गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

पाटलिपुत्र की कथा

164323_156157637769910_100001270242605_331280_1205394_nअनामिका

सभी सुधी पाठकों को अनामिका का सादर प्रणाम ! पिछले दो अंकों में हमने कथासरित्सागर से शिव-पार्वती जी की कथा और वररुचि की कथा पढ़ी..और मैंने अगली कड़ी में पाटलिपुत्र नगर की कथा प्रस्तुत करने का वायदा करके आपसे विदा ली थी तो लीजिये प्रस्तुत है पाटलिपुत्र की कथा जिसे आज हम पटना के नाम से जानते हैं.....

पिछले अंक – १. कथासरित्सागर : शिव- पार्वती प्रसंग  २. वररुचि की कथा

पाटलिपुत्र की कथा

(वररुचि ने काणभूति से कहा)- उपाध्याय वर्ष ने सारा ज्ञान तो हमें दिया ही, उसके साथ उन्होंने हमें अनेक कथाएं भी सुनाई थीं.उनमे से एक कथा पाटलिपुत्र नगर के निर्माण की है, वह मैं तुम्हें सुनाता हूँ.

गंगाद्वार(हरिद्वार) में कनखल नाम का पावन तीर्थस्थल है, जहाँ से इंद्र के हाथी एरावत ने उशीनर पहाड़ के शिखर को तोड़ कर गंगा की धरा पर उतारा था. उसी कनखल में  एक ब्राह्मण ने तप कर के तीन पुत्र प्राप्त किये. वे तीनो पुत्र अपने माता-पिता के स्वर्ग सिधारने के पश्चात विद्या अध्ययन के लिए राजगृह पहुंचे. राजगृह में विद्या अध्ययन करके वे दक्षिण की ओर चल पड़े और वहां कुमार कार्तिकेय का उन्होंने दर्शन किया. इसके पश्चात् वे समुद्रतट पर बसी चिंचिनी नामक नगरी में पहुंचे और वहां भोजिक नाम के एक ब्राह्मण के घर रहने लगे. उस ब्राह्मण के तीन कन्याएँ थीं. उसने इन तीनो को उपयुक्त वर मान कर अपनी उन कन्याओं से तीनो ब्राह्मण कुमारों का विवाह कर दिया और स्वयं गंगाद्वार की ओर चला गया. वे ब्राह्मणकुमार अपने श्वसुर के घर में रहने लगे.

कुछ समय बाद उस नगरी में सूखा पड़ जाने से भीषण अकाल हो गया. तब घबरा कर वे तीनों ब्राह्मण अपनी पत्नियों को छोड़ कर भाग गए. उनकी पत्नियाँ घर में अकेली रह गयी. उन तीनों में मंझली बहन गर्भवती थी. वे तीनों विपत्ति के समय में अपने पिता के एक मित्र यज्ञदत्त के घर चली आई और किसी तरह अपने शील व् चरित्र की रक्षा करती हुई तथा अपने अपने पतियों का ध्यान करती हुई बहुत कष्ट में जीवन बिताने लगीं.

कुछ समय बीतने पर मंझली बहिन ने एक पुत्र को जन्म दिया. तीनों बहनें बच्चे के प्रति अत्यधिक ममता से भर उठीं और अपना स्नेह उस पर उड़ेलने लगीं.

एक बार वे तीनों उस बच्चे को अपने अपने अंकों में बारी-बारी से खिला रही थीं और वात्सल्य से गदगद हो रही थीं, उसी समय आकाश में भगवान शिव और पार्वती विहार करने को निकले. कुमार कार्तिकेय की माता पार्वती ने भगवान शिव के अंक में बैठ कर धरती का यह अनुपम दृश्य देखा. देख कर वे आह्लादित हुई, उच्छवासित हुई, और भगवान शिव से बोलीं - देखिये,देखिये तो भगवन, ये तीनों बहनें उस बच्चे को कैसे स्नेह से खिला रही हैं, लाड़ कर रही हैं. उन्हें विश्वास है कि यह दुधमुहाँ  बच्चा बड़ा होकर उनका लालन-पालन करेगा, उनकी देखभाल करेगा. भगवन, अब आप इन दुखियारी नारियों पर दया कीजिये. कुछ ऐसा कर दीजिये कि यह बच्चा आगे चल कर अपनी इन दुखियारी माताओं का पालन-पोषण कर सके.

शिव मुस्कुराये ! बोले - कहने की आवश्यकता ही नहीं है देवी ! इस बच्चे ने पिछले जन्म में अपनी पत्नी के साथ मेरी बड़ी अराधना की है. इसकी पत्नी थी पाटली. इस समय वह राजा महेंद्र वर्मा की बेटी है. इस जन्म में भी वह फिर इसकी पत्नी होगी. तुम कह रही हो, तो मैं इन दुखियारी माताओं को कुछ आश्वासन तो अभी दिए देता हूँ.

