रविवार, 29 जनवरी 2012

प्रेरक प्रसंग-21 : हर काम भगवान की पूजा

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हर काम भगवान की पूजा

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प्रस्तुत कर्ता : मनोज कुमार

बात 1917 की है। साबरमती आश्रम अभी-अभी शुरू हुआ था। गांधी जी का देश में उन दिनों उतना नाम नहीं था। दक्षिण अफ़्रीका में सत्याग्रह का उनका प्रयोग सफल रहा था। दक्षिण अफ़्रीका से जब वे भारत लौटे तो उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले ने सलाह दी कि पहले भारत को समझने के लिए सारा भारत घूमो। भारत के विभिन्न भागों में घूमकर उन्होंने साबरमती के तट पर आश्रम बनाकर साधना करना आरंभ किया था।

कभी-कभार वे अहमदाबाद के बाररूम चले जाते। वहां वकीलों और अन्य लोगों से मिलते, आश्रम की कुछ चर्चाएं किया करते। गांधी जी की ओर कोई खास ध्यान नहीं देता। धीरे-धीरे कुछ वकीलों में गांधी जी और उनके आश्रम के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ती गई। गांधी जी के पास आश्रम में कुछ काम मांगने और करने की उनमें से कुछ की इच्छा हुई।

अन्य लोगों के साथ, एक दिन बापू आश्रम के काम में वयस्त थे। बापू तो कर्म योगी थे। खुद ही अपना सारा काम किया करते थे। गांधी जी और विनोबा भावे जी साथ-साथ एक ही चक्की पर बैठकर अनाज पीसते थे। स्वावलंबन के अनूठे मिसाल थे वे। लेकिन जिस दिन की घटना है उस दिन पिसाई नहीं, अनाज सफ़ाई चल रही थी। सफ़ाई हो जाने के बाद पिसाई होना था। गांधी जी, विनोबा जी और अन्य कई लोग अनाज साफ़ कर रहे थे।

जिन वकीलों की ऊपर चर्चा की गई है, उनमें से कुछ वकील लोग आश्रम आए। उनके बैठने के लिए खजूर की चटाई बिछाई गई। गांधी जी ने उन्हें आमंत्रित करते हुए कहा, “आइए-आइए, बैठिए।”

उनमें से एक वकील बोला, “हम बैठने नहीं आए हैं। हम आपके आश्रम का कुछ-न-कुछ काम करने के विचार से आए हैं।”

गांधी जी ने प्रसन्नता से कहा, “ठीक है। बड़ी ख़ुशी की बात है।” इतना कहकर दो-तीन थलियों में अनाज लेकर उन वकीलों के सामने रख दिया और बोले, “यह अनाज साफ़ कीजिए। और हां अच्छी तरह से साफ़ कीजिएगा।”

एक वकील चौंक कर बोला, “हम क्या यह ज्वार-बाजरा साफ़ करते बैठेंगे?”

गांधी जी बोले, “जी हां! इस समय तो यही कम चल रह है।”

क्या करते बेचारे? वे तो सफ़ेदपोश लोग थे। अनाज साफ़ करने लगे। कुछ देर बाद नमस्कार कर चले गए। फिर दुबारा आश्रम में कोई काम मांगने नहीं आए।

इस घटना में जो सबसे प्रमुख बात है वह यह कि गांधी जी की नज़रों में आज़ादी की लड़ाई लड़ना, छुआछूत का निवारण के लिए उपवास रखना जितना महत्व का काम था, उतने ही महत्व का काम था दाल-चावल बीनना भी। उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा कि यह तो औरतों के द्वारा किया जाने वाला तुच्छ काम है। उनका कहना था,

“सेवा का हर काम पवित्र काम है। हर काम में अपनी आत्मा उड़ेल दो। कर्म को ठीक से करना, यही परमेश्वर की पूजा है। यही मोक्ष है।”

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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्रेरक सरजी, आभार।

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  3. प्रेरक प्रसंग ... हर काम ईश्वर की उपासना है ..

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  4. गांधी जी की ऐसी ही सोच को पढ़कर बस यही बात कहने को दिल करता है कि बंदे में था दम वंदे मातरम ...

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  5. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    बसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।

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  6. सेवा और 'बस यू ही' टाइप के काम में कितना अंतर है यह बापू से सीखने को मिलता है.. जो लोग काम को बड़े और छोटे के हिसाब से देखते हैं वो सेवा समझ ही नहीं सकते!!

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  8. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  9. वाह, बापू की नजरों में हर काम समान था, अद्भुत कर्मयोगी थे बापू !

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