जन्म --- 1398
निधन --- 1518
सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे ।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवे ॥ 261 ॥
परबति परबति मैं फिरया, नैन गंवाए रोइ ।
सो बूटी पाऊँ नहीं, जातैं जीवनि होइ ॥ 262 ॥
पूत पियारौ पिता कौं, गौहनि लागो घाइ ।
लोभ-मिठाई हाथ दे, आपण गयो भुलाइ ॥ 263 ॥
हाँसी खैलो हरि मिलै, कौण सहै षरसान ।
काम क्रोध त्रिष्णं तजै, तोहि मिलै भगवान ॥ 264 ॥
जा कारणि में ढ़ूँढ़ती, सनमुख मिलिया आइ ।
धन मैली पिव ऊजला, लागि न सकौं पाइ ॥ 265 ॥
पहुँचेंगे तब कहैगें, उमड़ैंगे उस ठांई ।
आजहूं बेरा समंद मैं, बोलि बिगू पैं काई ॥ 266 ॥
दीठा है तो कस कहूं, कह्मा न को पतियाइ ।
हरि जैसा है तैसा रहो, तू हरिष-हरिष गुण गाइ ॥ 267 ॥
भारी कहौं तो बहुडरौं, हलका कहूं तौ झूठ ।
मैं का जाणी राम कूं नैनूं कबहूं न दीठ ॥ 268 ॥
कबीर एक न जाण्यां, तो बहु जाण्यां क्या होइ ।
एक तै सब होत है, सब तैं एक न होइ ॥ 269 ॥
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ ।
नैनूं रमैया रमि रह्मा, दूजा कहाँ समाइ ॥ 270 ॥
bahut acchhi saakhiyan. aapka prayas saraahneey hai.
जवाब देंहटाएंaabhar.
जवाब देंहटाएंकबीर एक न जाण्यां, तो बहु जाण्यां क्या होइ ।
एक तै सब होत है, सब तैं एक न होइ ॥ 269 ॥
अर्थात अनेकता में एकता नहीं है ,एकता (एक से )में अनेकता है (अनेक हैं ).....यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
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