भगवन शिव पार्वती से ऐसा कह रहे थे, तभी धरती पर रात हो गयी. तीनों बहनें उस बच्चे को अपने अंक में लिपटाए हुए सो गयी और तीनों ने एक साथ एक एक सपना देखा. सपने में वे देखती हैं कि साक्षात भगवान् शिव उनसे कह रहे हैं कि तुम अपने इस बच्चे से बार-बार पुत्रक, पुत्रक ऐसा कहती हो, तो यह पुत्रक नाम से ही प्रसिद्द होगा. प्रतिदिन इसके सिरहाने एक लाख स्वर्णमुद्रा मिलती रहेंगी और आगे चल कर यह राजा बनेगा.

समय बीतता गया. पुत्रक बड़ा होने लगा. एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ प्रतिदिन मिलती रहीं. माताएं बहुत आनंदित होती रहीं. सुख के दिन लौट आये. पुत्रक राजा बना. वह प्रतिदिन बहुत सी स्वर्णमुद्राएँ दान में दे देता था. धीरे धीरे उसकी ख्याति चारों  ओर फैलने लगी. धीरे धीरे ये बात उसके भागे हुए पिता तथा पितृव्यों तक भी पहुंची और वे अपनी ससुराल में लौट आये. कुछ दिन तो वे अपने पुत्र की अतुल संपत्ति का उपभोग करते हुए सुख से रहे, पर धीरे धीरे उनके मन में फिर पाप सामने आने लगा. वे राजा पुत्रक को मार कर उसका राज्य हड़पने की इच्छा से उसे विंध्यवासिनी देवी के दर्शन कराने के बहाने वहां ले गए. मंदिर के भीतर उन्होंने बधिकों को तैनात कर दिया और पुत्रक को पहले देवी के दर्शन करने भेज दिया. बधिक उसकी हत्या करने को उद्यत हुए, तो उसने बधिकों से पूछा कि तुम लोग मुझे क्यों मार रहे हो ? बधिकों ने कहा - तुम्हारे पिता और पितृव्यों ने हमें सोना देकर तुम्हारी हत्या के काम में हमें नियोजित किया है. पुत्रक ने कहा - मैं तुम्हें सारे अमूल्य आभूषण दे देता हूँ. तुम लोग मुझे छोड़ दो. मैं किसी से कुछ न कहूँगा और यहाँ से चला जाऊंगा.

बधिकों ने उसकी बात मान ली. उन्होंने पुत्रक के पिता और पितृव्यों से झूठ कह दिया कि हमने पुत्रक को मार डाला है. वे लोग संतुष्ट होकर चिन्चनी नगरी लौट आये, पर पुत्रक के मंत्रियों को उन पर संदेह हुआ और मंत्रियों ने उन तीनों को मरवा डाला.

इधर पुत्रक संसार से विरक्त हो कर विन्ध्य के गहन वन में चला गया. वहां घुमते हुए उसे दो राक्षसों को बाहुयुद्ध के लिए कमर कसे हुए देखा. उसने राक्षसों से पूछा - तुम लोग कौन हो और क्यों लड़ना चाहते हो ?

राक्षसों ने कहा - हम दोनों मयासुर के लड़के हैं. हमारे पास पैतृक धन के रूप में एक पात्र, एक लाठी और दो खडाऊं हैं. हम दोनों में जो बलवान होगा, वह इस धन को प्राप्त करेगा. इसलिए अब हम अपने इस धन के लिए युद्ध करने वाले हैं.

पुत्रक को उनकी बात सुन कर हंसी आ गयी और उसने कहा - बस इतने से धन के लिए तुम दोनों भाई एक दूसरे को मारने पर उतर आये ?

राक्षसों ने कहा - ये सामान्य वस्तुए नहीं हैं, जिनके लिए हम लड़ रहे हैं. लाठी से जो लिख दिया जाता है वो सत्य हो जाता है. पात्र में जिस प्रकार के भोजन का ध्यान करें, वह उसमे भर जाता है और खडाऊं पहन कर मनुष्य आकाशाचारी  बन जाता है.

यह सुन कर पुत्रक ने कहा - इन वस्तुओं के लिए परस्पर युद्ध करके किसी के प्राण लेना तुम लोगों के लिए उचित नहीं है. तुम दोनों में से दौड़ने में जो आगे रहे, वह तीनों वस्तुए ले ले.वे दोनों राक्षस उसकी बात मान कर दौड़ पड़े. जैसे ही वे दौड़े पुत्रक ने उनकी लाठी और पात्र हाथ मे उठाये और खदाउ पहन कर आकाश में उड़ गया. दोनो राक्षस बुद्धू बन गये.

पुत्रक आकाश में उड़ कर नीचे उतरा, और एकांत में एक जर्जर मकान को देख कर उसमें चला गया. वहाँ उसने एक बूढ़ी स्त्री को देखा. उसने बुढ़िया को कुछ धन दिया और उसके मकान मे छुप कर रहने लगा.

