सोमवार, 10 सितंबर 2012

नारी एक शमा




मैं ,
शमा - दान की
अधजली शमा हूँ ।
जब अँधेरा होता है तो 
जला ली जाती हूँ मैं
और उजेरा होते ही 
एक फूँक से
बुझा दी जाती हूँ मैं
ओ ! रोशनी के दीवानों
क्या पाते हो ऐसे तुम
क्यों नही जलने देते पूरा
क्षण - क्षण
जला - बुझा कर तुम
मत यूँ बुझाओ मुझको
ज्यादा दर्द होता है
कि पिघलता हुआ मोम
ज्यादा गर्म होता है ।
पिघलने दो उसे
यूँ बुझा कर ठंडा न करो
जलते हुए मिलने वाले
उस सुख को न हरो
चाहती हूँ मैं कि
मुझे एक बार जला दो
कि उस आग को 
भड़कने के लिए
बस थोडी सी हवा दो
मैं एक बार पूरी तरह
जलना चाहती हूँ
अपनी ज़िन्दगी इसी तरह
पूरी करना चाहती हूँ ।
मैं ,
हलकी सी फूँक का
बस एक तमाशा हूँ ।
मैं शमा - दान की
अधजली शमा हूँ.


21 टिप्‍पणियां:

  1. मत यूँ बुझाओ मुझको
    ज्यादा दर्द होता है
    कि पिघलता हुआ मोम
    ज्यादा गर्म होता है ।
    गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ...
    आभार

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  2. यदि मैं जलाये न जलूं , फिर उस घुप्प अँधेरे में तुम समझोगे मुझसे प्रदीप्त अर्थ को ...

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  3. मैं एक बार पूरी तरह
    जलना चाहती हूँ
    अपनी ज़िन्दगी इसी तरह
    पूरी करना चाहती हूँ ।
    - बहुत मार्मिक अनुभूति है संगीता जी ,इधऱ आपकी कवितायें गहरे उतार ले जाती हैं !

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  4. पिघलने दो उसे
    यूँ बुझा कर ठंडा न करो
    जलते हुए मिलने वाले
    उस सुख को न हरो
    ...
    बहुत ठीक जगह आकार टोका है दीदी आपने ...अचानक बुझा देना अन्याय है उसे जलने दो !

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  5. अत्यंत गहन प्रस्तुति संगीता जी ! फूँक मार कर किसी शमा को बुझा देना कितना कचोटता है जैसे कि किसीसे उसकी साँसें छीन ली जायें ! शायद अनवरत जलते रह कर तिल-तिल घुलना ही उसके ज़िंदा होने का परिचायक है ! बहुत सुन्दर रचना ! आभार !

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  6. बेहद गहन अभिव्यक्ति …………शमा का जलना अब जरूरी है।

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  7. उफ़ क्या क्या कह देती हो ..जल कर बुझना ..बुझ कर फिर जलना ..नियति हो गई है जैसे .

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  8. कविता अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हुई है और मन को मथती है, दिल को आघात पहुंचाती है।

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  9. बहुत सुन्दर दी.....
    दूसरों को रोशन करती है,फिर भी फूंक दी जाती हैं शमा....

    लाजवाब अभिव्यक्ति..

    सादर
    अनु

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  10. बेहद सशक्त रचना है -
    हलकी सी फूँक का
    बस एक तमाशा हूँ ।
    मैं शमा - दान की
    अधजली शमा हूँ.
    पिघलता हुआ मोम ज्यादा गरम होता है ,
    कि उस आग को
    भड़कने के लिए
    बस थोडी सी हवा दो बेहतरीन प्रयोग किये हैं आपने इस रचना में शमा का रूपक तिल तिल जलता जीवन ,तिल तिल आगे बढती मौत ,तमाशाई सौत .



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  11. Hamare zamane kee har aurat shayad ek adhjalee shama hua kartee thee,haina?

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  12. संगीता जी कविता में पूरे प्रभाव के साथ वह सब है जो आप कहना चाहतीं हैं । मार्मिक ।

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  13. बहुत गहराई से लिखी कविता और गहराई तक उतरती हुई!!

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  14. मैं एक बार पूरी तरह
    जलना चाहती हूँ
    अपनी ज़िन्दगी इसी तरह
    पूरी करना चाहती हूँ ।

    बहुत सुन्दर भाव

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  15. मत यूँ बुझाओ मुझको
    ज्यादा दर्द होता है
    कि पिघलता हुआ मोम
    ज्यादा गर्म होता है!!
    मार्मिक भाव !

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  16. काश यह गुहार ...लोगों तक पहुच पाती ....!!!!

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  17. koi bat nahi phukne ke baad phir jalata bhi to wahi hai apna kam jalna hai ...jalkar roshni dena hai hamari to har hal men jeet hoti hai ...bahut acche bhaw...

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  18. क्यों नही जलने देते पूरा
    क्षण - क्षण
    जला - बुझा कर तुम
    मत यूँ बुझाओ मुझको
    ज्यादा दर्द होता है
    कि पिघलता हुआ मोम
    ज्यादा गर्म होता है ।

    sadiyon se naari apni isi awaaz ko buland karti aa rahi hai lekin samaj ke thekedar behre hain aur aaj ki tareekh me to kanoon ki mashaal ko aur adhik roshan karne wali parliament aur usme baithe neta bhi behre ho gaye hain jo nari adhikaron ki baat aate hi goonge/behre ho jate hain.

    samsamyik guhar.

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  19. मैं एक बार पूरी तरह
    जलना चाहती हूँ
    अपनी ज़िन्दगी इसी तरह
    पूरी करना चाहती हूँ ।

    तिल तिल जलने का दर्द ज्यादा कठिन होता है, उसके अहसास को बहुत सुंदर शब्दों में पिरोया. शमा हो या कोई इंसान ऐसी स्थितियां जीवन में आया ही करती हैं.

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  20. दुःख के पलों में सहे गए कष्ट ही याद रह जाते है ,सुख के पलों में आये कष्टों का कोई महत्व नहीं होता है. अँधेरे में मोम के के जलने का अर्थ है ,उजाले में उसकी वेदना का क्या महत्व है.

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