने वाला है भारत निर्माण
    इस बरस भी
    पिछले बरस की तरह.

    आम आदमी की स्थिति पर गहरा कटाक्ष किया है,कविता के माध्यम से....क्या सरोकार उसे इस बजट से.

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  13. बेजोड़ लेखनी .. जीतनी तारीफ करू ....वह कम ही है ! बहुत - बहुत धन्यवाद..

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  14. हर मन की मनोदशा
    इसी में इंसान धंसा फंसा
    जी रहा है
    फटी पुरानी पैबंद सी रहा है

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  15. पूरे बजट का विश्लेषण कर दिया और वो भी उस सोच के साथ जो हर कोई सोचता है ....क्या विश्लेषण है .....

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  16. आम आदमी जिस दिन अपनी क्षमता को पहचानेगा,निर्माण और शाइनिंग के नारों की उसी दिन मिट्टी पलीद हो जाएगी।

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  17. इकॉनॉमिक टाइम्स भी ऐसा विश्लेषण नहीं कर सकता!! सटीक!! अरुण जी साधुवाद!!
    आभार मनोज जी इस प्रस्तुति के लिये!!

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  18. आत्महत्या कर रहे हैं
    किसान हर दिन
    घोषणा हो रही है कि
    और भी आसान हो गई है
    प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शेयर बाज़ार
    जब सूचक हो
    देश की अर्थव्यस्था का
    जहाँ प्रतिनिधित्व नहीं है......

    संवेदना से भरी मार्मिक रचना के लिए आपको बधाई।

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  19. पिछले एक दशक से देख रही हूँ..बजट के पहले वाले दिन पेट्रोल पम्प पर ठीक ऐसी ही भीड़ होती है जैसे सावन महीने में बाबाधाम के मंदिर में...

    आम आदमी के लिए बजट माने कि कल से मंहगाई सुट से एक झटक्के में ऊपर निकल लेने वाली है...

    बहुत सार्थक रचना रची है आपने ...

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