एकबार बातचीत करते हुए बुढ़िया उससे बोली - बेटा मैं चाहती हूँ कि तेरे लिए कोई अच्छी सी बहू मिल जाए. इस राज्य के राजा की कन्या बड़ी सुंदर है.वह तेरे ही योग्य है, पर उसे रनिवास में बड़े कड़े पहरे में रखा जाता है.

बुढ़िया की बातें सुन-सुन कर पुत्रक के मन में उस राज्य की राजकुमारी पाटली के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया और वह ख़ड़ाऊ पहन कर आकाश मार्ग से रनिवास मे घुस गया. पर्वत के शिखर के समान उँचे महल मे उसने खिड़की से भीतर जाकर रात के समय एकांत मे सोई हुई पाटली को देखा. खिड़की से आती चांदनी उस पर पड़ रही थी और वह थक कर सोयी हुई कामदेव की मूर्तीमती शक्ति जैसी लगती थी.

पुत्रक ने धीरे से उसे आलिंगन करके जगा दिया. पहले तो पाटली अचानक उसे सामने देख कर लज्जित और चकित रह गयी. फिर धीरे धीरे दोनों में बातचीत हुई, बात बढ़ी और दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया. फिर दोनों प्रतिदिन रात में मिलने लगे.

कुछ दिनों बाद पाटली के तन पर कुछ चिन्ह देख कर रनिवास के पहरेदारों ने राजा को खबर की. राजा ने एक चतुर स्त्री को राजकुमारी की निगरानी के लिए नियुक्त कर दिया. उस स्त्री ने पुत्रक को रात में राजकुमारी से मिलते देखा और चोरी से पुत्रक के वस्त्रों पर महावर से चिन्ह बना दिए.

अगले दिन राजा के सैनिकों ने खोजते खोजते वस्त्रों पर लगे महावर के चिन्हों के द्वारा पुत्रक को पहचान कर पकड़ लिया और राजा के सामने प्रस्तुत किया. राजा को अपने ऊपर कुपित जान कर पुत्रक ने खडाऊं पहनी और आकाश में उड़ गया. वह सीधा रनिवास पहुंचा और पाटली से बोला तुम्हारे पिता को हमारा रहस्य पता चल गया है, आओ हम आकाश में उड़ चलें.

पाटली उसके साथ चलने को तुरंत तैयार हो गयी और वह उसे अंक में उठाये हुए उड़ता उड़ता गंगा के किनारे पहुंचा. यहाँ दोनों सुख से रहने लगे. पुत्रक अपनी प्रिया पाटली को अपने पास के दिव्य पात्र से मनोवांछित भोजन कराता. पाटली ने गंगा के तट पर निवास करने की इच्छा प्रकट की, तो उसने लाठी से वहां एक नगर लिख दिया. तत्काल पाटलिपुत्र नगर बस गया.

ये प्रसंग यहीं समाप्त होता है.

नमस्कार !

10 टिप्‍पणियां:

  1. पौराणिक आख्यान का दिलचस्प प्रस्तुतिकरण. आभार .

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  2. अनामिका जी ! पाटलिपुत्र का रोचक इतिहास अच्छा लगा. यदि इस कथा के साथ काल का भी विवरण होता तो और अच्छा लगता. बहरहाल, एक बात तो स्पष्ट है कि यह कलयुग की ही घटना होनी चाहिए. रक्त संबंधों में भी लोभ के कारण ह्त्या के षड्यंत्र की प्रवृत्ति, विपत्ति में स्वजनों का त्याग कर पलायन, गन्धर्व विवाह आदि कलयुग के ही लक्षण हैं.

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  3. नगर ऐसे बसता है...वाह, क्या कथा है। रामचंद्र शुक्ल ने शायद सही ही कहा है कि लम्पट किस्म के राजाओं-बादशाहों की कथा पद्मावत में भी है, कुछ यहाँ भी। सिर्फ सुनकर किसी के प्रति ऐसा अनुराग !

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  4. कौशलेन्द्र जी, यह कथा है, इतिहास नहीं।

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  5. Doob jatee hun tumhare lekhan me....ek chhote bachhe kee tarah intezaar rahtaa hai!

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  6. पाटलिपुत्र की रोचक कथा ...रोचक विवरण के साथ ...

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  7. हमें तो कथा अच्छी लगी। इतिहास पर तो पहले भि लिख चुके हैं। कथा के बारे में जानना रुचिकर लगा, न पहले कभी पढ़ा था, न सुना और न ही जानकारी थी।
    अनामिका जी बड़ी ही रुचिकर श्रॄंखला चल रही है।

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  8. पाटलीपुत्र की यह कथा बहुत ही अभिनव एवं रोचक लगी ! आपने तो ज्ञान का विपुल भण्डार ही खोल दिया है पाठकों के लिये ! ये कथाएं मेरे लिये तो बिलकुल नयी हैं ! आपका आभार इतनी रुचिकर प्रस्तुति के लिये !

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