सोमवार, 24 सितंबर 2012

गरीब का सलाम ले / गोपाल सिंह नेपाली


जन्म - 11 अगस्त 1911 
निधन - 17 अप्रेल 1963 

कर्णधार तू बना तो हाथ में लगाम ले 
क्राँति को सफल बना नसीब का न नाम ले 
भेद सर उठा रहा मनुष्य को मिटा रहा 
गिर रहा समाज आज बाजुओं में थाम ले 
त्याग का न दाम ले 
दे बदल नसीब तो ग़रीब का सलाम ले 

यह स्वतन्त्रता नहीं कि एक तो अमीर हो 
दूसरा मनुष्य तो रहे मगर फकीर हो 
न्याय हो तो आर-पार एक ही लकीर हो 
वर्ग की तनातनी न मानती है चाँदनी 
चाँदनी लिए चला तो घूम हर मुकाम ले 
त्याग का न दाम ले 
दे बदल नसीब तो ग़रीब का सलाम ले । 

5 टिप्‍पणियां:

  1. गोपाल राम गहमरी का जन्म मेरे गांव से करीब 22 कि.मी. की दूरी पर यू.पी.के अंतर्गत गाजीपुर जिले में गहमर गांव में हुआ था । इस गांव में जन्म होने के कारण ही वे 'गहमरी' के नाम से जाने गए। इन्होने नाटकों के अनुवाद के साथ-साथ उपन्यासों का भी अनुवाद किया। बंगला भाषा का भी इन्हे अच्छा ज्ञान था। उनके कुछ उपन्यास'अदभुत लाश,'बेकसूर की फांसी,'सरकती लाश','डबल जासूस,भयंकर चोरी','खूनी की खोज तथा'गुप्तभेद'जैसे प्रमुख उपन्यास को पढ़ा हूं। इस प्रकार की जासूसी उपन्यास लेखन परंपरा का अवसान उनकी मृत्यु के बाद ही हो गया। आपके द्वारा प्रस्तुत उनकी कविता बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  2. नेपाली जी के गीत रग-रग में जोश भर देते हैं। पढ़कर बहुत अच्छा लगा।

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  3. आज भी यह कविता प्रासंगिक है। बड़े कवि इसलिए अमर हो जाते हैं कि उनकी कविताएं कभी नहीं मरतीं।

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  4. यह स्वतन्त्रता नहीं कि एक तो अमीर हो
    दूसरा मनुष्य तो रहे मगर फकीर हो ----------------अमीर--फ़कीर होना तो मनुष्य के अपने हाथ में होता है दूसरे के में नहीं अतः उसमें अन्य का दोष नहीं ......

    ---------न्याय हो तो आर-पार एक ही लकीर हो ....न्याय भी यथानुसार होता है एक लकीर पर नहीं ....

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    1. इतने तीखे व्यंग्य की धार को नीति वचन से नहीं मोड़ा जा सकता डॉ साहब। आपके कमेंट को पढ़कर आश्चर्य हुआ।

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